अशोक कुमार चौधरी_
गण पर हावी तंत्र तो कैसा गणतंत्र ? इस तंत्र को देखकर ऐसा ही लगता है कि पैसों से ज्यादा विटामिन कहीं और नहीं है। भ्रष्टाचार का विषाणु हमारे समाज और तंत्र में इस कदर घुल गया है कि इसे अलग कर पाना लगभग असंभव प्रतीत होता है। चाहे वे सरकारी कार्यालय हों या गैर सरकारी संस्थान, बिना सुविधा शुल्क वसूली के कोई कार्य करा पाना नामुमकिन है। आज के समय में घूसखोरी एवं दलाली करने में किसी को कोई शर्म महसूस नहीं होती। काम करने के लिए सरकारी कार्यालय में सरकारी कर्मचारी या तो खुलेआम सुविधा शुल्क की मांग करते हैं, अन्यथा उन्होंने अपने दलाल तैनात कर रखे हैं, जो आम जन से वसूली कर उन तक पहुंचाने का काम करते हैं। ये कर्मचारी बेहिचक रिश्वतखोरी कर आम जनता का शोषण करने में जरा भी भय नहीं महसूस करते, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि फंस जाने पर वे रिश्वत देकर अपनी नौकरी का बचाव कर सकने में सक्षम हैं। इस कदर व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए हमारे उच्चाधिकारी एवं शासन व्यवस्था ही दोषी है। यदि सक्षम अधिकारी ईमानदारी और निष्ठा के साथ काम करते, तो उनके अधीनस्थ कभी भी भ्रष्ट नहीं हो सकते थे।
यू तो इन्सान को जीने के लिये दो रोटी और तन पर एक कपडा बहुत है मगर जिस रफ्तार से विदेशो में देश के कुछ बडे नेताओ के काले धन के मामले सामने आ रहे है और देश में एक घोर भ्रष्ट संस्कृति पनप रही है वो राजतंत्र, पुलिसतंत्र और न्यायतंत्र का निकम्मापन है। हम लोग तीस सालो से गंगा में प्रदूषण की चर्चा कर रहे है। लेकिन देश में भ्रष्टाचार का प्रदूषण तो आज दिमाग को चकराने वाला है। दो दशर्क पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गॉधी जी ने खुद स्वीकार किया था कि “सरकार द्वारा चलाई गई तमाम विकास योजनाओ के प्रत्येक एक रूपये में से केवल 15 पैसे जरूरतमंदो तक पहॅुचते है’’। आज मनरेगा, गरीबो को सस्ता आनाज, वृद्वा व विधवा पैंशन आादि तमाम सरकारी योजनाओ में हमारे राजनेता और नौकरशाहो की पोल खुलने के बाद हमे इस बात का अहसास हो रहा है। वास्तव में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉधी जी ने उस वक्त कितनी साफ सुथरी बात कही थी। आज देश में हुए तमाम घोटालो में प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह द्वारा खुद को ईमानदार साबित कर के सिर्फ पट्टी धोने की कोशिश की जा रही है जख्म पर मरहम या चीरा नही लगाया जा रहा है। कुछ मंत्रियो द्वारा सरकार में फैले भ्रष्टाचार के कारण सरकार को विकास के साथ साथ आम आदमी और कमर तोड मंहगाई पर नियंत्रण का भी ख्याल नही रहा। सरकार कार्यवाही के नाम पर सिर्फ लीपापोती करने में लगी है।इतना सब कुछ होने के बाद नेता लोग जनता को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं
गण पर हावी तंत्र तो कैसा गणतंत्र ? इस तंत्र को देखकर ऐसा ही लगता है कि पैसों से ज्यादा विटामिन कहीं और नहीं है। भ्रष्टाचार का विषाणु हमारे समाज और तंत्र में इस कदर घुल गया है कि इसे अलग कर पाना लगभग असंभव प्रतीत होता है। चाहे वे सरकारी कार्यालय हों या गैर सरकारी संस्थान, बिना सुविधा शुल्क वसूली के कोई कार्य करा पाना नामुमकिन है। आज के समय में घूसखोरी एवं दलाली करने में किसी को कोई शर्म महसूस नहीं होती। काम करने के लिए सरकारी कार्यालय में सरकारी कर्मचारी या तो खुलेआम सुविधा शुल्क की मांग करते हैं, अन्यथा उन्होंने अपने दलाल तैनात कर रखे हैं, जो आम जन से वसूली कर उन तक पहुंचाने का काम करते हैं। ये कर्मचारी बेहिचक रिश्वतखोरी कर आम जनता का शोषण करने में जरा भी भय नहीं महसूस करते, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि फंस जाने पर वे रिश्वत देकर अपनी नौकरी का बचाव कर सकने में सक्षम हैं। इस कदर व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए हमारे उच्चाधिकारी एवं शासन व्यवस्था ही दोषी है। यदि सक्षम अधिकारी ईमानदारी और निष्ठा के साथ काम करते, तो उनके अधीनस्थ कभी भी भ्रष्ट नहीं हो सकते थे।
यू तो इन्सान को जीने के लिये दो रोटी और तन पर एक कपडा बहुत है मगर जिस रफ्तार से विदेशो में देश के कुछ बडे नेताओ के काले धन के मामले सामने आ रहे है और देश में एक घोर भ्रष्ट संस्कृति पनप रही है वो राजतंत्र, पुलिसतंत्र और न्यायतंत्र का निकम्मापन है। हम लोग तीस सालो से गंगा में प्रदूषण की चर्चा कर रहे है। लेकिन देश में भ्रष्टाचार का प्रदूषण तो आज दिमाग को चकराने वाला है। दो दशर्क पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गॉधी जी ने खुद स्वीकार किया था कि “सरकार द्वारा चलाई गई तमाम विकास योजनाओ के प्रत्येक एक रूपये में से केवल 15 पैसे जरूरतमंदो तक पहॅुचते है’’। आज मनरेगा, गरीबो को सस्ता आनाज, वृद्वा व विधवा पैंशन आादि तमाम सरकारी योजनाओ में हमारे राजनेता और नौकरशाहो की पोल खुलने के बाद हमे इस बात का अहसास हो रहा है। वास्तव में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉधी जी ने उस वक्त कितनी साफ सुथरी बात कही थी। आज देश में हुए तमाम घोटालो में प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह द्वारा खुद को ईमानदार साबित कर के सिर्फ पट्टी धोने की कोशिश की जा रही है जख्म पर मरहम या चीरा नही लगाया जा रहा है। कुछ मंत्रियो द्वारा सरकार में फैले भ्रष्टाचार के कारण सरकार को विकास के साथ साथ आम आदमी और कमर तोड मंहगाई पर नियंत्रण का भी ख्याल नही रहा। सरकार कार्यवाही के नाम पर सिर्फ लीपापोती करने में लगी है।इतना सब कुछ होने के बाद नेता लोग जनता को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे हैं