विश्वपति वर्मा-
देश भर में विकास की गंगा बह रही है यह दिखाने के लिए चाहे जितना भी मंदिर -मस्जिद क्यों न बना दिये जायें लेकिन शिक्षा के विकास के बिना देश का विकास संभव नही है । शिक्षा व्यवस्था का आधार स्कूली शिक्षा मानी जाती है. बच्चों के प्रारंभिक ज्ञान की नींव स्कूली शिक्षा होती है. हमारे स्कूलों में हो रही पढ़ाई और उसमें पढ़ने आने वाले बच्चों की स्थिति क्या है?
देश की जनसंख्या में 14-18 साल तक के बच्चों की संख्या 10 फीसदी के आसपास है. यानी लगभग साढ़े बारह करोड़. शिक्षा की स्थिति पर सर्वे करने वाली संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘असर’ यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट से कई चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिल रहे हैं.
संस्था ने अपने सर्वेक्षण स्कूली शिक्षा और छात्रों की पढ़ाई को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सबसे बड़ा खुलासा तो यह है कि बच्चे बड़ी कक्षाओं जैसे सातवीं- आठवीं में पढ़ रहे बच्चों को जोड़-घटाव जैसा हल्का फुल्का गणित भी नहीं आता है. असर द्वारा किए गए इस सर्वे में तीन बड़े पहलुओं को ध्यान में रखा गया है. बच्चों का स्कूल में दाखिला, किताबों को पढ़ने, गणित की क्षमता और स्कूल में उपलब्ध बुनियादी सुविधाएं.
रिपोर्ट के अनुसार 2018 में स्कूल में दाखिला नहीं लेने वाले 6-14 साल की उम्र के बच्चों का प्रतिशत तीन फीसदी से गिरकर 2.8 फीसदी पहुंच गया है. असर की रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा 3 से 5 तक के छात्रों की स्थिति तो बेहतर है लेकिन कक्षा 8 तक आते-आते उनके प्रदर्शन में गिरावट आनी शुरू हो जाती है. रिपोर्ट के अनुसार आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चें गणित में फिसड्डी हैं. 14 साल की उम्र के करीब 47 फीसदी बच्चे अंग्रेजी के साधारण वाक्य भी नहीं पढ़ सकते हैं. इस आयु वर्ग के 25 फीसदी छात्र ऐसे हैं जो बिना रुके अपनी भाषा भी नहीं पढ़ सकते हैं.
रिपोर्ट में 14 से 16 साल उम्र के सभी लड़कों में से 50 फीसदी गणित के साधारण सवालों को हल कर लेते हैं जबकि 44 फीसदी लड़कियां ही ऐसा कर पाती हैं. लड़के-लड़कियों में समानता के हिसाब से सर्वे बेहद निराश करने वाला है. स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रहने वाली 11-14 साल उम्र वर्ग की लड़कियों का अनुपात 2006 के 10.3 फीसदी से घटकर 2018 में 4.1 फीसदी हो गया है. सर्वे के मुताबिक 12वीं कक्षा तक पहुंचते ही लड़के-लड़कियों में पढऩे की क्षमता में भारी अंतर देखने को मिलता है. 2018 में 8-10 उम्र वर्ग की 36.8 फीसदी लड़कियां कक्षा 2 तक की किताबें पढ़ लेती हैं जबकि केवल 33.2 फीसदी लड़के ही ऐसा कर सकते हैं.
यह सर्वे देश के 24 राज्यों के बच्चों पर किया गया है. यह सर्वे 596 जिलों के 3,54,944 परिवारों और तीन से 16 साल के 5,46,527 बच्चों की बातचीत पर आधारित है. असर की टीम हर एक चुने हुए गांवों के प्राथमिक कक्षाओं वाले सरकारी स्कूल पहुंची. यहां कक्षा एक से आठ तक के प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों से बात-चीत और सवाल-जवाब के आधार पर रिपोर्ट को तैयार किया गया है. सर्वेक्षण के दौरान टीम ने देश भर के 15,998 सरकारी विद्यालयों में पहुंचे. इनमें 9,177 प्राथमिक और 6821 उच्च प्राथमिक विद्यालय थे. यह संख्या 2016 में किए गए उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या से 13.6 फीसदी अधिक थी.
