समीक्षात्मक रिपोर्ट- पत्रकारों की टीम ने दलित महिला के हाथों का चाय पीकर जाना गांव का हाल,मिला बेबसी और लाचारी - तहक़ीकात समाचार

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सोमवार, 2 मार्च 2020

समीक्षात्मक रिपोर्ट- पत्रकारों की टीम ने दलित महिला के हाथों का चाय पीकर जाना गांव का हाल,मिला बेबसी और लाचारी

 

विश्वपति वर्मा के साथ केसी श्रीवास्तव और सुशील कुमार की रिपोर्ट

बीते दशकों में शासन-प्रशासन द्वारा असहाय लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के कई सारे दावे किये गए लेकिन तहकीकात समाचार के ग्राउंड जीरो की पड़ताल  में पता चला है कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

टीम तहकीकात ने जनपद के कुवानों नदी के छोर पर स्थित गौर ब्लॉक के अइला कला  गांव में भ्रमण किया .जहां पर दर्जनों की संख्या में असहाय लोग पाए गए जो सरकारी योजनाओं की आस में कई वर्षों से आस लगाए बैठे हुए हैं

अइला घाट पुल के पश्चिमी छोर से निकलने वाली सड़क से होकर जब हमारी टीम गांव में जा रही थी तब हमने देखा कि सड़क के किनारे छप्पर के नीचे एक चाय की दुकान है जहां पर एक महिला चाय बनाकर ग्राहकों को दे रही है। हमने सबसे पहले उस महिला दुकानदार से गांव के बारे में जानकारी हासिल करने का फैसला लिया, सड़क पार करके जैसे ही हम उस दुकान पर पहुंचे तो हमने देखा कि वहाँ पर पत्थर के टुकड़े रखे गए थे जिसपर ग्राहक बैठते हैं , हम लोग जैसे ही वहां खड़े हुए हाथ मे कैमरा और माइक आईडी देखकर महिला ने पूछा आप लोग पत्रकार हैं ? जवाब हां में दिया गया ,महिला ने कहा बैठिए चाय बनाती हूँ ।


छोटी सी दुकान थी जहाँ पर चाय और कुछ पान मसाला रखा हुआ था , उस वक्त हमारे तीन साथियों के लिए लकड़ी के ईंधन पर चाय पक रहा था तब उस महिला दुकानदार से उनके गांव के बारे में पूछा गया इसपर उन्होंने कहा कि आप गांव में आये हैं तो मै क्या बताऊं आप खुद देख लीजिये। उनके बारे में पूछने पर उन्होंने अपना नाम पार्वती बताया और कहा कि वें अइला गांव की रहने वाली हैं।

पार्वती ने बताया कि उनके पति बीमार रहते हैं जिनका इलाज लखनऊ में हुआ है ,वह बोलने में असमर्थ हो गए हैं और बीमारी की वजह से कुछ काम -काज भी नही कर पाते यही एक दुकान है जिससे 50-60 रुपया रोज बच जाता है उसी से घर का खर्चा चल रहा है।

पार्वती ने बताया कि वें सरकारी आवास योजना का लाभ लेने के लिए कई वर्षों से लोगों से गुहार लगा रही हैं लेकिन अभी तक आवास योजना का लाभ उन्हें नही मिल पाया ,उन्होंने बताया कि छप्पर का मकान है जिसमें बरसात के महीने में पानी भर जाता है। उनकी कहानी सुनकर हम लोगों ने गांव में जाकर स्थलीय पड़ताल करने का फैसला लिया ,उबड़ खाबड़ सड़क के रास्ते जब हमारी टीम गांव में पहुंची तब हमने देखा कि गांव में दर्जनों लोग तिरपाल और पालीथीन के सहारे जिंदगी गुजार रहे हैं।


गांव के निवासी बुजुर्ग रामदास अपनी साइकिल लेकर बाजार जा रहे थे जब उन्हें पता चला कि पत्रकार लोग गांव की समस्या देखने आए हैं तो उन्होंने अपनी साइकिल खड़ा कर अपने घर पर चलने का अनुरोध किया ,गांव की गलियों से होते हुए जब हम उनके घर पहुंचे तो हमने देखा कि वास्तव में उनके पास अपना कोई आधुनिक घर नही है पुराने जमाने में खपड़े से बने मकान में अपनी बेटियों के साथ रामदास जी रहते हैं और एक सरकारी आवास की आस में टकटकी लगाए हुए हैं।



 मीडिया के लोग हमारी समस्या को देखेंगे ,शासन-प्रशासन को बताएंगे और उन्हें भी एक सरकारी आवास का लाभ मिल जाएगा कुछ ऐसा ही सोचते हुए ये महिला भी अपने छप्पर के मकान के सामने खड़ी थीं,  जब हम यहां पहुंचे तो इन्होंने अपना नाम उर्मिला बताया उन्होंने बताया कि घर न होने की वजह से काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ,कुत्ते बिल्ली खाने को भी बर्बाद कर देते थे इस लिए खाना ,बर्तन और कुछ जरूरी सामान को रखने के लिए एक गुमटी खरीद लाई हूँ जिसमे सब समान रहता है ,उन्होंने कहा कि बस एक आवास मिल जाता उसके बाद हमारी समस्या खत्म हो जाती।



गांव में दर्जनों परिवार सरकारी योजनाओं से वंचित दिखाई दिए जिसमे सबसे ज्यादा लोग आवास योजना का लाभ लेना चाहते हैं। ये तस्वीर निर्मला और शीला की है जो छ्प्पर की झोपड़ी में रहने के लिए विवश हैं .सरकारी आवास के उम्मीद में यह परिवार भी कई वर्षों से आस लगाए बैठा हुआ है।


इसी प्रकार गांव में बहुत सारे लोग मिले जिन्हें आवास, शौचालय, राशन कार्ड और पेंशन की जरूरत है ,हम एक और घर पर पहुंचे जहां पर 15 वर्षों से एक परिवार इस झोपड़ी में रह रहा है ,तस्वीर में रीना देवी अपनी बिटिया के साथ खड़ी हैं जो आवास के लिए कई बार आवेदन कर चुकी हैं लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही मिल रहा है।



जब एक गांव के इतने सारे लोगों के सामने समस्याओं का बोझ है तो ऐसे में पूरे जनपद और देश प्रदेश का क्या हाल होगा यह अपने आप मे एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है. आखिर कहां जा रही हैं सरकार की योजनाएं?किसको मिल रहा है आवास योजना का लाभ? गरीबों के प्रति कितना पैसा खर्च कर रही है सरकार?  यह सब सवाल है और इन सवालों की जवाबदेही जिम्मदारों को तय करना चाहिए केवल मंच और मीडिया के सामने दावे करने से किसी देश और उसके गांव का विकास होने वाला नही है।

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