विश्वपति वर्मा(सौरभ)
एक दौर था जब आर्थिक, सामाजिक,राजनीतिक एवं भौगोलिक ,प्रगति की समीक्षा करने के बाद वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर सार्वजनिक किया जाता था लेकिन पिछले कई सालों से देखने को मिल रहा है कि भारतीय संस्थाओं द्वारा किये जा रहे ऐसे सर्वेक्षण को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
यह भारत जैसे देश के लिए बिल्कुल ठीक नही है ,क्योंकि इन्ही आंकड़ों से ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविक स्थिति, शैक्षणिक प्रगति ,सामाजिक परिवर्तन, बेरोजगारी के आंकड़े एवं गरीबी उन्मूलन और शहरी विकास, औद्योगिक रफ्तार के साथ नागरिकों के जीवन उत्थान में हुए बदलाओं एवं उनके लिए जारी कार्यक्रमों की दिशा एवं दशा समझने का मौका मिलता था।
भारत मे 22 करोड़ लोग प्रतिदिन भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं ,47 फीसदी महिलाओं के अंदर खून की कमी है ,42 फीसदी लोग 20 रुपये से कमपर जीवन यापन करते हैं, बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़ते क्रम में है ,शिक्षा का स्तर लगातार खराब हो रहा है ,चिकित्सा प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त है ,ग्रामीण विकास की बातें केवल कागजी हैं ,सरकारी योजनाओ को बर्बाद किया जा रहा है ,किसानों को बर्बाद करने के लिए कानून बना दिया गया लेकिन इन सब के बीच समय समय पर आने वाली रिपोर्ट कार्ड पर भी पाबंदी लगा दिया गया जो विकासशील देश के निर्माण के लिए किसी बड़े खतरे से कम नही है।