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शनिवार, 8 जून 2019

लैंगिक समानता सूचकांक की हालिया सूची में भारत घाना, रवांडा और भूटान जैसे देशों से भी पीछे

लैंगिक समानता सूचकांक की हालिया सूची में भारत घाना, रवांडा और भूटान जैसे देशों से भी पीछे है. सूचकांक में पहले स्थान पर डेनमार्क और 129वें पायदान पर चाड है. चीन 74वें स्थान, पाकिस्तान 113वें, नेपाल 102 और बांग्लादेश 110वें पायदान पर है।

 स्त्री-पुरुष समानता सूचकांक में भारत 129 देशों में से 95वें पायदान पर है. इस तरह से लैंगिक समानता सूचकांक की हालिया सूची में भारत घाना, रवांडा और भूटान जैसे देशों से भी पीछे है.अधिकतम 100 अंक में से सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के लैंगिक मापदंडों पर विभिन्न देशों के प्रदर्शन के मामले में भारत का स्कोर 56.2 रहा.बता दें कि यह सूचकांक गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, साक्षरता, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और कार्यस्थल पर समानता जैसे पहलुओं का आंकलन करता है

सतत विकास लक्ष्य लैंगिक सूचकांक को ब्रिटेन की इक्वल मेजर्स 2030 ने तैयार किया है.यह अफ्रीकन विमेंस डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन नेटवर्क, एशिया पैसेफिक रिसोर्स एंड रिसर्च सेंटर फॉर वीमेन, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, इंटरनेशनल विमेंस हेल्थ कोलिशन समेत क्षेत्रीय और वैश्विक संगठनों का एक संयुक्त प्रयास है. 

इस नए सूचकांक में 17 आधिकारिक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से 14 के 51 संकेतक शामिल हैं. सूचकांक में भारत दुनिया के 129 देशों में से 95 वें पायदान पर है. भारत का सबसे ज्यादा स्कोर एसडीजी तीन के स्वास्थ्य क्षेत्र (79.9), भूख एवं पोषण (76.2) और ऊर्जा क्षेत्र (71.8) में रहा.भारत का सबसे कम स्कोर भागीदारी क्षेत्र (18.3), उद्योग, बुनियादी ढांचा एवं नवोन्मेष (38.1) और जलवायु (43.4) में रहा. भारत एशिया और प्रशांत क्षेत्र में निचले पायदान पर है. एशिया और प्रशांत के 23 देशों में उसे 17 वें स्थान पर रखा गया है.सूचकांक में पहले स्थान पर डेनमार्क और 129 वें पायदान पर चाड है. चीन 74 वें स्थान और पाकिस्तान 113 वें जबकि नेपाल 102 और बांग्लादेश 110 वें पायदान पर है.इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इक्वल मेजर्स 2030 की निदेशक एलिसन होल्डर ने कहा कि केवल 11 साल बचे होने के बावजूद हमारे सूचकांक में पाया गया है कि 129 देशों में से एक भी पूरी तरह से अपने कानूनों, नीतियों या सार्वजनिक बजट के फैसले को 2030 तक लैंगिक समानता तक पहुंचने के लिए बदल नहीं रहे हैं. अरबों की संख्या में लड़कियों और महिलाओं के लिए लैंगिक समानत के वादों को पूरा करने में निश्चित तौर पर विफल हो रहे हैं.

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