विश्वपति वर्मा-
फेलियर सरकार की निरंकुशता का नतीजा है कि देश के किसान वर्ग की वर्तमान स्थिति हाशिये पर पहुंच चुकी है .देश भर में सबसे ज्यादा खराब स्थिति का सामना कोई कर रहा है तो किसान और उसके बच्चे हैं क्योंकि न तो किसानों को अपनी फसलों का वाजिब मूल्य मिल पा रहा है और न ही उनके श्रम का कीमत ।
20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज जारी करने वाली केंद्र सरकार को निचली इकाई में जीवन यापन करने वाले लोगों का कोई फिक्र नहीं है वह तो केवल पूंजीपतियों के परंपरागत व्यवसाय को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है .खेती किसानी के बदौलत बहुत बड़ी आबादी को नाना प्रकार की व्यंजन बनाने के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराने वाले किसान वर्ग के लिए सरकार की तरफ से अभी तक कोई राहत पैकेज नही दिया गया जो पहले से दिया भी गया है वह अपर्याप्त है।
कई दशकों से किसानों के साथ हो रहे अन्याय और धोखा के बाद अब किसानों को सरकार से कोई न्याय मिलेगा यह उम्मीद छोटे -मझले तबके के किसानों ने छोड़ दिया है .सरकार में जरा सा भी शर्म बचा हो तो इस बात को गंभीरता से लेते हुए योजना बनाने की जरूरत है कि किसानों द्वारा पैदा किये गए फसलों और सब्जियों का उचित मूल्य उन्हें मिले .
इसके लिए सरकार को प्रत्येक न्याय पंचायत में सहकारी समितियों को पुनः स्थापित कर उसे आर्थिक रूप से मजबूत और हाईटेक बनाने पर जोर देना चाहिए . जहां पर छोटे मझले किसान अपने आलू, प्याज ,मूली ,टमाटर ,करेला ,बैगन ,मिर्चा ,खीरा ,परवल इत्यादि को लेकर जाएं और समिति पर एक निर्धारित दाम पर सब्जियों को बेंच कर चले आएं. यहां पर जो दाम किसानों को दिया जाए उसे जिला मुख्यालय से नियंत्रित किया जाए ताकि पूरे जिले में क्रय-विक्रय का अलग अलग मूल्य न हो पाए. उसके बाद समिति को विपणन केंद्र बनाया जाए जहां से बाजारों में सब्जी बेंचने वाले व्यापारी सब्जियों को एक निर्धारित दाम पर खरीद कर ले जाएं .मंडी और समिति दोनों में समन्वय स्थापित किया जाए ताकि समिति की सब्जियां नुकसान न हो पाए और वह प्रतिदिन बिकने के लिए व्यापारी और मंडी के माध्यम से बाजार में पहुंच जाए.
यह सब करने में कोई मुश्किल नही है बस सरकार को एक ठोस कदम उठाने की जरूरत है .ऐसा करने से किसानों के चेहरे पर मुस्कान आएगा क्योंकि उसे अपने सब्जियों को लेकर सड़क सड़क नही घूमना होगा और उसे निर्धारित वाजिब मूल्य भी मिल जाएगा।