विश्वपति वर्मा―
राष्ट्रीय एकता के स्थान पर प्रांतवाद ,भाषावाद, जातिवाद संप्रदायवाद और लिंगवाद के दर्शन होते हैं ।ऐसी स्थिति में देश में बिखराव की भावना बल पकड़ रही है ।
विभिन्न भाषा-भाषी यूरोप ने जिसमे अनेक राष्ट्र हैं एक लिप अपना ली है। लेकिन एक राष्ट्र भारत आज तक ऐसा नहीं कर पाया। भारत में ना कोई राष्ट्रीय भाषा भारत के शासक ला सके और ना ही एक लिपि सारे भारत में प्रचलित की गई ।
जब एकता का प्रयास ही नहीं हुआ तो राष्ट्रीयता कहां पनपेगी ।सारे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने वाले तत्वों के अभाव में एकता नहीं हो सकती और बिना एकता की समता नहीं आ सकती तो वंही बिना समता के राष्ट्रीयता लाना अंधे को गुब्बारा दिखाना है।
आज सारी शिक्षा विषमता और बिखराव पैदा करने वाली है। उत्तर के लोग राम का गुणगान करें और दक्षिण के रावण की तो राम और रावण की पढ़ाई किस राष्ट्रीयता को जन्म देगी । अच्छा हो कि इन कल्पित पात्रों की पढ़ाई बंद कर के वैज्ञानिक चिंतन का विकास किया जाए जिसमें लोग चमत्कार की के इच्छुक न रहकर सच्चाई और वास्तविकता के खोजी हों।
क्योंकि पिछले कई वर्षों से फेसबुक और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में देखने को मिल रहा है कि भारत की एक बड़ी आबादी बेबुनियाद मुद्दे पर बहँस करना पंसद करती है ,करे भी क्यों न जब उसके पास ज्ञान का कोई भंडार ही नही है तब वह राजनीतिक दलों द्वारा बोए जा रहे फर्जी राष्ट्रवाद के बीज में विकास के अंकुरित होने का सपना देख रहे हैं जो कभी संभव ही नही है।
राष्ट्रीय एकता के स्थान पर प्रांतवाद ,भाषावाद, जातिवाद संप्रदायवाद और लिंगवाद के दर्शन होते हैं ।ऐसी स्थिति में देश में बिखराव की भावना बल पकड़ रही है ।
विभिन्न भाषा-भाषी यूरोप ने जिसमे अनेक राष्ट्र हैं एक लिप अपना ली है। लेकिन एक राष्ट्र भारत आज तक ऐसा नहीं कर पाया। भारत में ना कोई राष्ट्रीय भाषा भारत के शासक ला सके और ना ही एक लिपि सारे भारत में प्रचलित की गई ।
जब एकता का प्रयास ही नहीं हुआ तो राष्ट्रीयता कहां पनपेगी ।सारे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने वाले तत्वों के अभाव में एकता नहीं हो सकती और बिना एकता की समता नहीं आ सकती तो वंही बिना समता के राष्ट्रीयता लाना अंधे को गुब्बारा दिखाना है।
आज सारी शिक्षा विषमता और बिखराव पैदा करने वाली है। उत्तर के लोग राम का गुणगान करें और दक्षिण के रावण की तो राम और रावण की पढ़ाई किस राष्ट्रीयता को जन्म देगी । अच्छा हो कि इन कल्पित पात्रों की पढ़ाई बंद कर के वैज्ञानिक चिंतन का विकास किया जाए जिसमें लोग चमत्कार की के इच्छुक न रहकर सच्चाई और वास्तविकता के खोजी हों।
क्योंकि पिछले कई वर्षों से फेसबुक और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में देखने को मिल रहा है कि भारत की एक बड़ी आबादी बेबुनियाद मुद्दे पर बहँस करना पंसद करती है ,करे भी क्यों न जब उसके पास ज्ञान का कोई भंडार ही नही है तब वह राजनीतिक दलों द्वारा बोए जा रहे फर्जी राष्ट्रवाद के बीज में विकास के अंकुरित होने का सपना देख रहे हैं जो कभी संभव ही नही है।