टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एक स्वयंसेवी संगठन स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) का कहना है कि 85 फीसदी से अधिक मजदूरों को घर लौटने के लिए अपनी यात्रा के खर्च का खुद भुगतान करना पड़ा है.
इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि 28 मई को सुप्रीम कोर्ट का प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की यात्रा के खर्चे को लेकर दिया गया निर्देश बहुत देर में दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने 28 मई को कहा था कि राज्य सरकारें मजदूरों की घर वापसी की यात्रा का खर्च उठाएंगी.
‘टू लीव और नॉट टू लीवः लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज होम’ नाम की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी हुई थी. यह सर्वेक्षण मई के आखिरी सप्ताह और जून के पहले सप्ताह में किया गया था.
स्वान के इस फोन सर्वेक्षण में 1,963 प्रवासी मजदूर शामिल थे. सर्वेक्षण के जरिए पता चला कि 33 फीसदी मजदूर अपने गृह राज्य जाने में सफल हुए जबकि 67 फीसदी प्रवासी मजदूर घर के लिए रवाना नहीं हुए.लॉकडाउन के दौरान घर के लिए रवाना हुए मजदूरों में से 85 फीसदी ने घर पहुंचने के लिए खुद अपने किराये का भुगतान किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान घर पहुंचे मजदूरों में से 62 फीसदी ने यात्रा के लिए 1,500 रुपये से अधिक खर्च किए थे.रिपोर्ट में कहा गया कि प्रवासी मजदूरों के जाने के प्रमुख कारणों में से एक बेरोजगारी है. घर जाने का फैसला सिर्फ भावनात्मक नहीं था. अभी भी शहरों में फंसे 75 फीसदी मजदूर बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं.
स्वान की शोधकर्ता अनिंदिता अधिकारी का कहना है, ‘हमें पता चला कि सिर्फ महामारी का डर और परिवार के साथ रहने की इच्छा ने ही उन्हें घर लौटने को मजबूर नहीं किया बल्कि जिन शहरों में वे काम कर रहे थे, वहां रोजगार, आय और खाने की कमी ने उन्हें घर लौटने को मजबूर किया.’सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि 44 फीसदी मजदूर जो घर जाने के लिए निकले थे, उनमें से 39 फीसदी लोगों को श्रमिक ट्रेनें मिली थीं. 11 फीसदी ट्रक, लॉरी और अन्य माध्यमों से घर पहुंचे जबकि छह फीसदी मजदूर पैदल ही घर लौटे.वहीं, शहरों में फंसे 55 फीसदी मजदूर तुरंत अपने घर जाना चाहते हैं.
स्वान की रिपोर्ट में घर पहुंचे 5,911 मजदूरों पर एक और सर्वे किया गया है, जिससे पता चला है कि इनमें से 821 मजदूरों ने 15 मई से एक जून तक डिस्ट्रेस कॉल की थी.यह भी पता चला है कि जिन लोगों पर सर्वे किया गया, उनमें से 80 फीसदी लोगों को सरकार द्वारा मुहैया कराय गया राशन नहीं मिला. लगभग 63 फीसदी मजदूरों के पास 100 रुपये से भी कम पैसे थे जबकि लगभग 57 फीसदी मजदूरों ने एसओएस कॉल कर कहा कि उनके पास पैसे, राशन कुछ नहीं है और उन्होंने कई दिनों से खाना नहीं खाया है.