विश्वपति वर्मा―
देश हजारों वर्षों से गुलाम था तब ऐसा नही था कि देश के 30 करोड़ आबादी में राष्ट्रवाद की लौ निकल रही थी ।उसमें से कुछ ही लोग थे जो देश को आजाद देखना चाहते थे और उन लोगों ने एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराया।
आज देश की आबादी 100 करोड़ बढ़ गई है ,देश मे शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ भरतीय नागरिकों को बोलने को आजादी मिली सबको समानता देने की बात कही गई लेकिन आजाद भारत मे ऐसा नही हो पाया कि देश के हर नागरिक के अंदर राष्ट्रीयता की भावना जाग उठी हो।
इसमे सबसे बड़ा कारण है अंधभक्ति का चश्मा लगाने वालों की संख्या बढ़ना, आज जब देश को विश्व पटल पर ऐतिहासिक परचम लहराने की आवश्यकता थी तब देश उसी पायदान पर खड़ा हुआ है जंहा उसके नागरिक डरपोकों की कतार में खड़ा होना पसन्द करते थे ,देश का नागरिक खासकर युवा पीढ़ी राजनीतिक दलों का विशेष व्यक्ति होकर मुद्दे पर बात करना नही चाहता है जिसका कारण है कि देश के सत्ताधारी वर्ग ने अपने अपने हिसाब से देश की जनता का उपयोग किया है ,क्योंकि उन्हें पता है कि देश के बहुसंख्यक मानसिक गुलाम आबादी को चलाने वाली राजनीतिक रिमोट उनके हाथ में है।
यदि ऐसा ही रहा तो आजाद भारत मे बहुसंख्यक आबादी गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, दलिद्रता के साये में जीने के लिए विवश होगी।
जरूरी यह है कि देश के नागरिक अपने व्यवस्था के हिसाब से निर्णय लेने की क्षमता पैदा करें।
अन्यथा अंधभक्ति का चश्मा लगाकर फेसबुक पर राष्ट्रीयता की भावना में ओतप्रोत होने की बात तो वो लोग भी कर रहे हैं जिनके पास वर्तमान व्यवस्था को समझने के लिए समीक्षा करने की कूबत भी नही है।
देश हजारों वर्षों से गुलाम था तब ऐसा नही था कि देश के 30 करोड़ आबादी में राष्ट्रवाद की लौ निकल रही थी ।उसमें से कुछ ही लोग थे जो देश को आजाद देखना चाहते थे और उन लोगों ने एक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराया।
आज देश की आबादी 100 करोड़ बढ़ गई है ,देश मे शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ भरतीय नागरिकों को बोलने को आजादी मिली सबको समानता देने की बात कही गई लेकिन आजाद भारत मे ऐसा नही हो पाया कि देश के हर नागरिक के अंदर राष्ट्रीयता की भावना जाग उठी हो।
इसमे सबसे बड़ा कारण है अंधभक्ति का चश्मा लगाने वालों की संख्या बढ़ना, आज जब देश को विश्व पटल पर ऐतिहासिक परचम लहराने की आवश्यकता थी तब देश उसी पायदान पर खड़ा हुआ है जंहा उसके नागरिक डरपोकों की कतार में खड़ा होना पसन्द करते थे ,देश का नागरिक खासकर युवा पीढ़ी राजनीतिक दलों का विशेष व्यक्ति होकर मुद्दे पर बात करना नही चाहता है जिसका कारण है कि देश के सत्ताधारी वर्ग ने अपने अपने हिसाब से देश की जनता का उपयोग किया है ,क्योंकि उन्हें पता है कि देश के बहुसंख्यक मानसिक गुलाम आबादी को चलाने वाली राजनीतिक रिमोट उनके हाथ में है।
यदि ऐसा ही रहा तो आजाद भारत मे बहुसंख्यक आबादी गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, दलिद्रता के साये में जीने के लिए विवश होगी।
जरूरी यह है कि देश के नागरिक अपने व्यवस्था के हिसाब से निर्णय लेने की क्षमता पैदा करें।
अन्यथा अंधभक्ति का चश्मा लगाकर फेसबुक पर राष्ट्रीयता की भावना में ओतप्रोत होने की बात तो वो लोग भी कर रहे हैं जिनके पास वर्तमान व्यवस्था को समझने के लिए समीक्षा करने की कूबत भी नही है।