विश्वपति वर्मा_
बस्ती जनपद के अमरौली निवासी मानिकराम जूता चप्पल बनाने का काम करते हैं ,मैं इन्हें भिरियाँ में लगने वाले सोमवार एवं गुरुवार बाजार के हर दिन सड़क के किनारे देखा करता था जंहा वें पुराने जूते चप्पल की सिलाई करते हैं ।
मानिक राम को मैं तब से जानता हूँ जब वें पढ़ाई कर रहे थे ,आज हमारी नजर जब उनपर पड़ी तो मैने सोचा क्यों न इनसे बात की जाए ,उसके बाद हम जाकर नहर के डिवाइडर पर बैठ गए और शुरू हुई कुछ बातों का सिलसिला।
मानिकराम ने बताया कि वें हाईस्कूल पास करने के बाद आगे की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन उन्हें लगा कि सरकार के पास पढ़े लिखे युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की प्राथमिकता नही है क्योंकि वह खुद मंदिर, मस्जिद, गाय,भैंस में लोगों को भटकाकर रखना चाहती है। इस लिए और समय बर्बाद हो इससे पहले पूजी न होने की वजह से जूता चप्पल की सिलाई करने का काम शुरू कर दिया ।
हर दिन कितना कमाई हो जाती है इस सवाल के जवाब में मानिकराम ने बताया कि 80 ₹ से लेकर 100₹ तक कमाई हो जाती है जिससे हर दिन सब्जी -मसाला खरीदने की व्यवस्था हो जाती है।
मानिकराम तो महज एक उदाहरण हैं ,ऐसे ही करोड़ो पढ़े लिखे युवा सरकार की उदासीनता के चलते फुटपाथ पर छोटी मोटी दुकान के सहारे जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं।
देश के पढ़े लिखे युवाओं की ऐसी स्थिति देखकर सरकारों पर घिन्न आती है कि आखिर नवजवानों के आजीविका में वृद्धि के लिए ठोस नीतियां क्यों नही बनाई जाती हैं ,रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ग्रामीण इलाकों में इकाई की स्थापना क्यों नही होती, क्षेत्र में कुटीर उद्योग की योजनाओं का विस्तार क्यों नही हो रहा है ,ऐसे तमाम सवाल जेहन में कौंधता रहता है।
यह निश्चित है कि सत्ताधारियों की सोची समझी साजिश से ही ऐसी व्यवस्था का बढ़ावा दिया जा रहा है तभी तो विकास के मुद्दे से भटका कर ये सरकारें स्टैचू ऑफ यूनिटी, कृष्ण स्टैचू , राम स्टैचू के साथ मंदिर ,मस्जिद को बनाने की प्राथमिकता दे रही हैं लेकिन यह बात समझ मे नही आ रहा है कि इससे मानिकराम जैसे लोगों का क्या फायदा हुआ है