विश्वपति वर्मा_
बिहार में चमकी बुखार नामक बीमारी के चपेट में आकर जिस तरहं से बच्चे मरते चले गए वह सचमुच में डराने वाला था लेकिन उससे भी ज्यादा डराने वाली बात टीवी चैनल के पत्रकारों की नैतिकता की पतन का है ।
पत्रकारों ने पत्रकारिता के नैतिकता और स्थापित मानदंडों की परवाह किये बिना अस्पतालों के ICU में जाकर रिपोर्टिंग किया ,अंजना ओम कश्यप जैसी लेडी रिपोर्टरों ने सरकार और विभाग के आला अधिकारियों से सवाल पूछने की बजाय ICU में इलाज कर रहे डॉक्टर को ही घेर लिया, ऐसे त्रासदी के मौके पर इन पत्रकारों के संवेदनशीलता पर सवाल पैदा होता है जिन्होंने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए सभी नियमों और कानूनों को तोड़ दिया।
एक बड़े चैनल में कार्यकारी संपादक होने के बाद भी शायद यह बात अंजना भूल गईं कि 2014 में डाo हर्षबर्धन ने इसी बिहार के मातम वाले क्षेत्रों में ही चिकित्सा सुबिधाओं के नाम पर कई बड़े योजनाओं की घोषणा की थी लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा उनके द्वारा की गई घोषणाओं पर फूटी कौड़ी भी खर्च नही किया गया।
इसलिए बेहतर होता कि अंजना अस्पताल के डॉक्टरों को निशाना बनाने की बजाय सरकार को घेरतीं, आला अधिकारियों से प्रश्न करतीं ,अस्पताल की अव्यवस्थाओं पर सवाल उठातीं लेकिन नही उन्हें तो उस मातम वाले क्षेत्र की त्रासदी को दिखा कर देश भर में वाहवाही लूटना था कि वह कैसे नियमों की सीमा रेखा को लांघ कर ICU में रिपोर्टिंग कर लेती हैं।
बिहार में चमकी बुखार नामक बीमारी के चपेट में आकर जिस तरहं से बच्चे मरते चले गए वह सचमुच में डराने वाला था लेकिन उससे भी ज्यादा डराने वाली बात टीवी चैनल के पत्रकारों की नैतिकता की पतन का है ।
पत्रकारों ने पत्रकारिता के नैतिकता और स्थापित मानदंडों की परवाह किये बिना अस्पतालों के ICU में जाकर रिपोर्टिंग किया ,अंजना ओम कश्यप जैसी लेडी रिपोर्टरों ने सरकार और विभाग के आला अधिकारियों से सवाल पूछने की बजाय ICU में इलाज कर रहे डॉक्टर को ही घेर लिया, ऐसे त्रासदी के मौके पर इन पत्रकारों के संवेदनशीलता पर सवाल पैदा होता है जिन्होंने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए सभी नियमों और कानूनों को तोड़ दिया।
एक बड़े चैनल में कार्यकारी संपादक होने के बाद भी शायद यह बात अंजना भूल गईं कि 2014 में डाo हर्षबर्धन ने इसी बिहार के मातम वाले क्षेत्रों में ही चिकित्सा सुबिधाओं के नाम पर कई बड़े योजनाओं की घोषणा की थी लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा उनके द्वारा की गई घोषणाओं पर फूटी कौड़ी भी खर्च नही किया गया।
इसलिए बेहतर होता कि अंजना अस्पताल के डॉक्टरों को निशाना बनाने की बजाय सरकार को घेरतीं, आला अधिकारियों से प्रश्न करतीं ,अस्पताल की अव्यवस्थाओं पर सवाल उठातीं लेकिन नही उन्हें तो उस मातम वाले क्षेत्र की त्रासदी को दिखा कर देश भर में वाहवाही लूटना था कि वह कैसे नियमों की सीमा रेखा को लांघ कर ICU में रिपोर्टिंग कर लेती हैं।