रिपोर्ट -केसी श्रीवास्तव ,फोटो सुशील कुमार
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 205 किलोमीटर दूर बस्ती जनपद के अमरौली शुमली ग्राम पंचायत में कुवानों नदी के तट पर अंग्रेजी हुकूमत में नील बनाने का कार्य होता था । यह ब्रिटिश हुकूमत के समय में नील कोठी के नाम से जाना जाता था।
आजादी के पहले अंग्रेज अमरौली शुमाली के पश्चिमी छोर पर कोठी बनाकर रहते थे और यहीं से नील की खेती कराते थे। अंग्रेज यहां की जनता को नील की खेती करने का फरमान सुनाकर गरीब किसानों को खेती के नाम पर कर्ज देते थे। कर्ज से दबे किसान जीवन भर बंधुआ मजदूरी करने और अंग्रेजों के कोड़े खाने के लिए मजबूर थे।
आजादी के पहले अंग्रेज अमरौली शुमाली के पश्चिमी छोर पर कोठी बनाकर रहते थे और यहीं से नील की खेती कराते थे। अंग्रेज यहां की जनता को नील की खेती करने का फरमान सुनाकर गरीब किसानों को खेती के नाम पर कर्ज देते थे। कर्ज से दबे किसान जीवन भर बंधुआ मजदूरी करने और अंग्रेजों के कोड़े खाने के लिए मजबूर थे।
क्षेत्र के बुजुर्ग सेवा निर्वित शिक्षक राम छत्तर वर्मा बताते हैं कि भारत में व्यापार के इरादे से आए अंग्रेज व्यवसाय के नाम पर गोरे राजा-महाराजाओं और जमींदारों से जमीन को लीज पर लेकर उसमें नील और अफीम की खेती कराने लगे। उसी दौरान बस्ती जनपद के कई स्थानों के साथ अमरौली शुमाली क्षेत्र में भी अंग्रेजों ने यहां के जमींदारों से जमीन लीज पर लेकर कुवानों नदी के तट पर नील उत्पादन की फैक्ट्री लगा ली।
आसपास की जमीन पर नील की खेती करके कारखाना में उसके उत्पादन का कार्य जोर-शोर से करने लगे। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने यहां के गरीब किसानों को लालच देकर खेती का कार्य शुरू कराने के साथ ही उनको कर्ज उपलब्ध कराना शुरू कर दिया। कर्ज देकर उन्होंने यहां के लोगों को ऐसे मकड़जाल में फंसाया कि जीवन भर उनकी गुलामी करने के बाद मौत के आगोश में चले गए परिवार के मुखिया के बाद उसके परिवारीजनों को भी कर्ज के बोझ तले दबकर अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार करना पड़ा। राम छत्तर बताते हैं कि अंग्रेजों का प्रभुत्व जब भारत में बढ़ा तो उन्होंने नील की खेती में मुनाफा को देखते हुए यहां के किसानों को कम से कम तीन कट्ठा भूमि पर नील की खेती करने का कानून बना कर उसका पालन कराना शुरू कर दिया। जो किसान ऐसा करने से मना करते थे, उन्हें सबके सामने 100 कोड़े लगाकर जलील किया जाता था।
अमरौली शुमाली के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य 65 वर्षीय मेहीलाल चौधरी बताते हैं कि उनके पिता पूर्व प्रधान स्वo ठाकुरदीन चौधरी नील कोठी के बारे याद करते हुए बताया करते थे लेकिन उनके जमाने मे भी यह नील मशीन बंद हो चुका था और यहां पर बांसी राजा का अधिकार हो चुका था।
यहां का इतिहास जो भी रहा हो लेकिन अंग्रेजों के जमाने में नील बनाने की इकाई कुआनो नदी के तट पर आज भी मौजूद है ।इस नील मशीन के इकाई के बारे में पूरा बताने वाला कोई नहीं है परन्तु उसकी मजबूती और बनावट को देख कर ऐसा प्रतीत होता है की अंग्रेजों के जमाने में कभी यह गुलजार रहा होगा ।