संस्था के अलावां टीम तहकीकात ने बस्ती ,बाराबंकी और सीतापुर जनपद के 16 स्कूलों में जाकर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के हालात को जानने की कोशिश किया जंहा पर हमे एक लाइन में दिखाई दिया कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था शून्य है।
देश भर में विकास की गंगा बह रही है यह दिखाने के लिए चाहे जितना भी मंदिर -मस्जिद क्यों न बना दिये जायें लेकिन शिक्षा के विकास के बिना देश का विकास संभव नही है । शिक्षा व्यवस्था का आधार स्कूली शिक्षा मानी जाती है. बच्चों के प्रारंभिक ज्ञान की नींव स्कूली शिक्षा होती है. हमारे स्कूलों में हो रही पढ़ाई और उसमें पढ़ने आने वाले बच्चों की स्थिति क्या है?
देश की जनसंख्या में 14-18 साल तक के बच्चों की संख्या 10 फीसदी के आसपास है. यानी लगभग साढ़े बारह करोड़. शिक्षा की स्थिति पर सर्वे करने वाली संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘असर’ यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट से कई चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिल रहे हैं.
संस्था ने अपने सर्वेक्षण स्कूली शिक्षा और छात्रों की पढ़ाई को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. सबसे बड़ा खुलासा तो यह है कि बच्चे बड़ी कक्षाओं जैसे सातवीं- आठवीं में पढ़ रहे बच्चों को जोड़-घटाव जैसा हल्का फुल्का गणित भी नहीं आता है. असर द्वारा किए गए इस सर्वे में तीन बड़े पहलुओं को ध्यान में रखा गया है. बच्चों का स्कूल में दाखिला, किताबों को पढ़ने, गणित की क्षमता और स्कूल में उपलब्ध बुनियादी सुविधाएं.
रिपोर्ट के अनुसार 2018 में स्कूल में दाखिला नहीं लेने वाले 6-14 साल की उम्र के बच्चों का प्रतिशत तीन फीसदी से गिरकर 2.8 फीसदी पहुंच गया है. असर की रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा 3 से 5 तक के छात्रों की स्थिति तो बेहतर है लेकिन कक्षा 8 तक आते-आते उनके प्रदर्शन में गिरावट आनी शुरू हो जाती है. रिपोर्ट के अनुसार आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चें गणित में फिसड्डी हैं. 14 साल की उम्र के करीब 47 फीसदी बच्चे अंग्रेजी के साधारण वाक्य भी नहीं पढ़ सकते हैं. इस आयु वर्ग के 25 फीसदी छात्र ऐसे हैं जो बिना रुके अपनी भाषा भी नहीं पढ़ सकते हैं.
रिपोर्ट में 14 से 16 साल उम्र के सभी लड़कों में से 50 फीसदी गणित के साधारण सवालों को हल कर लेते हैं जबकि 44 फीसदी लड़कियां ही ऐसा कर पाती हैं. लड़के-लड़कियों में समानता के हिसाब से सर्वे बेहद निराश करने वाला है. स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर रहने वाली 11-14 साल उम्र वर्ग की लड़कियों का अनुपात 2006 के 10.3 फीसदी से घटकर 2018 में 4.1 फीसदी हो गया है. सर्वे के मुताबिक 12वीं कक्षा तक पहुंचते ही लड़के-लड़कियों में पढऩे की क्षमता में भारी अंतर देखने को मिलता है. 2018 में 8-10 उम्र वर्ग की 36.8 फीसदी लड़कियां कक्षा 2 तक की किताबें पढ़ लेती हैं जबकि केवल 33.2 फीसदी लड़के ही ऐसा कर सकते हैं.
यह सर्वे देश के 24 राज्यों के बच्चों पर किया गया है. यह सर्वे 596 जिलों के 3,54,944 परिवारों और तीन से 16 साल के 5,46,527 बच्चों की बातचीत पर आधारित है. असर की टीम हर एक चुने हुए गांवों के प्राथमिक कक्षाओं वाले सरकारी स्कूल पहुंची. यहां कक्षा एक से आठ तक के प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों से बात-चीत और सवाल-जवाब के आधार पर रिपोर्ट को तैयार किया गया है. सर्वेक्षण के दौरान टीम ने देश भर के 15,998 सरकारी विद्यालयों में पहुंचे. इनमें 9,177 प्राथमिक और 6821 उच्च प्राथमिक विद्यालय थे. यह संख्या 2016 में किए गए उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या से 13.6 फीसदी अधिक थी.
संस्था के अलावां टीम तहकीकात ने बस्ती ,बाराबंकी और सीतापुर जनपद के 16 स्कूलों में जाकर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के हालात को जानने की कोशिश किया जंहा पर हमे एक लाइन में दिखाई दिया कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था शून्य है।