विश्वपति वर्मा-
विंध्यवासिनी पार्क का नाम बदले जाने के विरोध में प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों से विरोध किया जा रहा है सामाजिक कार्यकर्ता बदरे आलम ने भी जिला अधिकारी गोरखपुर को पत्र लिखकर पार्क के नाम को पूर्ववत करने की मांग की है ।
प्रियंका गांधी जता चुकी हैं नाराजगी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी पार्क का नाम बदले जाने का विरोध किया है। एक हप्ते पहले फेसबुक पोस्ट में प्रियंका गांधी ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि - हमारे स्वतंत्रता सेनानी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। गोरखपुर के विंध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी ने चंपारन सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक गांधी जी के साथ कदम से कदम मिलाकर आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया। आज भाजपा सरकार अपने घमंड में चूर होकर विंध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी के नाम पर बने गोरखपुर स्थित पार्क का नाम बदल रही है। ये स्वतंत्रता सेनानी का अपमान है।
1952 में हुई थी पार्क की स्थापना
पार्क में लगे शिलापट के मुताबिक पार्क की स्थापना 1952 में हुई थी। लगभग 35 एकड़ में फैले इस पार्क में प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग सुबह व शाम टहलते हैं। इसके अलावा यहां पर बड़ी संख्या में लोग योग आदि भी करते हैं। बच्चों में भी यह काफी लोकप्रिय है। यह पार्क वी आकार में होने के साथ ही शहर में ग्रीनरी का सबसे बड़ा एरिया है। इसमें बड़हल, खिरनी, शमी समेत 40 विलुप्तप्राय हो चुके पौधे भी संरक्षित किए गए हैं। लीची व आम के सैकड़ों पेड़ हैं जिससे विभाग को हर साल लाखों रुपये की आमदनी होती है। गुलाब के फूलों की लगभग 30 प्रजातियां इस पार्क में मौजूद है।
जिला अधिकारी को लिखे गए पत्र में कहा गया कि ,हमें इस बात पर कोई ऐतराज नहीं है कि हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के नाम से किसी पार्क व अन्य स्थान का नामकरण न हो। गोरखपुर के लोगों के लिए हनुमान प्रसाद पोद्दार जी बेहद सम्मानित, अनुकरणीय व्यक्तित्व हैं लेकिन एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम से पहले से नामांकित पार्क का नाम बदल कर एक दूसरे सम्मानीय, अनुकरणीय व्यक्तित्व के नाम से नामकरण करना ओछी सोच और समाज में विघटन की राजनीति का परिचायक है।
अच्छा होता कि हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के नाम से किसी अन्य पार्क का या किसी नए पार्क का निर्माण कराकर उनके नाम का नामकरण किया जाता और विन्ध्यवासिनी पार्क में बाबू विन्ध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी की आदमकद प्रतिमा स्थापित कर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का उस पर उल्लेख किया जाता ताकि लोग अपने गौरवमयी इतिहास, विरासत व पहचान से भली भांति जान सकें और अपने जीवन को उत्प्रेरित कर सकें।
गोरखपुर का इतिहास गौरवपूर्ण है। इस भूमि को अनेक क्रांतिवीरों ने अपने त्याग से सिंचित किया है।
बाबू विन्ध्यवासिनी प्रसाद जी उनमें से एक प्रमुख हस्ताक्षर थे। उनका भारत के स्वाधीनता आंदोलन में अप्रितम योगदान है। वे गोरखपुर क्षेत्र में स्वाधीनता की अलग जगाने वाले क्रांतिकारियों में अग्रणी हैं। वह 24 वर्ष की उम्र में ही आजादी की लड़ाई में शरीक हो गए। उन्होंने 1916 में गोरखपुर में होम रूल लीग की स्थापना की, 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा में उनके साथ रहे, 1919 में अंग्रेजों द्वारा लाए गए रौलट एक्ट के विरुद्ध संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों के वे अगुआ थे. 1920 से लेकर 1930 तक उन्होंने गोरखपुर में राष्ट्रीय आंदोलन को गति दिया. 1942 के ऐतिहासिक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के नेतृत्व कर्ता के रूप में संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दिया। वे 1937 में संयुक्त प्रांत के विधायक रहे।
इसलिए विन्ध्वासिनी पार्क का नाम बदले जाने का निर्णय अविलम्ब वापस लेते हुए पार्क का नाम पूर्ववत विन्ध्यवासिनी पार्क रखा जाया। पार्क के मुख्य द्वार पर बाबू विन्ध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी की आदमकद प्रतिमा स्थापित किया जाय और उनके जीवन-कृतित्व का पूर्ण विवरण वहां दर्ज किया जाय।
