जंग वही जीतता है जो मैदान में उतरता है ,हार और जीत तो एक सिक्के का दो पहलू है।
विश्वपति वर्मा_
भारत शुक्रवार की रात इतिहास रचने से दो क़दम दूर रह गया. अगर सब कुछ ठीक रहता तो भारत दुनिया पहला देश बन जाता जिसका अंतरिक्षयान चन्द्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव के क़रीब उतरता.
इससे पहले अमरीका, रूस और चीन ने चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग करवाई थी लेकिन दक्षिणी ध्रुव पर नहीं. कहा जा रहा है कि दक्षिणी ध्रुव पर जाना बहुत जटिल था इसलिए भी भारत का मून मिशन चन्द्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया.
शुक्रवार की रात चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह पर बस उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने से पहले चंद्रमा की सतह से दूरी महज 2.1 किलोमीटर बची थी.
प्रधानमंत्री मोदी भी इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरु पहुंचे थे. लेकिन आख़िरी पल में चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफ़र अधूरा रह गया.
चन्द्रयान 2 के इतिहास के बारे में बता दें कि 12 नवम्बर 2007 को इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) के प्रतिनिधियों ने चंद्रयान-2 परियोजना पर साथ काम करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमे बताया गया कि ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी तथा रोसकोसमोस लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा.
भारत सरकार ने 18 सितंबर 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस अभियान को स्वीकृति दी थी अंतरिक्ष यान के डिजाइन को अगस्त 2009 में पूर्ण कर लिया गया जिसमे दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने अपना संयुक्त योगदान दिया.
हालांकि इसरो ने चंद्रयान -2 कार्यक्रम के अनुसार पेलोड को अंतिम रूप दिया। परंतु अभियान को जनवरी 2013 में स्थगित कर दिया गया। तथा अभियान को 2016 के लिये पुनर्निर्धारित किया। क्योंकि रूस लैंडर को समय पर विकसित करने में असमर्थ था। रोसकोसमोस को बाद में मंगल ग्रह के लिए भेज़े फोबोस-ग्रन्ट अभियान मे मिली विफलता के कारण चंद्रयान -2 कार्यक्रम से अलग कर दिया गया। तथा भारत ने चंद्र मिशन को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का फैसला किया।जिसे 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा रेंज से भारतीय समयानुसार 02:43 अपराह्न को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया गया था।