विश्वपति वर्मा―
भारत की सरकारों द्वारा देश के नागरिकों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर सुधार करने की आवश्यकता है ,आज देश की बहुसंख्यक आबादी उचित शिक्षा पाने से वंचित है जिसका परिणाम है कि देश में भ्रष्टाचार व्यापक पैमाने पर बढ़ा है कम पढ़े लिखे लोग सरकारी दफ्तरों में शोषण का शिकार हो जाते हैं अक्सर उन्हें छोटे-मोटे कामों के लिए सरकारी कर्मचारियों को घूस देना पड़ता है देखने को मिला है कि जागरूक तबके के लोग उसका विरोध करते हैं और अपना काम लीगल तरीके पर करवाने के लिए लड़ाई भी लड़ते हैं ।
लेकिन ऐसा क्या है कि देश के नागरिकों के लिए सम्मान स्वाभिमान की बात करने वाली सरकारों में आज तक कूवत नहीं पैदा हो पाया कि गरीब आदमी के लिए वह खास नागरिकों के सामान व्यवस्था देने के लिए उत्साहित हो।
वर्तमान की मोदी सरकार गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने के लिए आम चुनाव 2014 में वादा कर सत्ता में आने में कामयाब हुई थी लेकिन पता नहीं कौन सा नजर सरकार को लग गया कि गरीबी ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार को हटाने की जगह यह सब कुछ बढ़ गया है।
ऐसी स्थिति में देश के प्रबुद्ध वर्ग को देश की वर्तमान व्यवस्था को समझने की जरूरत है साथ ही बदहाल व्यवस्था को देखते हुए उसके खात्मे के लिए अपने विचारों का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ सरकार से शिक्षा की सुधार वाली नीति लागू करने की मांग करने की जरूरत है ।
यदि ऐसा कुछ नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में भारत एक मानसिक गुलामी वाला देश होगा जहां गरीबों की संख्या ज्यादा होगी ,जहां पर भ्रष्टाचार ज्यादा होगा जहां पर अशिक्षितों की संख्या बढ़ेगी ,जहां पर बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी और फिर देश के नेता लोग भारत को विश्व गुरु के श्रेणी में लाने की बात करेंगे जो केवल और केवल वैश्विक स्तर पर भारत को हंसी के पात्र बनने जैसा होगा।
इसके लिए जरूरत यह है कि देश के प्रधानमंत्री चाय और चौकीदारी पर देश को न चलाएं संवैधानिक पद पर बैठे होने के कारण उन्हें इसकी गरिमा का ध्यान रखते हुए वास्तविक रूप से वंचित आबादी को मूलधारा में लाने के लिए काम करने की जरूरत है।अब जरूरत यह है कि चाय और चौकीदारी का नाम लेकर पीएम मोदी जनता को गुमराह करना बंद कर सर्वश्रेष्ठ शासक के तौर पर काम करें जो अभी तक नही हुआ।
भारत की सरकारों द्वारा देश के नागरिकों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर सुधार करने की आवश्यकता है ,आज देश की बहुसंख्यक आबादी उचित शिक्षा पाने से वंचित है जिसका परिणाम है कि देश में भ्रष्टाचार व्यापक पैमाने पर बढ़ा है कम पढ़े लिखे लोग सरकारी दफ्तरों में शोषण का शिकार हो जाते हैं अक्सर उन्हें छोटे-मोटे कामों के लिए सरकारी कर्मचारियों को घूस देना पड़ता है देखने को मिला है कि जागरूक तबके के लोग उसका विरोध करते हैं और अपना काम लीगल तरीके पर करवाने के लिए लड़ाई भी लड़ते हैं ।
लेकिन ऐसा क्या है कि देश के नागरिकों के लिए सम्मान स्वाभिमान की बात करने वाली सरकारों में आज तक कूवत नहीं पैदा हो पाया कि गरीब आदमी के लिए वह खास नागरिकों के सामान व्यवस्था देने के लिए उत्साहित हो।
वर्तमान की मोदी सरकार गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने के लिए आम चुनाव 2014 में वादा कर सत्ता में आने में कामयाब हुई थी लेकिन पता नहीं कौन सा नजर सरकार को लग गया कि गरीबी ,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार को हटाने की जगह यह सब कुछ बढ़ गया है।
ऐसी स्थिति में देश के प्रबुद्ध वर्ग को देश की वर्तमान व्यवस्था को समझने की जरूरत है साथ ही बदहाल व्यवस्था को देखते हुए उसके खात्मे के लिए अपने विचारों का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ सरकार से शिक्षा की सुधार वाली नीति लागू करने की मांग करने की जरूरत है ।
यदि ऐसा कुछ नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में भारत एक मानसिक गुलामी वाला देश होगा जहां गरीबों की संख्या ज्यादा होगी ,जहां पर भ्रष्टाचार ज्यादा होगा जहां पर अशिक्षितों की संख्या बढ़ेगी ,जहां पर बेरोजगारों की संख्या बढ़ेगी और फिर देश के नेता लोग भारत को विश्व गुरु के श्रेणी में लाने की बात करेंगे जो केवल और केवल वैश्विक स्तर पर भारत को हंसी के पात्र बनने जैसा होगा।
इसके लिए जरूरत यह है कि देश के प्रधानमंत्री चाय और चौकीदारी पर देश को न चलाएं संवैधानिक पद पर बैठे होने के कारण उन्हें इसकी गरिमा का ध्यान रखते हुए वास्तविक रूप से वंचित आबादी को मूलधारा में लाने के लिए काम करने की जरूरत है।अब जरूरत यह है कि चाय और चौकीदारी का नाम लेकर पीएम मोदी जनता को गुमराह करना बंद कर सर्वश्रेष्ठ शासक के तौर पर काम करें जो अभी तक नही हुआ।