विश्वपति वर्मा _
बेशक भारत कृषि प्रधान देश है जंहा 70 फीसदी आबादी कृषि आधारित कार्य करके जीवन यापन करती है तथा देश के डाँक्टरों इंजीनियरों ,नेताओं के साथ कारपोरेट घरानों के लोगों को जीवन देती है लेकिन किसानों की समस्याओं पर सुधि लेने वाला कोई नही है ।
भारत के अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार की खेती होती है जिसमे गेंहूँ, धान, गन्ना, कपास, आलू, टमाटर, प्याज ,लहसुन, दाल, चना, सरसो जौ, सोया, इत्यादि प्रकार की खेती की जाती है और इन्ही किसानों के दम पर पांच सितारा एवं सात सितारा होटलों में लोग अपने आप को देश का वैभवशाली व्यक्ति मानते हैं और इन होटल वालों का भी आय का एक लंबा श्रोत बनता है लेकिन किसानों के आजीविका में वृद्धि होने की बात आती है तो वह सिफर है ।
आजादी के बाद से देश मे बदलाव आया ,समय बदला लोग स्वतंत्र हुए सबको अलग अलग जिम्मेदारी मिली साथ ही सरकारी महकमों से लेकर राजनीतिक गलियारों में आय के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई परन्तु किसानों के आजीविका में वृद्धि की बात आती है तो देश में वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोगों द्वारा चुप्पी साध ली जाती है ।
उत्तर प्रदेश में गेंहूँ, धान, गन्ना, आलू ,किसानों द्वारा बोई जाने वाली पहली पसंद है लेकिन लगातार किसान अपने परम्परागत खेती करने से पीछे हट रहे हैं ऐसे ही देश के अन्य हिस्सों के किसानों की समस्या सामने आ रही है ।
एक रिपोर्ट के मुताविक 61 फीसदी किसानों ने कहा कि अगर उन्हें शहरों में नौकरी मिल जाये तो वें खेतीबाड़ी का कार्य छोड़ देंगे क्योंकि खेती से होने वाली आमदनी से उनकी जरूरत पूरी नही होती इतना ही नही अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्हें खेती से हटकर भी कमाई के रास्ते तलाशने पड़ते हैं यह सब जानने के बाद यह स्पष्ट होता है कि किसानों की वर्तमान स्थिति बद से बदतर है।
जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों पर गौर करें तो किसानों की संख्या में लगातार कमी आ रही है वर्ष 1991 में देश मे जंहा 11 करोड़ किसान थे वंही 2001 में उनकी संख्या घटकर 10.3 करोड़ राह गई जबकि वर्ष 2011 में यह आंकड़ा 9.58 करोड़ के साथ और भी भयावह रहा है ।
स्थिति यह है कि हमारा किसान संपूर्ण पूंजी और श्रम का निवेश कर खेतों को लहलहाता है पर जब उसे अपने कृषि उत्पादों की उचित कीमत नहीं मिलती तो वह निराश हो जाता है 40% किसानों ने यह माना है कि कृषि बेहद जोखिम भरा एवं जटिल खेती है इसलिए वह कृषिकार्य को छोडना चाहते हैं सवाल भी है कि आखिर जब किसानो की फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा तो किसान खेती मे काहे के लिए अपना समय एवं जीवन बर्बाद करेंगे ।
देश में जहां की 70 फीसदी आबादी कृषि पर ही आश्रित है यदि सरकार द्वारा किसानों को खेती से लाभ दिलाने में दीर्घकालिक उपायों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो इस स्थिति भयानक हो सकती है संभव है कि किसान रोजी रोटी की तलाश में अन्य क्षेत्रों की ओर रुख कर जाएंगे ऐसे में हमें गंभीर खाद्दान्न के संकट का सामना करना पड़ सकता है ।
अतः सरकार को यह तय करना होगा कि कृषि आधारित क्षेत्रों में आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उधोग, कृषि सहायक उधोग की योजना बनाया जाए साथ ही यह तय की जाए कि खेती सहकारी संस्था द्वारा कराया जाए और यह प्रावधान किया जाए कि खेती उत्पादों को बड़े बड़े स्टोर एवं शीतगृह बनाकर सुरक्षित रखा जाए तथा भंडारों एवं स्टोरेजों का पूरा नियंत्रण स्थानीय प्रशासन का हो एवं सरकार द्वारा सहकारी संस्था को ट्रैक्टर, ट्राली, बीज, पानी, पम्प, खाद, दवा आदि संबंधित वस्तुओं की आपूर्ति की जाए तथा श्रमिक किसानों को मनरेगा की दर पर उनके कार्यदिवस पर भुगतान भी किया जाए अगर ऐसा होता है तो वास्तव में किसानों के दिन बदलने लगेंगे एवं सरकार का अच्छे दिन का दावा करने वाला सपना भी साकार हो जाएगा
अगर देश मे नौकरशाहों एवं राजनेताओं के भत्ते में वृद्धि हुई है तो किसानों के आजीविका में वृद्धि हो इसके लिए समुचित व्यवस्था क्यों नही बनाई जाती?
