विश्वपति वर्मा―
सरकारी स्कूल के दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले योगेश अपने एक साथी अवधेश के साथ बाजार की तरफ चलते हैं दोनों में कुछ मजेदार बातें हो रही थी इस लिए साइकिल पर पीछे बैठा अवधेश तेजी से खिलखिलाकर हंस रहा था ।दोनो में कुछ बात बनी इस पर योगेश चिल्लाकर कहता है "समोसा नही गाजर खरीदा जाएगा।
कुछ दिन पहले विद्यालय में पंहुचकर शिक्षा व्यवस्था पर इन बच्चों का मैने इंटरव्यू किया था इस लिये इन्हें पहचानने में देरी नही हुई और मैने इनके साइकिल के पीछे अपनी बाइक धीमी गति में चलाना शुरू कर दिया ।
योगेश और अवधेश हमसे पहले मिल चुके थे इसलिए दोनों की आंखों में हमे देखने के बाद डर जैसी कोई स्थिति नही थी और वें अपनी रफ्तार में साइकिल चलाते हुए आगे की तरफ बढ़ रहे थे।
बस कुछ ही देर बाद चौराहा आने वाला था इसलिए मैंने अपनी बाइक उनके बगल में लगा दी और हाल-चाल पूछने के बाद पूछा कि कहां जा रहे हो तब तक दोनो बोल पड़ते हैं कि बाजार जा रहे हैं।
आगे चौराहा आ गया था इसलिए दोनों को वँहा पर मैने रोक लिया योगेश ने साइकिल खड़ी की और आकर मेरे बाइक से चिपककर खड़ा हो गया ।मैने पूछा बाजार से क्या खरीदना है तो दोनों ने मुस्कुराते हुए कहा कि अभी तो सोच रहे हैं कि क्या खरीदें।
मुझे पता था कि इनके पास ज्यादा पैंसा नही होगा लेकिन उन्ही के मुह से जानने के लिए मैने बोल दिया इसमे सोचना क्या है जो कुछ भी मन करे सब खरीद लो ।
इसके बाद दोनों एक दूसरे की आंखों में झांकते हुए निर्णय लेते हैं कि हम बता दें कि हमारे पास कितना पैंसा है ।तब तक योगेश बोल पड़ता है कि नही ...मेरे पास 10 रुपये का नोट है इसी में हमे सामान खरीदना है।
उसके बाद मैंने पूछा कि गाजर जैसे शब्द का प्रयोग कर रहे थे ,तो उन्होंने कहा नही हमने पहले सोचा था कि समोसा खरीदेंगे लेकिन फिर सोचा कि 10 रुपये में 2 ही समोसा मिलेगा इस लिए गाजर खरीद लेंगे जिसमे खा भी लेंगे थोड़ा घर भी लेकर चले जायेंगे।
यह बात सुनकर मेरी आँखें थोड़ी नम हुई लेकिन मैने उनसे तुरन्त बोल दिया चलो दुकान पर चाय पीते हैं ,पहले तो उन्होंने चाय पीने से मना कर दिया लेकिन जब मैने दुबारा प्रयास किया तो दोनों चाय की दुकान पर चलने के लिए तैयार हो गए।
दुकान पर बैठ कर उनसे काफी देर तक बात हुई तब तक वें चाय पकौड़ी काट रहे थे , इसी बीच योगेश बोला कि परसों मामा आये थे जाते वक्त हमे 10 रुपये का नोट दे दिए थे तब हम सोचे थे कि इसे लेकर बाजार जाएंगे।
शाम का वक्त धीरे -धीरे रात्रि होने की तरफ बढ़ रहा था तब तक अवधेश बोला अब हम जाएं ,हमने कहा हां जाओ ।
वो दोनो साइकिल पर बैठकर आगे की तरफ बढ़ रहे थे जब तक वें मेरी आँखों से ओझल नही हुए तब तक मैं उनको देख रहा था ऐसा लग रहा था कि हम लोग किस दुनिया मे जी रहे हैं जंहा पर एक दूसरे की चिंता किसी को नही है ।
हम सोच रहे थे एक तरफ लोग ऐशो आराम में जीवन काटते हुए प्रति दिन हजारों रुपया खर्च कर देते हैं दूसरी तरफ एक बड़ी आबादी 10 रुपये के नोट से अपने सपनों का जाल बिछा रही है ,काश ...इन बच्चों के घर रोज मामा आते।