विश्वपति वर्मा
संपादक-तहकीकात समाचार
मीडिया की औकात लोग देख रहे हैं. हमारे लिए तो यह चिंताजनक है लेकिन गोदी और भोगी मीडिया पर नजरें दौड़ाएं तो इसमें गलत क्या है खुद मीडिया समूहों ने अपने जमीर को बेंच कर अपनी औकात को फीका किया है।
टीआरपीकरण और सनसनीखेज बनने के कारण ख़बरों में नमक-मिर्च लगाकर पेश करना मीडिया समूहों और भोगी पत्रकारों की आदत हो गई है. उसे चटखारेदार बनाने के प्रयासों में हम नैतिकता से भटक जाते हैं. टीवी में ब्रेकिंग न्यूज़ की होड़ में यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि सच्चाई क्या है?
आज प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सामाजिक मीडिया से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि ये वही मठाधीश मीडिया है जो अपनी टीआरपी के चक्कर मे मुद्दे को ताक पर रखने में जरा सा भी गुरेज नहीं करती है।वंही सामाजिक मीडिया के मोबाइल पत्रकार मुद्दे की वीडियो और तस्वीर जारी कर प्रोफेशनल पत्रकारों के अस्तित्व पर सवाल तो खड़ा कर ही देते हैं।
आज समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के बड़े बड़े पत्रकारों की प्रभावशीलता सरकार के सामने घट गई है क्योंकि सरकार में बैठे लोगों को पता है कि इस वर्ग का धरातल पर व्याप्त समस्याओं और मुद्दों को उठाने की चिंता नही है ,उन्हें तो बस यह दिखाना है जो सीएमओ और पीएमओ का आदेश होता है ।
आप जरा सोचिये की विधायक आकाश विजयवर्गीय की बल्लेबाजी वाला वीडियो मोबाइल पत्रकारों के पास न होता तो क्या चैनलों पर खबरें चल पातीं ..शायद नही क्योंकि इसके अलावां यदि किसी बड़े चैनल के अखबार के कैमरे में यह वीडियो होता तो उस खबर को न चलाने का आदेश मीडिया समूह में पंहुच जाता और न्याय के लिए नगर निगम का अफसर दौड़ दौड़ कर मर जाता।
इस लिए जरूरी है कि पत्रकार मीडिया समूहों के इशारे पर काम न करें बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा और चिकित्सा की बदहाली जैसे मुद्दे पर बेबाकी से आवाज बुलंद करें नही तो विजयवर्गीय जैसे न जाने कितने चिरकुट लोग पत्रकारों की औकात पर सवाल उठाते रहेंगे।