विश्वपति वर्मा―
पांच साल का समय घडी की सूइयों को देखते देखते न जाने कब बदल गया यह किसी को पता नह चल पाया ,सूइयों की चाल की तरहं देश की स्थिति में भी बदलाव आना था लेकिन इन पांच सालों में कुछ बदला हुआ देखने को मिला तो सांसदों का भवन , गाड़ियां ,एवं फटे हुए चादर के अंदर रहने वाला भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय कार्यालय ।
अब सवाल पैदा होता है कि देश के उन गरीब और असहाय वर्ग के लिए व्यवस्था में बदलाव क्यों नही लाया जा रहा है जो देश मे 22 रुपये से कम पर गुजारा कर रहे हैं।
एक रसोईया जो सैकड़ बच्चों के लिए खाना बनाती है उसे दैनिक मजदूरी मिलता है 33 रुपया ,एक असहाय वर्ग जो सरकार पर आश्रित है उसे दैनिक पेंशन मिलता है 16 रुपया ,वह बच्चे जिनके माता- पिता श्रमिक वर्ग से आते हैं उनके बच्चों के शिक्षा के लिए कोई योजना नही है ,भीख मांग कर खाने वाले लोगों की तरहं आज भी उनके बच्चों को मिड डे मील परोसा जाता है क्या यही सबका साथ ,सबका विकास का मतलब है।
पांच साल का समय घडी की सूइयों को देखते देखते न जाने कब बदल गया यह किसी को पता नह चल पाया ,सूइयों की चाल की तरहं देश की स्थिति में भी बदलाव आना था लेकिन इन पांच सालों में कुछ बदला हुआ देखने को मिला तो सांसदों का भवन , गाड़ियां ,एवं फटे हुए चादर के अंदर रहने वाला भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय कार्यालय ।
अब सवाल पैदा होता है कि देश के उन गरीब और असहाय वर्ग के लिए व्यवस्था में बदलाव क्यों नही लाया जा रहा है जो देश मे 22 रुपये से कम पर गुजारा कर रहे हैं।
एक रसोईया जो सैकड़ बच्चों के लिए खाना बनाती है उसे दैनिक मजदूरी मिलता है 33 रुपया ,एक असहाय वर्ग जो सरकार पर आश्रित है उसे दैनिक पेंशन मिलता है 16 रुपया ,वह बच्चे जिनके माता- पिता श्रमिक वर्ग से आते हैं उनके बच्चों के शिक्षा के लिए कोई योजना नही है ,भीख मांग कर खाने वाले लोगों की तरहं आज भी उनके बच्चों को मिड डे मील परोसा जाता है क्या यही सबका साथ ,सबका विकास का मतलब है।