विश्वपति वर्मा―
पूरे देश मे हर किसी को सम्मान से जिंदगी जीने का अधिकार है साथ ही देश भर में संवैधानिक एवं गैर संवैधानिक पदों पर बैठों लोगों द्वारा एक दूसरे को सम्मान दिया जाए यही देश के नागरिकों की अपेक्षा है ।
लेकिन देखने को मिलता है कि सर्वाधिक मामलों में पुलिस की लिबास में यूपी की खाकी मर्यादाओं की सीमा को लांघ जाती है जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश मे न्यायसंगत नही है।
ताजा मामला बस्ती जनपद के गौर थाने में तैनात प्रभारी निरीक्षक संजय नाथ तिवारी को लेकर है जंहा खाकी वर्दी में उनकी तानाशाही देखी जाती है ,कई मामलों को लेकर उनकी कार्यशैली पर लोगों द्वारा सवाल उठाते हमने भी सुना था लेकिन एक वाकया जंहा वें खुद मुझसे ही अभद्रता कर बैठे ऐसी स्थिति में वर्दी की लिबास में ऐसे व्यक्ति को तानाशाह न माना जाए तो क्या कहा जाए।
मामला 27 मार्च का है जब शिवाघाट नदी में एक लड़की छलांग दी थी इस मामले की सूचना पर गौर और सोनहा थाने की पुलिस मौके पर पंहुची थी ,इसी बीच प्रभारी निरीक्षक गौर संजय नाथ तिवारी भी पंहुच गए उनकी गाड़ी रुकने के बाद कुछ लोग उनके पास बढ़े जिसमे मैं भी शामिल था एक दो लोगों ने संजय नाथ का पैर छुआ सम्मान स्वरूप हमने भी सादर प्रणाम किया लेकिन ये क्या SHO साहब भड़क गए और कह दिए योगी हो क्या ...उन्होंने योगी कह दिया उससे मेरे सम्मान पर कोई ठेस नही पंहुचा लेकिन जब मैने जवाब दिया नही मैं पत्रकार हूँ तो प्रभारी निरीक्षक मर्यादाओं की सीमा को लांघ कर कह रहे हैं देखने मे तो गुंडा लग रहे हो।
अब क्या मुझे कहने के लिए कुछ बचा ही नही जिसका मैं जवाब दूं ,देना भी नही था क्योंकि किसी के दुख के घड़ी में उसकी सहायता करना हमारा कर्त्तव्य बनता है और मैं वही कर रहा था लिहाजा मैं चुप होकर बगल खड़ा हो गया।
अब यंहा प्रभारी निरीक्षक पर कई सवाल खड़े होते हैं पहला ये कि योगी कहने का क्या तात्पर्य क्या था ?और दूसरा कि अपना परिचय देने के बाद गुंडा जैसे दिखने वाली बात कैसे उनके ख्याल में आ गई ,मैं भाग कर घर आया और सीसे के सामने मैं बार- बार अपने आपको देख रहा था कि मैं गुंडा किस तरफ से लग रहा हूँ, मुझे अपने आप मे कोई गुंडागर्दी नही दिखाई दे रही थी लिहाजा मुझे उनकी इस अभद्रता के खिलाफ लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा।
शायद प्रभारी निरीक्षक को हमारे बारे में पता नहीं है कि पत्रकारिता और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में समाज मे किये गए अच्छे कार्यों के चलते कई बार हमें प्रशस्ति पत्र मिल चुका है और यह बात सबको पता है कि यह सम्मान गुंडा और मवालियों को नही मिलता है ।
इंडियन ऑयल कारपोरेशन द्वारा जल संरक्षण पर किये गए योगदान पर सम्मान ,ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं पर महावारी की समस्या पर लिखे गए धरातलीय रिपोर्ट पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सम्मान ,निःशुल्क कंप्यूटर शिक्षा की बेशिक जानकारी पर किये गए योगदान पर तहसील प्रशासन द्वारा सम्मान,सर्वश्रेष्ठ लेखक होने पर सरस सलिल द्वारा सम्मान,सतत विकास लक्ष्य 2030को पूरा करने के लिए गरीबी उन्मूलन पर लिखे गए लेख और सुझाव पर सीएनएस द्वारा सम्मान इसी तरहं दर्जनों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा समाज के लिए किए गए सार्थक प्रयास पर सम्मान से नवाजा गया है।क्या यह सम्मान गुंडा होने पर मिला है? समाज को इस पर विचार करने की जरूरत है।
अब यंहा प्रभारी निरीक्षक संजयनाथ तिवारी पर एक सवाल और खड़ा होता है कि जब वें पत्रकार और जागरूक व्यक्तियों से इस अंदाज में पेश आते हैं तो वें आम आदमी से किस लहजे में मुखातिब होते हैं ,इसी तरहं ऐसे व्यक्तियों पर तो कई सवाल खड़े होते हैं जो शांति और सुरक्षा व्यवस्था में नाकामयाब रहता है वह दूसरों को शांति बनाने की सलाह कैसे दे सकता है ।
फिलहाल वर्दी में रहते हुए अपनी मर्यादाओं को नही भूलना चाहिए क्योंकि जिन शब्दों और व्यवहारों पर लोगों से सम्मान मिलता है वही शब्द और व्यवहार अपमान भी कराता है ।
