प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी संवाद कुशलता पर गर्व है और उन्हें एक अच्छा वक्ता भी माना जाता है. फिर भी रफ़ाएल सौदे पर पूर्व फ़्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का चौंकाने वाला बयान आने के 48 घंटे बीत जाने पर भी उन्होंने मौन साध रखा है.
ओलांद ने कहा और दोहराया भी है कि करोड़ों के रफ़ाएल सौदे में अनिल अंबानी को भारत सरकार ने ऑफ़सेट पार्टनर के तौर पर फ्रांस पर 'थोपा' था. इससे मोदी सरकार के उस दावे की हवा निकल गई जिसमें कहा गया था कि 'इस समझौते में पार्टनर चुनने में सरकार का कोई हाथ नहीं था और इसे विमान बनाने वाली कंपनी दसो एविएशन ने ही चुना था.'
सुरक्षा पर बनी कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) में शामिल मोदी सरकार के शीर्ष मंत्रियों जैसे कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस बात को दोहराया था.
सीतारमण ने तो यहां तक कह दिया था कि भारत सरकार को यह तक पता नहीं था कि दसो ने किस कंपनी को पार्टनर चुना है. यह दावा अविश्वसनीय है क्योंकि कैबिनेट में उनके सहयोगी नितिन गडकरी ने ही नागपुर में अंबानी की फ़ैक्ट्री का उद्घाटन किया था.
मगर फिर भी मोदी सरकार की ओर से अविश्वसनीय दावे और 'जुमले' पेश किए जाते रहे. पिछले हफ़्ते ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया कि अरबों खरबों के बक़ायेदार विजय माल्या का यह कहना 'तथ्यात्मक रूप से' ग़लत है कि वह भागने से पहले उनसे मिले थे क्योंकि उन्होंने कभी माल्या को अपॉइंटमेंट नहीं दिया था. मगर मीटिंग हुई, माल्या भागे भी लेकिन हमारे वित्त मंत्री बचने के लिए बेहद कमज़ोर क़ानूनी तर्क दे रहे थे.
रफ़ाएल से जु़ड़ा स्कैंडल
इस स्कैंडल की जड़ में मोदी द्वारा करोड़ों डॉलर के जेटों की ख़रीद है, जिसके लिए स्पष्ट तौर पर ज़रूरी मंज़ूरी नहीं थी और ऊपर से अनिल अंबानी उनके साथ थे, जिन्होंने कुछ ही दिन पहले रक्षा निर्माण की कंपनी का पंजीकरण करवाया था.
मोदी ने पेरिस में इस समझौते का एलान किया था और उस समय के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर तक इससे हैरान रह गए थे.
भारतीय सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी रक्षा कंपनियों में गिनी जाने वाली दसो को हाल ही में पैदा हुई एक कंपनी से हाथ मिलाने को कहा, जो अभी तक कुछ साबित नहीं कर पाई है. इस काम के लिए हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को नज़रअंदाज़ कर दिया गया. दसो ने भी बिना कोई सवाल पूछे ऐसा ही किया.
सरकार का कमज़ोर बचाव
अक्सर मुदों पर डटे नहीं रहने वाले कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार अपने दावे पर डटे हुए हैं कि रफ़ाएल सौदे में पार्टनर चुना जाना घोटाला है.
मोदी सरकार बिना किसी दमदार बचाव के घोटाले के आरोपों से इनकार कर रही है. सीतारमण ने पहले दावा किया कि वह जेट विमानों की क़ीमत बताएंगी मगर बाद में रहस्यमय 'गोपनीयता की शर्त' का हवाला देते हुए मुकर गईं.
इस बीच मोदी सरकार के चियरलीडर्स और पन्ना प्रमुखों ने मीडिया में बिना जांच के ही मोदी सरकार को यह तक कहते हुए क्लीन चिट दे दी कि 'इस समझौते में भ्रष्टाचार नहीं बल्कि बेवकूफ़ी है.'
वर्तमान सरकार का महिमामंडन करने में लगे भारतीय मीडिया के एक धड़े द्वारा नज़रअंदाज करने के बावजूद इस घोटाले ने मोदी सरकार को ज़ोरदार झटका दिया है.
मोदी की चुप्पी से उनको कोई फ़ायदा नहीं मिलने वाला. अनिल अंबानी विपक्ष के नेताओं और मीडिया के उन लोगों के ख़िलाफ़ मानहानि का मामला दर्ज कर रहे हैं जो यह सवाल उठा रहे हैं कि यह डील उन्हें सौंप दी गई जिनके पास रक्षा के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है.
अंबानी ने स्वतंत्र मीडिया से इस तरह के 'आरोप लगाना बंद करने और इससे बचने' को भी कहा है.
राहुल ने पूछा जवाब कब देंगे मोदी, रविशंकर प्रसाद का पलटवाररफ़ाएल सौदा मोदी सरकार का सबसे बड़ा सिरदर्द?तो रफ़ाएल घोटाले में आगे क्या होगा?
इस बात पर ग़ौर करें कि केंद्र तो पहले ही सरकारी स्वामित्व वाले हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के दावों को दरकिनार कर चुका है, जो इस तरह के ऑफ़सेट एग्रीमेंट के लिए उच्चस्तरीय रक्षा निर्माण में एक ट्रैक रिकॉर्ड रखता है.
रक्षा मंत्रालय संभाल चुके विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक इस मुद्दे पर सरकार हताश नज़र आ रही है.
इसमें सबसे बड़ा नुक़सान मोदी के उस दावे का होगा जिसमें वो ख़ुद को करदाताओं के पैसे का चौकीदार (गार्ड) बताते रहे हैं. अगर मोदी ने रफ़ाएल पर ख़ुद ही मनमाने तरीके से निर्णय लिया है तो इससे होने वाला नुक़सान भी उनके अपने व्यक्तित्व पर भी असर डालेगा.
विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि रफ़ाएल डील आने वाले आम चुनावों में बड़ा मुद्दा होगा. राहुल गांधी ने भी अपने संवाददाता सम्मेलन में यह बात कही है. उन्होंने कहा कि 'मोदी और अनिल अंबानी ने साथ मिलकर भारतीय सुरक्षाबलों पर 130 हज़ार करोड़ रुपये की सर्जिकल स्ट्राइक की है. मोदी जी आपने हमारे शहीद सैनिकों के ख़ून का अपमान किया है. आपको शर्म आनी चाहिए. आपने भारत की आत्मा के साथ धोखा किया है.'
इससे ये भी संकेत मिलता है कि विपक्ष किस तरह पीएम मोदी पर आरोप लगाएगा. उम्मीद है कि जल्द ही ओलांद के बयान की ख़बर पर फ़्रांसीसी मीडिया में फ़ॉलोअप आएगा.
अब तक तो यही लग रहा है कि बोफ़ोर्स के पुराने भूत की तरह ही एक बार फिर एक रक्षा सौदा एक और प्रधानमंत्री का खेल बिगाड़ सकता है.
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