विश्वपति वर्मा-
सियासत भी दांव खेल रही है बर्चस्व बचाने में
उसे जरा सा भी फिक्र नहीं है समाज को बनाने में
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
कहीं गांव जल रहा है तो कहीं शहर बस रहा है।
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये।
मंदिर और मस्जिद में ये देश भी उलझ गया
देश का बड़े से बड़ा घोटाला कागजों में सुलझ गया।
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये।
21 करोड़ लोग भुखमरी के चपेट में हैं
उसके बाद भी सियासत के पेट भरे हैं
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये
बस लिखने लगा हूँ ऐसा क्रांति आ जाये