विश्वपति वर्मा_
शहरों का नाम बदलने भर से क्या सिस्टम में सुधार हो सकता है इस बात की गंभीरता मुख्यमंत्री और उनके विशेष सचिवों को लेनी चाहिए।
आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद आज भी शिक्षा ,चिकित्सा, पानी निकासी, स्वच्छ पेय जल, आवास की सुविधा से लोग वंचित हैं लेकिन सरकार है कि इन सब पर प्राथमिकता तय नही करती ।
आखिर इस देश की गरीब और असहाय जनता को समाज की मूलधारा में लाने के के लिए वर्षों से जो योजनाएं चलाई जा रही हैं उसमें कौन सा जंग लग गया है कि भारत जैसे देश मे लोग दलित और पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की होड़ लगाए हुए हैं।
अब और वक्त सरकारों को नही लेना चाहिए उसे शीघ्र ही बेबुनियाद मुद्दों से बाहर निकल कर सरकारी प्रणाली में सुधार लाने की जरूरत पर विचार करना चाहिए।
शहरों का नाम बदलने भर से क्या सिस्टम में सुधार हो सकता है इस बात की गंभीरता मुख्यमंत्री और उनके विशेष सचिवों को लेनी चाहिए।
आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद आज भी शिक्षा ,चिकित्सा, पानी निकासी, स्वच्छ पेय जल, आवास की सुविधा से लोग वंचित हैं लेकिन सरकार है कि इन सब पर प्राथमिकता तय नही करती ।
आखिर इस देश की गरीब और असहाय जनता को समाज की मूलधारा में लाने के के लिए वर्षों से जो योजनाएं चलाई जा रही हैं उसमें कौन सा जंग लग गया है कि भारत जैसे देश मे लोग दलित और पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की होड़ लगाए हुए हैं।
अब और वक्त सरकारों को नही लेना चाहिए उसे शीघ्र ही बेबुनियाद मुद्दों से बाहर निकल कर सरकारी प्रणाली में सुधार लाने की जरूरत पर विचार करना चाहिए।