विश्वपति वर्मा-
देश मे गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का हवाला देकर राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी दंगल में परिवर्तन की बयार लाने के लिए खूब ढोल पीटी गई लेकिन आजादी के 7 दशक बाद भी देश के एक बड़ी आबादी की व्यवस्था में कोई खास सुधार नही हो पाया है ।
आज के 20-30 वर्ष पहले जो आदमी जंहा खड़ा था वह वंही पर खड़ा रह गया कुछ फीसदी लोग अपनी आजीविका में वृद्धि करने में सफल भी हुए हैं लेकिन नैकरी पेशे वालों को छोड़ दिया जाए तो कंही सरकार की कोई भूमिका नही दिखाई देती है।
मैं अपने पड़ोस में रहने वाले ओंकार नाथ को काफी दिनों से देख रहा हूँ जंहा पर एक छोटी सी दुकान में वें समोसा बनाकर बेंचने का कार्य करते हैं जब वें 1 रुपये में समोसा बेंचते थे तबसे मैं उनको जानता हूँ और उनकी उसी दुकान में समोसे का दाम 5 रुपया हो गया है और आज भी मैं उनको वैसे ही देख रहा हूँ वह जैसे थे ,इस दौरान उन्होंने पारिवारिक जीवन मे बहुत सारे काम किये लेकिन हमें नही लगता कि उनकी आजीविका में वृद्धि करने के उद्देश्य से समाज कल्याण की कोई योजना उन्हें मिली हो ,मिल भी गई होगी तो उससे क्या फर्क पड़ने वाला है ओंकार नाथ जिस टूटी टँकी में समोसा बेंचते थे आज भी उसी टूटी गुमटी में समोसा बेंचने का कार्य कर रहे हैं।
ओंकार नाथ तो एक उदाहरण हैं इसी तरहं से लाखों लोग ऐसे हैं जो अपनी जिंदगी को धक्का लगाकर चलाने का कार्य कर रहे हैं लेकिन सरकार की समाज कल्याण कोई उपयोगी योजना वँहा तक नही पंहुचा पाई जिससे अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यति भी अग्रिम पंक्ति में आने का मौका पाए ।
ऐसा तो नही है कि सरकार ने निम्न वर्ग के लिए कोई योजना नही चलाया बल्कि सरकारी सिस्टम की बदहाल और भ्रष्ट व्यवस्था के कारण उपजी हुई समस्या ने निम्न वर्ग को फायदा नही पंहुचाया ।
देखने को मिला है कि सरकार तमाम विभागों के जरिये निम्न वर्ग के लिए कई महत्वाकांक्षी योजना को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से लाखों करोड़ों का बजट बनाती है लेकिन इस पैंसे में सेंध लगाकर लोग अपनी व्यवस्था मजबूत करने में लगे रहे जिसका परिणाम रहा है कि देश की एक बड़ी आबादी अपने हक अधिकारों से वंचित रह गया।
बेहतर होगा कि सरकार निम्न वर्ग के लिए जारी योजनाओं का क्रियान्वयन इस प्रकार से कराए जिससे यह सुनिश्चित हो कि अंतिम व्यक्ति के पास सरकारी लाभ बिना किसी कटौती के पंहुचे और लोग उसका फायदा उठाकर अपने बेहतर जीवन का राह आसान कर पाएं ।
देश मे गरीबी ,बेरोजगारी और भ्रष्टाचार का हवाला देकर राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी दंगल में परिवर्तन की बयार लाने के लिए खूब ढोल पीटी गई लेकिन आजादी के 7 दशक बाद भी देश के एक बड़ी आबादी की व्यवस्था में कोई खास सुधार नही हो पाया है ।
आज के 20-30 वर्ष पहले जो आदमी जंहा खड़ा था वह वंही पर खड़ा रह गया कुछ फीसदी लोग अपनी आजीविका में वृद्धि करने में सफल भी हुए हैं लेकिन नैकरी पेशे वालों को छोड़ दिया जाए तो कंही सरकार की कोई भूमिका नही दिखाई देती है।
मैं अपने पड़ोस में रहने वाले ओंकार नाथ को काफी दिनों से देख रहा हूँ जंहा पर एक छोटी सी दुकान में वें समोसा बनाकर बेंचने का कार्य करते हैं जब वें 1 रुपये में समोसा बेंचते थे तबसे मैं उनको जानता हूँ और उनकी उसी दुकान में समोसे का दाम 5 रुपया हो गया है और आज भी मैं उनको वैसे ही देख रहा हूँ वह जैसे थे ,इस दौरान उन्होंने पारिवारिक जीवन मे बहुत सारे काम किये लेकिन हमें नही लगता कि उनकी आजीविका में वृद्धि करने के उद्देश्य से समाज कल्याण की कोई योजना उन्हें मिली हो ,मिल भी गई होगी तो उससे क्या फर्क पड़ने वाला है ओंकार नाथ जिस टूटी टँकी में समोसा बेंचते थे आज भी उसी टूटी गुमटी में समोसा बेंचने का कार्य कर रहे हैं।
ओंकार नाथ तो एक उदाहरण हैं इसी तरहं से लाखों लोग ऐसे हैं जो अपनी जिंदगी को धक्का लगाकर चलाने का कार्य कर रहे हैं लेकिन सरकार की समाज कल्याण कोई उपयोगी योजना वँहा तक नही पंहुचा पाई जिससे अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यति भी अग्रिम पंक्ति में आने का मौका पाए ।
ऐसा तो नही है कि सरकार ने निम्न वर्ग के लिए कोई योजना नही चलाया बल्कि सरकारी सिस्टम की बदहाल और भ्रष्ट व्यवस्था के कारण उपजी हुई समस्या ने निम्न वर्ग को फायदा नही पंहुचाया ।
देखने को मिला है कि सरकार तमाम विभागों के जरिये निम्न वर्ग के लिए कई महत्वाकांक्षी योजना को क्रियान्वित करने के उद्देश्य से लाखों करोड़ों का बजट बनाती है लेकिन इस पैंसे में सेंध लगाकर लोग अपनी व्यवस्था मजबूत करने में लगे रहे जिसका परिणाम रहा है कि देश की एक बड़ी आबादी अपने हक अधिकारों से वंचित रह गया।
बेहतर होगा कि सरकार निम्न वर्ग के लिए जारी योजनाओं का क्रियान्वयन इस प्रकार से कराए जिससे यह सुनिश्चित हो कि अंतिम व्यक्ति के पास सरकारी लाभ बिना किसी कटौती के पंहुचे और लोग उसका फायदा उठाकर अपने बेहतर जीवन का राह आसान कर पाएं ।