2019 लोकसभा चुनाव में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार सीपीआई की टिकट से अब बिहार के बेगूसराय से लोकसभा में प्रत्याशी हैं. कन्हैया कुमार को उम्मीद थी कि खुद को सामाजिक क्रांति का सबसे बड़ा पैरोकार मानने वाले लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी उनको समर्थन करेगी. उनकी उम्मीदों को तोड़ते हुए आरजेडी ने तनवीर हसन को उतार दिया है. पिछली बार तनवीर 60 हजार वोटों से हार गए थे. आरजेडी नेताओं का कहना है कि पिछली बार तनवीर हसन को अच्छा-खासा समर्थन मिला था और स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाओं का खयाल रखते हुए यह फैसला लिया गया है. वहीं जेडीयू नेता केसी त्यागी का कहना है कि आरजेडी नेताओं को लगता है कि कन्हैया कुमार से तेजस्वी को खतरा हो सकता है कि तेजस्वी नहीं चाहते हैं कि बिहार में उनके कद का कोई नेता हो जाए. इसलिए वे कन्हैया को हराना चाहते हैं।
आपको बता दें कि बेगूसराय से बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री और हिंदुत्व पर बयानों के लिए मशहूर गिरिराज सिंह को उतारा है. जातीय समीकरणों के हिसाब से देखें तो कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों ही भूमिहार जाति से आते हैं. इस जाति का बेगूसराय में अच्छा-खासा प्रभाव है. बिहार के बेगूसराय जिले को कभी 'पूरब का लेनिनग्राद' कहा जाता था. आज भी कई इलाकों में उसके समर्थक उस दौर को याद करते हैं जब बिहार में ऊंची जाति में गिने जाने वाले भूमिहारों ने वामपंथ का झंडा थामकर यहां के 'जमींदारों' के खिलाफ पहली बार मोर्चा खोल दिया था. खास बात यह थी कि जिनके खिलाफ यह मोर्चा खोला गया था वह भी भूमिहार थे, जिनका लाल मिर्च की खेती में एकाधिकार था. इस लड़ाई में जो नेता उभरे चंद्रशेखर सिंह, सीताराम मिश्रा, राजेंद्र प्रसाद सिंह ये सभी भूमिहार समुदाय से आते थे. धीरे-धीरे तेघड़ा और बछवारा विधानसभा सीटें वामपंथ का गढ़ बन गईं और कोई भी लहर इसको भेदने में नाकाम रही.