विश्वपति वर्मा _
हमे नही लगता कि इस महागठबंधन से देश के वंचित तबके को कोई फायदा होने वाला है ।पूर्व के कैलेंडर पर नजर दौड़ाए तो साफ दिखाई देता है कि इस महागठबंधन में अधिकांश वही लोग शामिल हैं जिन्होंने अपने अपने प्रदेशों में नाकामियों की बीज बोई है।
सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री एवं सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश की बात करें तो यंहा की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव केंद्र की कांग्रेस सरकार में भागीदारी रहे हैं ।लेकिन इन लोगों ने गरीब पिछड़े असहाय लोगों की कौन सी लड़ाई लड़ी है यह बात आज तक समझ मे नही आई ।
आज भी प्रदेश का एक बड़ा तबका अशिक्षित और वंचित है जिसमे से अधिकांश वर्ग दलितों और अति पिछड़ी जातियों की है आखिर इन लोगों ने जाती धर्म की राजनीति करने के बाद भी बहुसंख्यक दबी कुचली आबादी को समाज की मूलधारा में लाने का काम क्यों नही किया।
कमोबेश... देखा जाए तो सपा, बसपा ,भाजपा और कांग्रेस के साथ अन्य प्रदेशों की राजनीतिक पार्टियों के नेता एक ही बिरादरी के लोग हैं जो अपनी दुकान चलाने के लिए हिन्दू ,मुस्लिम, ,गाय, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की दुहाई देते रहते हैं और यह जाति अमीरों की है जो सत्ता के सफेद पोशाक में जनता के साथ बर्बरता करते हैं।
लेकिन जब सत्ता ही न रहे तो वें जनता के साथ क्या करेंगे।फिलहाल मलाईदार जगहों पर उनकी "एंट्री" बंद न हो जाये इसके लिए गठबंधन, महागठबंधन ,जनता से झूठ ,फर्जी घोषणा पत्र आदि को चुनावी माहौल में लाकर जनता के साथ धोखा करते करते रहते हैं जिसका परिणाम है कि एक बड़ी जाति समूह के लोग आजादी के 72 वर्षों बाद भी दलिद्रता की जिंदगी जी रहे हैं और वह जाति गरीबों की है।