विश्वपति वर्मा―
भारत एक विकासशील देश है। आधी सदी से अधिक समय बिता चुका भारत आज भी अविकसित देशों की सूची में है।
हम आज भी विकास का लक्ष्य पाने के लिए जूझ रहे हैं, हमारे देश की आधी से अधिक आबादी पौष्टिक भोजन नहीं पाती ,46फीसदी से अधिक महिलाओं में खून की कमी है ,रोजगार का आलम यह कि पढ़े लिखे लोग चौराहे पर चाय चुक्कड़ पीकर जीवन यापन कर रहे हैं,देश की जनता जीवन उपयोगी वस्तु के लिए तरस रही है , एक तिहाई आबादी को आज भी दोनों वक्त का भरपेट भोजन नही मिल पाता ,यह देश नंगी सच्चाई है
लेकिन राजनीतिक दलों के मानसिक गुलाम लोगों का को क्या कहा जाए जो नेताओं से ऐसी स्थिति पर सवाल पूछने की बजाय सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस,निर्दल, दलदल का झंडा उठाने में अपने आप को महान समझ रहे हैं।
आखिर जनता के साथ इतना बड़ा धोखा क्यों है कि जो जनता नेताओं के लिए झंडा उठाती है बाद में उसी की व्यवस्था में मूलभूत आवश्यकताओं पर बदलाव नही आ पाता है ? आखिर शिक्षा जैसे जरूरी विषय पर आजतक बदलाव क्यों नही किया गया ?क्यों वही फटी पुरानी शिक्षा व्यवस्था को गरीब भारतीय नागरिकों पर थोपी जा रही है? यह सब देखते हुए स्पष्ट है कि सभी राजनीतिक पार्टियां गरीबों को शिक्षा से वंचित करना चाहती हैं ताकि उनके रैलियों में हल्ला मचाने के लिए लोग भीड़ का हिस्सा बनकर पंहुच सकें।
शिक्षा जिससे देश का विकास संभव है उसे एक बड़ी आबादी से दूर रखा गया है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूटने के लिए जो शिक्षा बच्चों को दी जा रही है वह शिक्षा किसी काम के नही है बल्कि उस शिक्षा से देश के नागरिक और विकलांग होते जा रहे हैं।
मजे की बात तो यह है कि ऐसी समस्या से देश का एक बड़ा वर्ग पीड़ित है लेकिन उन लोगों को क्या कहें जो सारी समस्याओं के बाद भी चुप बैठे हैं ,इनका हाल तो वैसे है जैसे बवासीर की बीमारी होने पर दर्द कितना भी हो लोग चुप रहते हैं।
ऐसा ही रहा तो आप झंडा उठाते रहिये आने वाली पीढ़ी आपको माफ नही करेगी। अभी भी वक्त है और सही वक्त है जब आप नेताओं से सवाल कीजिये कि आखिर शिक्षा व्यवस्था पर चुप्पी क्यों है।
भारत एक विकासशील देश है। आधी सदी से अधिक समय बिता चुका भारत आज भी अविकसित देशों की सूची में है।
हम आज भी विकास का लक्ष्य पाने के लिए जूझ रहे हैं, हमारे देश की आधी से अधिक आबादी पौष्टिक भोजन नहीं पाती ,46फीसदी से अधिक महिलाओं में खून की कमी है ,रोजगार का आलम यह कि पढ़े लिखे लोग चौराहे पर चाय चुक्कड़ पीकर जीवन यापन कर रहे हैं,देश की जनता जीवन उपयोगी वस्तु के लिए तरस रही है , एक तिहाई आबादी को आज भी दोनों वक्त का भरपेट भोजन नही मिल पाता ,यह देश नंगी सच्चाई है
लेकिन राजनीतिक दलों के मानसिक गुलाम लोगों का को क्या कहा जाए जो नेताओं से ऐसी स्थिति पर सवाल पूछने की बजाय सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस,निर्दल, दलदल का झंडा उठाने में अपने आप को महान समझ रहे हैं।
आखिर जनता के साथ इतना बड़ा धोखा क्यों है कि जो जनता नेताओं के लिए झंडा उठाती है बाद में उसी की व्यवस्था में मूलभूत आवश्यकताओं पर बदलाव नही आ पाता है ? आखिर शिक्षा जैसे जरूरी विषय पर आजतक बदलाव क्यों नही किया गया ?क्यों वही फटी पुरानी शिक्षा व्यवस्था को गरीब भारतीय नागरिकों पर थोपी जा रही है? यह सब देखते हुए स्पष्ट है कि सभी राजनीतिक पार्टियां गरीबों को शिक्षा से वंचित करना चाहती हैं ताकि उनके रैलियों में हल्ला मचाने के लिए लोग भीड़ का हिस्सा बनकर पंहुच सकें।
शिक्षा जिससे देश का विकास संभव है उसे एक बड़ी आबादी से दूर रखा गया है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूटने के लिए जो शिक्षा बच्चों को दी जा रही है वह शिक्षा किसी काम के नही है बल्कि उस शिक्षा से देश के नागरिक और विकलांग होते जा रहे हैं।
मजे की बात तो यह है कि ऐसी समस्या से देश का एक बड़ा वर्ग पीड़ित है लेकिन उन लोगों को क्या कहें जो सारी समस्याओं के बाद भी चुप बैठे हैं ,इनका हाल तो वैसे है जैसे बवासीर की बीमारी होने पर दर्द कितना भी हो लोग चुप रहते हैं।
ऐसा ही रहा तो आप झंडा उठाते रहिये आने वाली पीढ़ी आपको माफ नही करेगी। अभी भी वक्त है और सही वक्त है जब आप नेताओं से सवाल कीजिये कि आखिर शिक्षा व्यवस्था पर चुप्पी क्यों है।