कंधार की कहानी, क्या हुआ 21 साल पहले
21 साल पहले, 24 को दिसंबर को शुक्रवार का दिन था और घड़ी में साढ़े चार बजने वाले थे। काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट संख्या आईसी 814 नई दिल्ली के लिए रवाना होती है। शाम पांच बचे जैसे ही विमान भारतीय वायु क्षेत्र में दाखिला होता है, अपहरणकर्ता हरकत में आते हैं और फ्लाइट को पाकिस्तान ले जाने की मांग करते हैं। दुनिया को पता लगता है कि ये भारतीय विमान अगवा कर लिया गया है। शाम 6 बजे विमान अमृतसर में थोड़ी देर के लिए रुकता है। और वहां से लाहौर के लिए रवाना हो जाता है।
पाकिस्तान की सरकार के इजाजत के बिना ये विमान रात 8 बजकर 7 मिनट पर लाहौर में लैंड करता है। लाहौर से दुबई के रास्ते होते हुए इंडियन एयरलाइंस का यह हाइजैक विमान अगले दिन सुबह तकरीबन साढ़े 8 बजे अफगानिस्तान में कंधार की जमीन पर लैंड करता है। उस दौरान कंधार पर तालिबान की हुकूमत थी।
180 लोग थे विमान में सवार
विमान पर कुल 180 लोग सवार थे। विमान अपहरण के कुछ घंटों के भीतर आतंकवादियों ने एक यात्री रूपन कात्याल को चाकू मार दिया। 25 साल के रूपन कात्याल पर आतंकवादियों ने चाकू से कई वार किए थे
जिससे उनकी मौत हो गई थी उसके बाद ये विमान दुबई पहुंचा। वहां ईंधन भरे जाने के एवज में कुछ यात्रियों की रिहाई पर समझौता हुआ।
दुबई में 27 यात्री रिहा किए गए, इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। इसके एक दिन बाद डायबिटीज से पीड़ित एक व्यक्ति को रिहा कर दिया गया। कंधार में पेट के कैंसर से पीड़ित सिमोन बरार नाम की एक महिला को कंधार में इलाज के लिए विमान से बाहर जाने की इजाजत दी गई और वो भी सिर्फ 90 मिनट के लिए।
उधर, विमान हाइजैक के दौरान भारत सरकार की मुश्किल भी बढ़ती जा रही थी। मीडिया का दबाव था, बंधक यात्रियों के परिजन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और इन सबके बीच अपहरणकर्ताओं ने अपने 36 आतंकवादी साथियों को रिहाई के साथ-साथ 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर की फिरौती की मांग रखी थी।
तालिबान का रोल
अपहरणकर्ता एक कश्मीरी अलगाववादी के शव को सौंपे जाने की मांग पर भी अड़े थे, लेकिन तालिबान की गुजारिश के बाद उन्होंने पैसे और शव की मांग छोड़ दी। लेकिन भारतीय जेलों में बंद आतंकवादियों की रिहाई की मांग मनवाने के लिए वे लोग अड़े हुए थे।
कैंसर की मरीज समोन बरार की तबियत विमान में ज्यादा बिगड़ने लगी और तालिबान ने उनके इलाज के लिए अपहरणकर्ताओं तो दूसरी तरफ भारत सरकार पर भी जल्द से समझौता करने के लिए दबाव बनाए रखा।
एक वक्त तो ऐसा लगने लगा कि तालिबान कोई सख्त कदम उठा सकता है। लेकिन बाद में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, “तालिबान ने यह कहकर सकारात्मक रवैया दिखाया है कि कंधार में कोई रक्तपात नहीं होना चाहिए नहीं तो वे अपहृत विमान पर धावा बोल देंगे। इससे अपहरणकर्ता अपनी मांग से पीछे हटने को मजबूर हुए।“
वाजपेयी सरकार का रोल
हालांकि विमान में ज्यादातर यात्री भारतीय ही थे, लेकिन इनके अलावा ऑस्ट्रलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमेरिका के नागरिक भी इस फ्लाइट में सफर कर रहे थे। तत्कालीन एनडीए सरकार को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तीन आतंकवादियों को कंधार ले जाकर रिहा करना पड़ा था।
31 दिसंबर को सरकार और अपरहणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए सभी 155 बंधकों को रिहा कर दिया गया। ये ड्रामा उस वक्त खत्म हुआ, जब वाजपेयी सरकार भारतीय जेलों में बंद कुछ चरमपंथियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गई।
तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन आतंकवादियों को अपने साथ कंधार ले गए थे। छोड़े गए आतंकवादियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल था।
सरकार ने दी सुरक्षा की गारंटी
इससे पहले भारत सरकार और आतंकवादियों के बीच समझौता होते ही तालिबान ने उन्हें दस घंटों के भीतर अफगानिस्तान छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया था। शर्तें मान लिए जाने के बाद चरमपंथी हथियारों के साथ विमान से उतरे और एयरपोर्ट पर इंतजार कर रही गाड़ियों पर बैठ वहां से फौरन रवाना हो गए।
कहा जाता है कि इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा करने वाले चरमपंथियों ने अपनी सुरक्षा की गारंटी के तौर पर तालिबान के एक अधिकारी को भी अपनी हिरासत में रखा था। कुछ यात्रियों ने बताया कि बंधक संकट के दौरान अपहरणकर्ताओं ने अपने ही गुट के एक व्यक्ति को मार दिया था। हालांकि किसी ने इसकी पुष्टि नहीं की।
ठीक आठ दिन के बाद साल के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर को सरकार ने समझौते की घोषणा की। प्रधानमंत्री वाजपेयी ने नए साल की पूर्व संध्या पर देश को ये बताया कि उनकी सरकार अपहरणकर्ताओं की मांगों को काफी हद तक कम करने में कामयाब रही है।