विश्वपति वर्मा-
इस महामारी के दौरान सबसे ज्यादा खराब स्थिति किसी की है तो वह किसानों की है, किसानों के खेत मे गेहूं की फसल पक करके पूरी तरह से तैयार हो चुकी है ,यही दौर होता है जब दिल्ली ,मुम्बई ,गुजरात गए किसान वापस आकर अपने फसलों को काटने और सहेजने में लग जाते हैं लेकिन इस समय इन किसानों के ऊपर चौतरफा मार पड़ रहा है पहला तो यह कि अधिकांश किसान शहरों में ही फंस गए हैं दूसरा यह है कि मौसम के बदलते करवट की वजह से फसल नुकसान होने की चिंता बढ़ गई है .जनवरी फरवरी के महीने में हुए बेमौसम बरसात की वजह से फसल वैसे ही बर्बाद हो चुके हैं लेकिन बचे कुचे फसल पर एक बार फिर खतरा मंडरा रहा है ।
किसानों की समस्याएं यहीं खत्म नही होती उनकी समस्याओं की गिनती की जाए तो क्रमांक की लाइन में अंक जुड़ते ही जायेंगे। किसान द्वारा बहुत कुछ उपजाया जाता है जिसमे आलू ,प्याज, लहसुन ,करेला ,परवल इत्यादि शामिल है इस वक्त अभी कुछ दिन पहले तक जब लहसुन और प्याज किसानों के घर से खाली हो चुका था तो बाजार में इसकी कीमत 200 रुपये के पार चला गया था अब जब किसानों के पास लहसुन और प्याज की नई फसल तैयार हो गई तब प्याज 20 रुपया और लहसुन 30 -40 रुपया किलो बिकने लगा ,ऐसे ही सब्जियों के दाम किसानों को बहुत कम मिलता है लेकिन जब वह व्यापारी के पास पहुंचता है तो वह सोना-चांदी के भाव बिकने लगता है.
बाजार में टमाटर 40 रुपया किलो तक बिक रहा है लेकिन किसानों के खेत से 10 रुपया किलो ही खरीदा जा रहा है ,किसानों को भी औने पौने दामों में फसलों को बेचने की मजबूरी है क्योंकि वह मंडी जा नही सकते क्योंकि लॉकडाउन के दौरान एक भी किसान के पास मंडी पास नही है मंडी का पास तो केवल व्यापारियों का बना हुआ है जो कभी किसानों और आम नागरिकों के हित में नही सोच सकते ऐसे ही और कई बड़ी-बड़ी जटिल समस्याएं किसानों के सामने है लेकिन आज तक इन किसानों को राहत देने के नाम पर केवल ठगने का काम किया गया है और वर्तमान समय की भगवाधारी सरकार में भी इनको उसी तरह से निचोड़ा जा रहा है जैसे यह लोग पहले निचोड़े गए थे।