भारत के अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार की खेती होती है जिसमे गेंहूँ, धान, गन्ना, कपास, आलू, टमाटर, प्याज ,लहसुन, दाल, चना, सरसो जौ, सोया, इत्यादि प्रकार की खेती की जाती है और इन्ही किसानों के दम पर पांच सितारा एवं सात सितारा होटलों में लोग अपने आप को देश का वैभवशाली व्यक्ति मानते हैं और इन होटल वालों का भी आय का एक लंबा श्रोत बनता है लेकिन किसानों के आजीविका में वृद्धि होने की बात आती है तो वह सिफर है ।
आजादी के बाद से देश मे बदलाव आया ,समय बदला लोग स्वतंत्र हुए सबको अलग अलग जिम्मेदारी मिली साथ ही सरकारी महकमों से लेकर राजनीतिक गलियारों में आय के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई परन्तु किसानों के आजीविका में वृद्धि की बात आती है तो देश में वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोगों द्वारा चुप्पी साध ली जाती है ।
उत्तर प्रदेश में गेंहूँ, धान, गन्ना, आलू ,किसानों द्वारा बोई जाने वाली पहली पसंद है लेकिन लगातार किसान अपने परम्परागत खेती करने से पीछे हट रहे हैं ऐसे ही देश के अन्य हिस्सों के किसानों की समस्या सामने आ रही है ।
एक रिपोर्ट के मुताविक 61 फीसदी किसानों ने कहा कि अगर उन्हें शहरों में नौकरी मिल जाये तो वें खेतीबाड़ी का कार्य छोड़ देंगे क्योंकि खेती से होने वाली आमदनी से उनकी जरूरत पूरी नही होती इतना ही नही अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए उन्हें खेती से हटकर भी कमाई के रास्ते तलाशने पड़ते हैं यह सब जानने के बाद यह स्पष्ट होता है कि किसानों की वर्तमान स्थिति बद से बदतर है।
जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों पर गौर करें तो किसानों की संख्या में लगातार कमी आ रही है वर्ष 1991 में देश मे जंहा 11 करोड़ किसान थे वंही 2001 में उनकी संख्या घटकर 10.3 करोड़ राह गई जबकि वर्ष 2011 में यह आंकड़ा 9.58 करोड़ के साथ और भी भयावह रहा है ।
स्थिति यह है कि हमारा किसान संपूर्ण पूंजी और श्रम का निवेश कर खेतों को लहलहाता है पर जब उसे अपने कृषि उत्पादों की उचित कीमत नहीं मिलती तो वह निराश हो जाता है 40% किसानों ने यह माना है कि कृषि बेहद जोखिम भरा एवं जटिल खेती है इसलिए वह कृषिकार्य को छोडना चाहते हैं सवाल भी है कि आखिर जब किसानो की फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा तो किसान खेती मे काहे के लिए अपना समय एवं जीवन बर्बाद करेंगे ।
देश में जहां की 70 फीसदी आबादी कृषि पर ही आश्रित है यदि सरकार द्वारा किसानों को खेती से लाभ दिलाने में दीर्घकालिक उपायों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो इस स्थिति भयानक हो सकती है संभव है कि किसान रोजी रोटी की तलाश में अन्य क्षेत्रों की ओर रुख कर जाएंगे ऐसे में हमें गंभीर खाद्दान्न के संकट का सामना करना पड़ सकता है ।
अतः सरकार को यह तय करना होगा कि कृषि आधारित क्षेत्रों में आर्थिक ढांचे को मजबूत करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उधोग, कृषि सहायक उधोग की योजना बनाया जाए साथ ही यह तय की जाए कि खेती सहकारी संस्था द्वारा कराया जाए और यह प्रावधान किया जाए कि खेती उत्पादों को बड़े बड़े स्टोर एवं शीतगृह बनाकर सुरक्षित रखा जाए तथा भंडारों एवं स्टोरेजों का पूरा नियंत्रण स्थानीय प्रशासन का हो एवं सरकार द्वारा सहकारी संस्था को ट्रैक्टर, ट्राली, बीज, पानी, पम्प, खाद, दवा आदि संबंधित वस्तुओं की आपूर्ति की जाए तथा श्रमिक किसानों को मनरेगा की दर पर उनके कार्यदिवस पर भुगतान भी किया जाए अगर ऐसा होता है तो वास्तव में किसानों के दिन बदलने लगेंगे एवं सरकार का अच्छे दिन का दावा करने वाला सपना भी साकार हो जाएगा