सरकार अपनी नियति साफ करे, डिजिटल मीटर की तरह भागेगी विकास की गाड़ी - तहक़ीकात समाचार

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शनिवार, 23 मई 2020

सरकार अपनी नियति साफ करे, डिजिटल मीटर की तरह भागेगी विकास की गाड़ी

विश्वपति वर्मा-

शोषित, वंचित ,गरीब ,किसान ,एवं मजदूरों के हित मे न तो सरकारों ने इमानदार प्रयास से काम किया है और न करेंगी ,अच्छे दिनों का सपना दिखाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने भी गरीबों के साथ बर्बरता और क्रूरता की सारी हदों को पार कर दिया है.

 लॉक डाउन के दौरान मजदूर और मजबूर लोगों के सामने उपजी समस्या को देखने को बाद यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि मौजूदा भारतीय जनता पार्टी की सरकार हो या महाराष्ट्र, राजस्थान ,दिल्ली की सरकार हो सबके सब लोगों ने अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों के खून को चूस कर पूजी के ढेरी पर बैठे लोगों को असीमित फायदा पहुंचाने का काम किया है.
फैक्ट्रियों और कंपनियों में हांडतोड़ मेहनत करने वाले मेहनतकश लोग बस उतना ही भुगतान पाते हैं जितना पूंजीवादी व्यवस्था चलाने वाले संगठनों ने तय किया है .

आखिर आम जनता के लिए सरकार का क्या योगदान है ? उद्योगपतियों को राहत पहुंचाने वाली सरकार का आम जनता को राहत देने के लिए कौन-कौन से प्रयास किये गए? इन सब के जवाब में आपको जुमले से ज्यादा और कुछ नही मिलने वाला है  .

आपकी जिंदगी 1000 रुपया महीना खैरात पाने और 500 रुपया जनधन का लाभ पाने से नही बदलने वाली है न ही इस पैसे से घर की रोजी रोटी चलने वाली है इस लिए सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इस बात का ध्यान देना होगा कि वह कृषि के क्षेत्र में उत्पादन लागत कम करने और उसका वाजिब मूल्य दिलाने का ईमानदार प्रयास करे,नगद हस्तांतरण योजना को बांटने की जगह ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध करवाने पर जोर दे.

500,1000 ,2000 की योजना चलाने की जगह 20 हजार रुपये का लोन बिना किसी दौड़भाग और ब्याज मुक्त के बैंकों से दिलवाने का काम करे और योजना के माध्यम से खैरात चलाने वाली व्यवस्था को बंद कर बचे हुए पैसों को किसानों का समूह बनाकर 10 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये तक सहयोग और सब्सिडी दे,सहकारिता के क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण पूरी तरह से बंद हो और इसे रिटायर जजों की अध्यक्षता और छोटे-मझले किसान समूह के सदस्यों द्वारा संचालित की जाए, सहकारिता के क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर क्रांति लाई जाए तब जाकर देश में विकास की गाड़ी दौड़ेगी अन्यथा देश के 80 करोड़ लोगों की जिंदगी में न तो बदलाव आया है और न ही आने का कोई उम्मीद दिखाई दे रहा है।

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