भ्रष्टाचार के दलदल में भारतीय संविधान भी सवालों के घेरे में - तहक़ीकात समाचार

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रविवार, 25 नवंबर 2018

भ्रष्टाचार के दलदल में भारतीय संविधान भी सवालों के घेरे में

विश्वपति वर्मा;

´´लोकतंत्र का स्‍वघोषित चौथा स्‍तंभ अब सुन्‍न पड़ रहा है, ऐसे में जरूरत है कि तंत्र में फैली अराजकता को सामने कैसे लाया जाए, कोशिश की जरूरत थी लिहाजा इस तरंह के पोस्ट करने का विचार आया, मकसद सिर्फ यह  है कि लोगों को मालूम चले कि उनके हिस्‍से मे  आने वाली रकम किसकी जेब में जा रहा है ``

एक तरफ अंतिम पंक्ति मे खडा व्यक्ति अग्रिम पंक्ति मे आने का लगातार प्रयास कर रहा है दूसरी तरफ अग्रिम पंक्ति मे खडा व्यक्ति आसमान मे पंहुचने के फिराक मे है,बात हो रही है देश के जनप्रतिनिधियों की जिनको देश की भोली-भाली जनता अपने क्षेत्र के विकास के लिये विधानसभा और लोकसभा भेजने का काम करती है  ।लेकिन जैसे ही ये माननीय शब्द से सुसज्जित किये जाते हैं जनता के बीच से सुन कर आये दुख-दर्द को भूल जाते हैं और जनता के हित मे खर्च होने वाले पैंसे को अपनाने का काम करने लगते हैं 

पैंसे को ठिकाने लगाने की चाल बेहद सरल ढंग से माननीय लोगों द्वारा किया जा रहा है उदाहरण के रूप मे अगर विधानसभा सदस्य को देखा जाये तो सबसे पहला बेहतर तरीका  विकास पर  खर्च होने वाली विधायक निधि जमकर निजी स्‍कूलों ,महाविद्यालयों, वृद्धा आश्रम ,एनजीओ आदि के नाम पर लुटाये जाते हैं  ।निजी स्‍कूलों में महंगी फीस और अभिभावकों के साथ रूखे व्‍यवहार के बावजूद भी विधायक महोदय निजी स्‍कूलों को जमकर विधायक निधि बांट रहे होते हैं।

चाहें माननीय का खुद का स्कूल हो या दूसरे का स्कूल हो निधि के पैंसे का बौछार जमकर की जाती है। अगर माननीय या परिवार का सदस्य स्कूल का स्वामी है तो पूरा का पूरा मजा उन्हे ही मिलेगा ।अगर वह कोई अदर करीबी है तब भी 30 से 50 % धन माननीय को कमीशन  के रूप मे वापस मिल जाता है दूसरी तरफ माननीय द्वारा गुप्त रूप से पैंसें का निजीकरण  जमीनखरीद ,होटल निर्माण ,होम बैलेंस (घर में दबा कर) किया जा रहा है ।स्थानीय जनपद मुख्यालय से लेकर लखनऊ,दिल्ली,मुंबई, जैसे अन्य शहरों मे निधि के पैंसें का प्रयोग शानदार तरीके से किया जा रहा है 

और यह काम भी उस वक्त किया जा रहा है जब सरकारी स्‍कूल और सरकारी चिकित्सालय आखिरी सांसे गिन रही हैं, सरकारी स्‍कूलों में ना तो फर्नीचर है, ना ही पानी की सुविधा, शौचालय तो केवल हाथी दाँत के तरहं होते हैं लेकिन इन संस्थाओं में निधि के पैंसे का दान नही जाता ।ऐसी ही स्थिति ग्रामीण क्षेत्र में बने सरकारी चिकित्सालयों की है जंहा पर स्वास्थ्य सुबिधाओं के नाम पर बेशिक दवाओं के अलावां और कुछ नही है लेकिन यंहा पर संसाधनों की मुहैया कराने के लिए आज तक कोई विधायक आगे नही आया । ऐसी बदहाल स्थिति को देखते हुए भी धर्म सभा की तरहं कोई तो बुनियादी ढांचे वाली सभा होनी चाहिए?

इतना ही नही ये सब होने के बाद निधि के पैंसे को निजी स्वार्थ मे पत्नी के गहने और बेटे-बेटियों के लग्जरी गाडियों और उनके अय्याशियों पर खर्च होते हैं 

ऐसी स्थित पर देश के संबिधान पर भी सवाल खडे होता हैं   क्या देश के पास अपना कोई ऐसा कानून नही है जो इस तरंह के स्थित से निपटने मे सफल हो ?क्या इस लोकतंत्र मे भी आजाद भारत के लोगों को विदेशी आक्रमणक्रताओं के तर्ज पर लूटने का काम किया जा रहा है ?अगर ऐसा ही है तो देश का 60% युवा जिसकी उम्र 13 से 35 वर्ष है कब तक कुम्भकरण की नीद सोने का काम करेगी 


 अत: देश का नागरिक होने के नाते उसकी जिम्मेदारी बनती है कि अंतिम लाइन मे खडे व्यक्ति को आगे के लाइन मे लाने का काम करें|एवं सबके साथ मिलकर कर सांसदों और विधायकों से जवाबदेही तय करे कि आखिर निधि के पैंसे का खर्च कैसे और किस जगह पर हो रहा है ।अन्यथा आपकी आने वाली पीढ़ी भी आपके ऊपर सवाल खड़ा करेगी।

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