विंध्यवासिनी पार्क का नाम बदले जाने के विरोध में प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों से विरोध किया जा रहा है सामाजिक कार्यकर्ता बदरे आलम ने भी जिला अधिकारी गोरखपुर को पत्र लिखकर पार्क के नाम को पूर्ववत करने की मांग की है ।
प्रियंका गांधी जता चुकी हैं नाराजगी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी पार्क का नाम बदले जाने का विरोध किया है। एक हप्ते पहले फेसबुक पोस्ट में प्रियंका गांधी ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि - हमारे स्वतंत्रता सेनानी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। गोरखपुर के विंध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी ने चंपारन सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक गांधी जी के साथ कदम से कदम मिलाकर आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया। आज भाजपा सरकार अपने घमंड में चूर होकर विंध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी के नाम पर बने गोरखपुर स्थित पार्क का नाम बदल रही है। ये स्वतंत्रता सेनानी का अपमान है।
1952 में हुई थी पार्क की स्थापना
पार्क में लगे शिलापट के मुताबिक पार्क की स्थापना 1952 में हुई थी। लगभग 35 एकड़ में फैले इस पार्क में प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग सुबह व शाम टहलते हैं। इसके अलावा यहां पर बड़ी संख्या में लोग योग आदि भी करते हैं। बच्चों में भी यह काफी लोकप्रिय है। यह पार्क वी आकार में होने के साथ ही शहर में ग्रीनरी का सबसे बड़ा एरिया है। इसमें बड़हल, खिरनी, शमी समेत 40 विलुप्तप्राय हो चुके पौधे भी संरक्षित किए गए हैं। लीची व आम के सैकड़ों पेड़ हैं जिससे विभाग को हर साल लाखों रुपये की आमदनी होती है। गुलाब के फूलों की लगभग 30 प्रजातियां इस पार्क में मौजूद है।
जिला अधिकारी को लिखे गए पत्र में कहा गया कि ,हमें इस बात पर कोई ऐतराज नहीं है कि हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के नाम से किसी पार्क व अन्य स्थान का नामकरण न हो। गोरखपुर के लोगों के लिए हनुमान प्रसाद पोद्दार जी बेहद सम्मानित, अनुकरणीय व्यक्तित्व हैं लेकिन एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम से पहले से नामांकित पार्क का नाम बदल कर एक दूसरे सम्मानीय, अनुकरणीय व्यक्तित्व के नाम से नामकरण करना ओछी सोच और समाज में विघटन की राजनीति का परिचायक है।
अच्छा होता कि हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के नाम से किसी अन्य पार्क का या किसी नए पार्क का निर्माण कराकर उनके नाम का नामकरण किया जाता और विन्ध्यवासिनी पार्क में बाबू विन्ध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी की आदमकद प्रतिमा स्थापित कर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का उस पर उल्लेख किया जाता ताकि लोग अपने गौरवमयी इतिहास, विरासत व पहचान से भली भांति जान सकें और अपने जीवन को उत्प्रेरित कर सकें।
गोरखपुर का इतिहास गौरवपूर्ण है। इस भूमि को अनेक क्रांतिवीरों ने अपने त्याग से सिंचित किया है।
बाबू विन्ध्यवासिनी प्रसाद जी उनमें से एक प्रमुख हस्ताक्षर थे। उनका भारत के स्वाधीनता आंदोलन में अप्रितम योगदान है। वे गोरखपुर क्षेत्र में स्वाधीनता की अलग जगाने वाले क्रांतिकारियों में अग्रणी हैं। वह 24 वर्ष की उम्र में ही आजादी की लड़ाई में शरीक हो गए। उन्होंने 1916 में गोरखपुर में होम रूल लीग की स्थापना की, 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चंपारण यात्रा में उनके साथ रहे, 1919 में अंग्रेजों द्वारा लाए गए रौलट एक्ट के विरुद्ध संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों के वे अगुआ थे. 1920 से लेकर 1930 तक उन्होंने गोरखपुर में राष्ट्रीय आंदोलन को गति दिया. 1942 के ऐतिहासिक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के नेतृत्व कर्ता के रूप में संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दिया। वे 1937 में संयुक्त प्रांत के विधायक रहे।
इसलिए विन्ध्वासिनी पार्क का नाम बदले जाने का निर्णय अविलम्ब वापस लेते हुए पार्क का नाम पूर्ववत विन्ध्यवासिनी पार्क रखा जाया। पार्क के मुख्य द्वार पर बाबू विन्ध्यवासिनी प्रसाद वर्मा जी की आदमकद प्रतिमा स्थापित किया जाय और उनके जीवन-कृतित्व का पूर्ण विवरण वहां दर्ज किया जाय।