मोदी सरकार ने चुनावी चंदे को बेहद गोपनीय बनाने वाले चुनावी बॉन्ड योजना पर रिजर्व बैंक के सुझावों और उनकी चेतावनियों को खारिज कर दिया था. हफपोस्ट इंडिया की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है.
ज्ञात हो कि चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को दानकर्ता की जानकारी दिए बिना असीमित चंदा लेने की सुविधा देता है.
रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के साल 2017 के बजट भाषण से चार दिन पहले एक कर अधिकारी को दस्तावेज खंगालते हुए ये एहसास हुआ कि इन बदलावों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट में संशोधन करना होगा.
इसके बाद 28 जनवरी 2017 को उस अधिकारी ने उन संशोधनों का एक ड्राफ्ट बनाया और उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों के पास भेजा, जिन्होंने इसे आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यन गांधी के पास त्वरित टिप्पणी के लिए भेजा.
इस पर आरबीआई ने सोमवार यानी 30 जनवरी, 2017 को अपना विरोध जताते हुए जवाब दिया. आरबीआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा, भारतीय मुद्रा पर भरोसा टूटेगा और नतीजतन केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.
तत्कालीन राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने आरबीआई की इन आपत्तियों को प्राप्त करने के लगभग तुरंत बाद ही खारिज कर दिया. उन्होंने आर्थिक मामलों के सचिव तपन रे और अरुण जेटली को एक नोट लिखा, जिसमें कहा गया कि आरबीआई उनके प्रस्ताव को समझ नहीं पाया.
बाद में जेटली ने बजट भाषण में इस योजना की घोषणा की और लोकसभा ने वित्त विधेयक पारित किया. इसे मनी बिल यानी धन विधेयक कहते हुए सरकार ने राज्यसभा में पेश नहीं किया. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया कि क्या इसे धन विधेयक के रूप में पारित कराना सही था या नहीं.
हफपोस्ट इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई की आपत्तियों पर कोई आर्थिक तर्क देने के बजाय केंद्र ने सीधा ये कहा कि आरबीआई एक्ट में बदलाव को लेकर आरबीआई के पास वीटो पावर नहीं है. उन्होंने कहा, ‘संसद सर्वोच्च है और उसे आरबीआई एक्ट के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है.’
जून 2017 तक वित्त मंत्रालय ने ये नियम तैयार कर लिए थे कि ये बॉन्ड किस तरह से काम करेंगे. इसके मुताबिक, ‘खरीददार और प्राप्तकर्ता के बारे में जानकारी बैंक द्वारा गुप्त रखी जाएगी. ये विवरण आरटीआई के दायरे से बाहर होंगे.’ पार्टियों को भी यह जानकारी नहीं रखनी होगी कि कौन चुनावी बॉन्ड के जरिए दान दे रहा है.
जुलाई 2017 में वित्त मंत्रालय, आरबीआई और चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात करने और चुनावी बॉन्ड कैसे काम करेंगे, इसके विवरण पर चर्चा करने के लिए कहा गया. आरबीआई के अधिकारी इस बैठक में शामिल नहीं हुए थे. हालांकि बाद में 28 जुलाई 2017 को उर्जित पटेल ने इस मामले पर चर्चा के लिए जेटली से मुलाकात की थी.
इस बैठक के बाद अगस्त में आरबीआई ने मंत्रालय को पत्र लिखकर बताया कि क्यों उनका मानना है कि चुनावी बॉन्ड एक सही विचार नहीं है.
केंद्र सरकार ने आरबीआई के लगभग सभी सुझावों को खारिज कर दिया और सिर्फ एक ही सुझाव को स्वीकार किया कि इन चुनावी बॉन्ड की वैधता सिर्फ 15 दिन की होगी.
न केवल सरकार ने केंद्रीय बैंक की अनदेखी की, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले पर उसने किसी बाहरी स्रोत से सलाह ली है. हफपोस्ट इंडिया द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों में एक शुरुआती नोट था, जिस पर न तो कोई तारीख थी और न ही किसी ने हस्ताक्षर किया हुआ था.
एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने बताया, ‘ऐसा लगता है कि सरकार से बाहर के किसी व्यक्ति ने इसे लिखा है और सरकार को नोट के रूप में दिया है.’
ज्ञात हो कि चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को दानकर्ता की जानकारी दिए बिना असीमित चंदा लेने की सुविधा देता है.
रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली के साल 2017 के बजट भाषण से चार दिन पहले एक कर अधिकारी को दस्तावेज खंगालते हुए ये एहसास हुआ कि इन बदलावों के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट में संशोधन करना होगा.
इसके बाद 28 जनवरी 2017 को उस अधिकारी ने उन संशोधनों का एक ड्राफ्ट बनाया और उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों के पास भेजा, जिन्होंने इसे आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यन गांधी के पास त्वरित टिप्पणी के लिए भेजा.
इस पर आरबीआई ने सोमवार यानी 30 जनवरी, 2017 को अपना विरोध जताते हुए जवाब दिया. आरबीआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा, भारतीय मुद्रा पर भरोसा टूटेगा और नतीजतन केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.
तत्कालीन राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने आरबीआई की इन आपत्तियों को प्राप्त करने के लगभग तुरंत बाद ही खारिज कर दिया. उन्होंने आर्थिक मामलों के सचिव तपन रे और अरुण जेटली को एक नोट लिखा, जिसमें कहा गया कि आरबीआई उनके प्रस्ताव को समझ नहीं पाया.
बाद में जेटली ने बजट भाषण में इस योजना की घोषणा की और लोकसभा ने वित्त विधेयक पारित किया. इसे मनी बिल यानी धन विधेयक कहते हुए सरकार ने राज्यसभा में पेश नहीं किया. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया कि क्या इसे धन विधेयक के रूप में पारित कराना सही था या नहीं.
हफपोस्ट इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई की आपत्तियों पर कोई आर्थिक तर्क देने के बजाय केंद्र ने सीधा ये कहा कि आरबीआई एक्ट में बदलाव को लेकर आरबीआई के पास वीटो पावर नहीं है. उन्होंने कहा, ‘संसद सर्वोच्च है और उसे आरबीआई एक्ट के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है.’
जून 2017 तक वित्त मंत्रालय ने ये नियम तैयार कर लिए थे कि ये बॉन्ड किस तरह से काम करेंगे. इसके मुताबिक, ‘खरीददार और प्राप्तकर्ता के बारे में जानकारी बैंक द्वारा गुप्त रखी जाएगी. ये विवरण आरटीआई के दायरे से बाहर होंगे.’ पार्टियों को भी यह जानकारी नहीं रखनी होगी कि कौन चुनावी बॉन्ड के जरिए दान दे रहा है.
जुलाई 2017 में वित्त मंत्रालय, आरबीआई और चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात करने और चुनावी बॉन्ड कैसे काम करेंगे, इसके विवरण पर चर्चा करने के लिए कहा गया. आरबीआई के अधिकारी इस बैठक में शामिल नहीं हुए थे. हालांकि बाद में 28 जुलाई 2017 को उर्जित पटेल ने इस मामले पर चर्चा के लिए जेटली से मुलाकात की थी.
इस बैठक के बाद अगस्त में आरबीआई ने मंत्रालय को पत्र लिखकर बताया कि क्यों उनका मानना है कि चुनावी बॉन्ड एक सही विचार नहीं है.
केंद्र सरकार ने आरबीआई के लगभग सभी सुझावों को खारिज कर दिया और सिर्फ एक ही सुझाव को स्वीकार किया कि इन चुनावी बॉन्ड की वैधता सिर्फ 15 दिन की होगी.
न केवल सरकार ने केंद्रीय बैंक की अनदेखी की, बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले पर उसने किसी बाहरी स्रोत से सलाह ली है. हफपोस्ट इंडिया द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों में एक शुरुआती नोट था, जिस पर न तो कोई तारीख थी और न ही किसी ने हस्ताक्षर किया हुआ था.
एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने बताया, ‘ऐसा लगता है कि सरकार से बाहर के किसी व्यक्ति ने इसे लिखा है और सरकार को नोट के रूप में दिया है.’