विश्वपति वर्मा-
कोरोना वायरस महामारी का डर अभी कम भी नहीं हुआ कि अब टि्डडी दल ने देश में कहर मचाना शुरू कर दिया है।यह टिड्डी दल अब पूर्वांचल में दस्तक देने के साथ यूपी के बस्ती में पहुंच चुका है।
टिड्डियों के इस दल ने पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश में फसलों को तबाह कर दिया है और अब इसका प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है।
पाकिस्तान के रास्ते भारत पहुंचा है टिड्डियों का यह दल
दुनिया के सबसे खतरनाक मानी जाती है राहत की बात यह है कि टिड्डी इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं ।
वैसे तो भारत में पिछले 20 वर्षों से टिड्डियों का आतंक रहा है। गत वर्ष भी इसने देश में भारी नुकसान किया था टिड्डियों के इस दल ने साल 1993 में सबसे बड़ा नुकसान पहुंचा था, लेकिन इस बाद इनकी संख्या उससे भी कहीं अधिक है।
इस बार ये टिडि्डयां ईरान के रास्ते पाकिस्तान से होते हुए भारत पहुंची हैं। पहले पंजाब और राजस्थान में फसलों को नुकसान पहुंचाने के बाद टिड्डियों का दल अब यूपी के बस्ती में पहुंच गया है।
टिड्डियों की दुनिया भर में 10 हज़ार से ज़्यादा प्रजातियां बताई जाती हैं, लेकिन भारत में मुख्य तौर से चार प्रजातियां रेगिस्तानी टिड्डा, प्रव्राजक टिड्डा, बम्बई टिड्डा और पेड़ वाला टिड्डा ही सक्रिय रहता है।
कृषि क्षेत्राधिकारियों की माने तो रेगिस्तानी टिड्डे दुनिया की दस फीसदी आबादी की ज़िंदगी को प्रभावित करते हैं। इन्हें दुनिया का सबसे खतरनाक कीट कहा जाता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी प्रकार के टि्डडे इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और ना ही उन्हें काटते हैं। ये केवल फसलों और पौधों का शिकार करते हैं। एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में लोग इन टिड्डों को बड़े चाव से खाते हैं।टिड्डियों के भारी संख्या में पनपने का मुख्य कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते मौसम में आ रहा बदलाव है।
विशेषज्ञों की माने तो एक मादा टिड्डी तीन बार अंडे देती है और एक बार में 95-158 अंडे तक दे सकती है।एक वर्ग मीटर में टिड्डियों के करीब 1,000 अंडे हो सकते हैं। एक टिड्डी का जीवनकाल तीन से पांच महीने का होता है. नर टिड्डे का आकार 60-75 एमएम और मादा का 70-90 एमएम तक हो सकता है।
नमी वाले क्षेत्रों में होता है ज्यादा प्रकोप
दिल्ली स्थित यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के मोहम्मद फैजल के अनुसार रेगिस्तानी टिड्डे रेत में अंडे देते हैं, लेकिन उनके फूटने के बाद ये टि्डडे भोजन की तलाश में नमी वाली जगहों की ओर बढ़ने लगते हैं। इससे नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा प्रकोप होता है।संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार रेगिस्तानी टिड्डा 16-19 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ता है।
हवाओं की रफ्तार भी इनकी रफ्तार को तेज करने में मदद करती हैं। ऐसे में ये दल एक दिन में आसानी से 200 किलोमीटर तक का सफर तय कर लेता है।
एक वर्ग किलोमीटर में फैले दल में करीब चार करोड़ टिड्डियां होती हैं, जो एक दिन में 35,000 लोगों के पेट भरने लायक भोजन को चट कर जाती है।
जांच की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक पाया गया कि टिड्डी दलों की तादाद और हमले बढ़ने का कारण बेमौसमी बारिश रही है।लाल सागर से अरबी प्रायद्वीप की बात हो या पाकिस्तान और भारत की, पिछले एक साल के दौरान लगभग हर महीने बारिश हुई।
बेमौसम बारिश से नमी पाकर ये कीट बड़ी तेजी से बढ़े हैं। विशेषज्ञों के अनुसार पहले प्रजजन काल में टिड्डियां 20 गुना, दूसरे में 400 और तीसरे में 1,600 गुना तक बढ़ जाती हैं।
दो महीने पहले जब टिड्डियों ने हमला शुरू किया तो गुजरात और राजस्थान में 1.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खड़ी तेल बीज, जीरे और गेहूं की फसलों को नुकसान पहुंचा था।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि टिड्डियों पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो आठ हजार करोड़ रुपये की मूंग की फसल तबाह हो सकती है।
हालांकि, भारत में इस साल हो चुके और होने वाले कुल नुकसान के बारे में अभी कोई पुख्ता अंदाज़ा नहीं लगाया गया है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार शिकारी ततैया, मक्सी, परजीवी ततैया, बीटल लार्वा, पक्षी और रेंगने वाले जीव इन टिडि्डयों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। ये जीव टिडि्डयों को देखते ही उन पर हमला कर देते हैं और पलभर में उन्हें चट कर जाते हैं।
टिड्डी के हमलों से बचने का सबसे कारगर तरीका तो बेहतर नियंत्रण और मॉनिटरिंग ही है। इसके अलावा कीटनाशक का हवाई छिड़काव या स्प्रे किया जा सकता है, लेकिन भारत में यह सुविधा अब भी बहुत कम है।
इसी प्रकार टिड्डियों के अंडों को पनपने से पहले नष्ट किया जा सकता है। किसान फसलों को ढंककर, टिड्डियों को खाने वाले पक्षियों को पालकर, लहसुन के पानी का छिड़काव, कारबैरिल का छिड़काव और कैनोला तेल मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है।