कोरोनो वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण लॉकडाउन के बीच संसद की एक स्थायी समिति ने कहा है कि भूकंप, बाढ़ और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण कंपनी या उद्योग-धंधे बंद करने के दौरान कार्य फिर से शुरु होने तक श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान करना ‘अन्यायपूर्ण’ हो सकता है.
बीजू जनता दल (बीजेडी) सांसद भर्त्रुहरि महताब की अध्यक्षता वाली श्रम पर स्थायी समिति ने बीते गुरुवार को द इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, 2019’ पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को नियम 280 के तहत सौंपी.इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्र ने पिछले साल 28 नवंबर को लोकसभा में इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, 2019 पेश किया था. इसे दिसंबर में स्थायी समिति के पास भेजा गया था.‘छंटनी, व्यय में कमी और बंद’ से जुड़े प्रावधानों पर विचार करते हुए रिपोर्ट में कहा गया,
‘समिति मंत्रालय के इस तर्क से सहमत है कि चूंकि बिजली, कोयले आदि की कमी मजदूर की वजह से नहीं होती है, बल्कि इसकी उपलब्धता नहीं होने की वजह से होती है. इसलिए श्रमिकों को मुआवजा दिया जाना चाहिए. हालांकि प्राकृतिक आपदा के कारण किसी कंपनी या संस्थान के बंद होने की स्थिति में श्रमिकों को मजदूरी देने को लेकर समिति की अलग राय है.
उन्होंने कहा, ‘समिति का मानना है कि बिजली की कमी, मशीनरी खराब होने के कारण मजदूरों को 45 दिन तक के लिए 50 फीसदी मजदूरी, जिसे नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच समझौते के बाद बढ़ाया जा सकता है, देने के प्रावधान को उचित ठहराया जा सकता है. लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के मामले में, जहां कंपनी को बंद करना पड़ता है और इसमें नियोक्ता या मालिक की गलती नहीं होती है, उद्योग के फिर से चालू होने तक श्रमिकों को मजदूरी देना उचित नहीं हो सकता है.’संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बातों को लेकर संबंधित प्रावधानों को स्पष्ट किया जाना चाहिए.