ग्राउंड जीरो से विश्वपति वर्मा की रिपोर्ट -
भारत गावों का देश है भारत के ग्रामीण इलाकों में देश की बहुसंख्यक आबादी निवास करती है ,गावों में बसने वाले लोगों के लिए सरकार द्वारा 26 जनवरी 1950 के बाद से यानी कि पिछले 70 वर्षों से शिक्षा ,चिकित्सा ,आवास ,पेय जल ,बिजली ,सड़क जैसी इत्यादि मूलभूत सुबिधाओं को पंहुचाने की जिम्मेदारी ली गई है लेकिन वर्तमान समय में भारत के गावों में पंहुचने के बाद देखने को मिलता है कि सरकार की ठोस नीति और ईमानदार नियति न होने की वजह से बहुसंख्य आबादी शोषित और वंचित है।
बदलते भारत के असली रूप को जानने के लिए जब हम बस्ती जनपद के गौर ब्लॉक अंतर्गत तरैनी गांव में पंहुचे तो गेंहू की फसल में खाद डालने जा रहे हरिहर निषाद से हमारी मुलाकात हुई। गांव की वर्तमान हालात पर मैने उनसे चर्चा किया तो उन्होंने बताया की गांव में जो बदलाव हुआ है उसे 70 वर्ष के समय के आधार पर देखें तो वह पर्याप्त नहीं है ,हरिहर ने बताया की हमारे गांव में अधिकांश लोग अशिक्षित हैं ,यंहा पर कोई रोजगार भी नहीं है ,मनरेगा योजना का अधिकांश कार्य ठेके -पट्टे पर हो जाता है , गांव के अधिकतर लोग गाय -भैंस ,बकरी पाल कर अपना जीविको पार्जन कर रहे हैं।
इसी गांव में झोपडी में रहने वाली किरन देवी के घर जब हम पंहुचे तब उन्होंने बताया की कई बार हमने आवास के लिए आवेदन किया लेकिन अभी तक हमे योजना का लाभ नहीं मिला ,किरन ने बताया की हम लोग मेहनत मजदूरी करने वाले लोग हैं हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए रोजगार मुहैया कराये ताकि अपना घर हम स्वयं बना सकें , किरन अपने दो बच्चों के साथ इस झोपडी में रहती हैं।
गौर ब्लॉक के गोनहा गांव में जब हम लोगों की सामाजिक ,मानसिक एवं आर्थिक उन्नति की समीक्षा कर रहे थे तब गांव के रहने वाले रामसुरेश से हमारी मुलाकात हुई ,रामसुरेश ने बताया की सरकार की योजनाओं की पंहुच सबसे पहले सम्पन्न घरों में होती है ,उन्होंने बताया की शौचालय ,पेंशन एवं चिकित्सा सुबिधाओं को जन जन तक पंहुचाने के लिए सरकार बड़े -बड़े दावे तो कर रही है लेकिन धरातल पर तस्वीर की दूसरी पहलू में भ्रष्टाचार के दाग लगे हुए हैं ,रामसुरेश काफी दिनों से घर में शौचालय बनवाने के लिए सरकारी अनुदान की मांग कर रहे हैं लेकिन उन्हें यह बताकर वंचित कर दिया जाता है कि तुम्हारा नाम बेशलाइन सूची में नहीं है।
इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की अपनी अपनी समस्याएं हैं ,जंहा पर सामाजिक समरसता लाने के लिए अनेकों प्रकार की योजनाओं को संचालित किया जा रहा है लेकिन स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की निरंकुशता के चलते 70वें गणतंत्र के समाप्ति के बाद भी उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई है। अगर समय रहते इस गणतंत्र की लोकलज्जा को नहीं बचाया गया ,तो बीमार पड़े इस तंत्र की सामाजिक मौत होना निश्चित है जिसमे लोकतंत्र के चारों खम्भे ही उसका जनाजा उठायेंगे ,क्योंकि प्रथम जिम्मेदार और वारिस यही लोग हैं।