बेंगलुरु से मोतिहारी 2300 किलोमीटर जाने के लिए जेवरात बेंच कर इस तरह से निकला यह परिवार - तहक़ीकात समाचार

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सोमवार, 18 मई 2020

बेंगलुरु से मोतिहारी 2300 किलोमीटर जाने के लिए जेवरात बेंच कर इस तरह से निकला यह परिवार

सुशील कुमार.

देश भर में जारी लॉकडाउन के बीच अपने-अपने  घरों को जाने के लिए लोगों में होड़ लगी हुई है ,दिल्ली ,महाराष्ट्र ,गुजरात ,आंध्रप्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों के दर्जनों शहरों में काम के उद्देश्य से गए लोग जहां तहां फंसे रह गए और लॉकडाउन के 55 दिन बीत जाने के बाद भी यातायात व्यवस्था को सुचारू रूप से चालू नही किया गया जिसका परिणाम है कि ज्वैलरी बेंच करके भी लोग अपने घरों को जाना चाहते हैं.

एक तरफ जहां लोग पैदल निकल रहे हैं ,साइकिल मोटर साइकिल से निकल रहे हैं ट्रकों पर सवार होकर निकल रहे हैं वहीं बिहार के मोतिहारी का रहने वाला यह परिवार भी अपने घर पहुंचना चाहता है लेकिन इनकी यात्रा की व्यवस्था अपने निजी गाड़ी से है .अब आप सोच रहे होंगे कि जब इनके पास निजी गाड़ी है तो फिर इस खबर का क्या मतलब है उनकी यात्रा तो उन लोगों से बेहतर है जो पैदल चल रहे हैं लेकिन लॉकडाउन के दौरान इनकी भी अपनी एक कहानी है।

मोतिहारी के रहने वाले राजेश कुमार महतो ने तहकीकात समाचार को बताया कि वें बेंगलुरु में टैक्सी चलाते हैं लॉकडाउन होने की वजह से हमारा काम बंद हो गया जिससे पूरे परिवार के साथ यहां रहकर खर्चा चलाना मुश्किल हो गया था उन्होंने बताया कि हम चाहते थे कि जब तक लॉकडाउन खत्म नही हो रहा है तबतक घर चले जाएं इसके लिए वह लॉकडाउन के तीसरे चरण में अंतिम दौर तक बसों और ट्रेनों के चलने का इंतजार करते रहे लेकिन ट्रेनों का संचालन न होने के नाते हमारा परिवार वहां परेशान हो गया था क्योंकि उमस भरी गर्मी में एक कमरे में वहां कैद रहना पड़ता था।

राजेश ने बताया कि जब वह हताश हो गए तब उन्होंने अपनी पत्नी के पास रखे कुछ जेवरात बेंच दिए जिससे उन्हें 45 हजार रुपये मिला उसके बाद घर फोन कर 20 हजार रुपया मंगाया और हमारे पास भी 20 हजार से ज्यादा रुपया था जिसे लेकर हमारे पास करीब 90 हजार रुपये तक हो गए उन्होंने बताया कि इन पैसों से हमने 26 हजार रुपये में एक पुरानी कार खरीदी और 30 हजार रुपया खर्च करके उसे दुरुस्त कराया उसके बाद छोटे बड़े 10 लोगों को बैठा कर घर जाने के लिए निकला।
राजेश की समस्या यहीं खत्म नही होती उन्होंने बताया कि जब हम लोग बेंगलुरु से निकले तो वहां की पुलिस ने हमसे पास मांगा पास न होने पर हमे वापस जाने के लिए कहा जब हमने अपनी समस्या बताई तब बीच का रास्ता निकाल लेने के लिए कहा गया .उन्होंने बताया कि हम वहां टैक्सी चलाते हैं इस लिए पुलिस के कोड़ भाषा की जानकारी हमे थी तो हमने वहां 500 रुपये का नोट दिया उसके बाद मुझे छोड़ दिया गया इसी तरही से उन्हें रास्ते मे लगभग 3000 रुपया घूस देने में खर्च करना पड़ा.

यूपी में मिला राहत 

राजेश ने बताया कि जब हम यूपी के सीमा में प्रवेश किये तो वहां भी हमे रोका गया लेकिन छोटे बच्चों और महिलाओं को देखने के बाद हमे जाने दिया गया उन्होंने बताया कि हमे यूपी में किसी तरह का रिश्वत नही देना पड़ा बल्कि यहां के हाइवे पर खाने पीने की सामग्री भी हमे दिया गया।

सरकार को कोसा

राजेश महतो पढ़े लिखे व्यक्ति हैं उन्होंने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण की है राजेश ने बताया कि जब देशभर में लॉकडाउन किया जा रहा था तो सरकार को इस बात की चिंता करनी चाहिए थी कि जो लोग अपने घरों से बाहर गए हुए हैं उन्हें घर पहुंचने के लिए समय दिया जाता .राजेश ने बताया कि देशभर में सैकड़ों पर्यटन स्थल पर लाखों की संख्या में लोग गए हुए थे लेकिन बिना तैयारी के किए गए लॉकडाउन में  जहां-तहां लोगों को रुक जाना पड़ा. उन्होंने बताया की सरकार ने ट्रेन सेवाओं को बंद करके कोरोना वायरस को रोकने के लिए प्रयास किया लेकिन यह सरकार की विफलता मानी जाएगी क्योंकि हजारों हजार की संख्या में लोग ट्रकों और लारियों में भरकर आ रहे हैं जो कोरोना वायरस को भारत मे व्यापक पैमाने पर फैलाने के लिए काफी है।उनका मानना है कि सरकार लोगों को ट्रेनों से भेजती ताकि सरकारी रिकार्ड में यह जानकारी होता कि किस जगह से कौन लोग कहाँ गए हुए हैं ।


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