विश्वपति वर्मा-
परिषदीय स्कूलों की व्यवस्था सुधारने के लिए शासन से लेकर बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से तमाम उपाय किए जा रहे हैै लेकिन धरातल पर पंहुचने के बाद दिखाई दे रहा है कि सरकार की तमाम महत्वाकांक्षी योजनाएं दफ्तर के कागजों में चल रही हैं
उत्तर प्रदेश सरकार की एक और योजना के तहत प्रदेश भर के प्रत्येक ब्लॉक के 5-5 बेसिक स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई कराए जाने का खाका तैयार किया गया था लेकिन सरकारी घोषणा के दूसरे सत्र के बाद भी मॉडल स्कूल की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नही दिखाई दिया।
योजना के तहत बस्ती जनपद के 14 ब्लॉक के अंतर्गत 70 विद्यालयों का चयन किया गया था जिसमे प्रत्येक ब्लॉक में -5 -5 विद्यालयों का चयन हुआ था लेकिन मौजूदा सत्र में एक भी विद्यालय ऐसा नही दिखाई दिया जो कान्वेंट विद्यालय की तर्ज पर अपनी गुणवक्ता में सुधार लाने में सफल रहे हों।
जनपद के सल्टौआ ब्लॉक के अंतर्गत चयनित किये गए पांच प्राथमिक विद्यालय अमरौली शुमाली, देईपार खुर्द, बिशुनपुरवा प्रथम, बेतौहा व पचमोहनी को मॉडल विद्यालय बनाकर अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई कराई जानी थी लेकिन मौजूदा सत्र के चार माह बीत जाने के बाद अभी तक विद्यालयों में अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापकों की तैनाती भी नही हो पाई है ।
इतना ही नही इस योजना का हालात यह है कि स्कूलों में न तो बच्चों के बैठने के लिए मेज कुर्सी है और न ही अभी तक किताबों की संख्या पूरी हो पाई है ,स्कूल में अगर कुछ दिखाई दे रहा है तो बड़े बड़े अक्षरों में लिखे गए मॉडल प्राइमरी स्कूल का वालपेंटिंग।
स्कूलों की हालात जानने के लिए हमने अक्टूबर महीने में अमरौली शुमाली,बेतौहा ,पचमोहनी ,देईपार खुर्द के प्राथमिक विद्यालय में पंहुच कर शिक्षा की गुणवत्ता की समीक्षा किया जिसमे दिखाई दिया कि बेसिक शिक्षा विभाग बस्ती ने कागज पर तो मॉडल स्कूल बना दिया लेकिन पढ़ाई और सुविधाएं अब भी पुराने ढर्रे पर हो रही है ,स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए ठोस इंतजाम है और न ही पढ़ाई की मजबूत व्यवस्था ।
ऐसी स्थिति देखने के बाद सवाल पैदा होता है कि क्या स्कूलों के नाम को बदल देने भर से बदहाल व्यवस्था में परिवर्तन आ सकता है ?क्या बच्चों को केवल टाई -बेल्ट पहना देने से ही उनके अंदर ज्ञान का भंडार भर सकता है ?या फिर स्कूल की बुनयादी जरूरतों को पूरा कर शिक्षा व्यवस्था को सार्थक बनाने का प्रयास किया जाएगा।