पूरे देश मे हर किसी को सम्मान से जिंदगी जीने का अधिकार है साथ ही देश भर में संवैधानिक एवं गैर संवैधानिक पदों पर बैठों लोगों द्वारा एक दूसरे को सम्मान दिया जाए यही देश के नागरिकों की अपेक्षा है ।
लेकिन देखने को मिलता है कि सर्वाधिक मामलों में पुलिस की लिबास में यूपी की खाकी मर्यादाओं की सीमा को लांघ जाती है जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश मे न्यायसंगत नही है।
ताजा मामला बस्ती जनपद के गौर थाने में तैनात प्रभारी निरीक्षक संजय नाथ तिवारी को लेकर है जंहा खाकी वर्दी में उनकी तानाशाही देखी जाती है ,कई मामलों को लेकर उनकी कार्यशैली पर लोगों द्वारा सवाल उठाते हमने भी सुना था लेकिन एक वाकया जंहा वें खुद मुझसे ही अभद्रता कर बैठे ऐसी स्थिति में वर्दी की लिबास में ऐसे व्यक्ति को तानाशाह न माना जाए तो क्या कहा जाए।
मामला 27 मार्च का है जब शिवाघाट नदी में एक लड़की छलांग दी थी इस मामले की सूचना पर गौर और सोनहा थाने की पुलिस मौके पर पंहुची थी ,इसी बीच प्रभारी निरीक्षक गौर संजय नाथ तिवारी भी पंहुच गए उनकी गाड़ी रुकने के बाद कुछ लोग उनके पास बढ़े जिसमे मैं भी शामिल था एक दो लोगों ने संजय नाथ का पैर छुआ सम्मान स्वरूप हमने भी सादर प्रणाम किया लेकिन ये क्या SHO साहब भड़क गए और कह दिए योगी हो क्या ...उन्होंने योगी कह दिया उससे मेरे सम्मान पर कोई ठेस नही पंहुचा लेकिन जब मैने जवाब दिया नही मैं पत्रकार हूँ तो प्रभारी निरीक्षक मर्यादाओं की सीमा को लांघ कर कह रहे हैं देखने मे तो गुंडा लग रहे हो।
अब क्या मुझे कहने के लिए कुछ बचा ही नही जिसका मैं जवाब दूं ,देना भी नही था क्योंकि किसी के दुख के घड़ी में उसकी सहायता करना हमारा कर्त्तव्य बनता है और मैं वही कर रहा था लिहाजा मैं चुप होकर बगल खड़ा हो गया।
अब यंहा प्रभारी निरीक्षक पर कई सवाल खड़े होते हैं पहला ये कि योगी कहने का क्या तात्पर्य क्या था ?और दूसरा कि अपना परिचय देने के बाद गुंडा जैसे दिखने वाली बात कैसे उनके ख्याल में आ गई ,मैं भाग कर घर आया और सीसे के सामने मैं बार- बार अपने आपको देख रहा था कि मैं गुंडा किस तरफ से लग रहा हूँ, मुझे अपने आप मे कोई गुंडागर्दी नही दिखाई दे रही थी लिहाजा मुझे उनकी इस अभद्रता के खिलाफ लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा।
शायद प्रभारी निरीक्षक को हमारे बारे में पता नहीं है कि पत्रकारिता और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में समाज मे किये गए अच्छे कार्यों के चलते कई बार हमें प्रशस्ति पत्र मिल चुका है और यह बात सबको पता है कि यह सम्मान गुंडा और मवालियों को नही मिलता है ।
इंडियन ऑयल कारपोरेशन द्वारा जल संरक्षण पर किये गए योगदान पर सम्मान ,ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं पर महावारी की समस्या पर लिखे गए धरातलीय रिपोर्ट पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सम्मान ,निःशुल्क कंप्यूटर शिक्षा की बेशिक जानकारी पर किये गए योगदान पर तहसील प्रशासन द्वारा सम्मान,सर्वश्रेष्ठ लेखक होने पर सरस सलिल द्वारा सम्मान,सतत विकास लक्ष्य 2030को पूरा करने के लिए गरीबी उन्मूलन पर लिखे गए लेख और सुझाव पर सीएनएस द्वारा सम्मान इसी तरहं दर्जनों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा समाज के लिए किए गए सार्थक प्रयास पर सम्मान से नवाजा गया है।क्या यह सम्मान गुंडा होने पर मिला है? समाज को इस पर विचार करने की जरूरत है।
अब यंहा प्रभारी निरीक्षक संजयनाथ तिवारी पर एक सवाल और खड़ा होता है कि जब वें पत्रकार और जागरूक व्यक्तियों से इस अंदाज में पेश आते हैं तो वें आम आदमी से किस लहजे में मुखातिब होते हैं ,इसी तरहं ऐसे व्यक्तियों पर तो कई सवाल खड़े होते हैं जो शांति और सुरक्षा व्यवस्था में नाकामयाब रहता है वह दूसरों को शांति बनाने की सलाह कैसे दे सकता है ।
फिलहाल वर्दी में रहते हुए अपनी मर्यादाओं को नही भूलना चाहिए क्योंकि जिन शब्दों और व्यवहारों पर लोगों से सम्मान मिलता है वही शब्द और व्यवहार अपमान भी कराता है ।