विश्वपति वर्मा (सौरभ) नई दिल्ली
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 58 दिन से चल रहे किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार का प्रयास लगतार चल रहा है वहीं मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया है लेकिन किसान संगठनों और सरकार की तरफ से बातचीत कर रहे लोगों में बात नही बन पा रही है ।वहीं 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के ऐलान के बाद जहां सरकार डरी हुई है वहीं किसान नेता और आंदोलनकारी डटे हुए हैं।
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कुछ लोग आंदोलन पर सवाल खड़ा कर रहे हैं , सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया के जरिये किसान आंदोलन की फंडिंग पर सवाल खड़ा किया गया है लेकिन मौके पर हमारी समीक्षा में देखने को मिला है कि आंदोलन में जो धन खर्च हो रहा है वह सब किसानों की एकता और हरियाणा -पंजाब के सक्षम लोगों का देन है इसमे विदेशी फंडिंग का आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है।
आइए आपको बताते हैं किसान आंदोलन से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें जो आपको जानना जरूरी है कि आखिर किसान कानून को रद्द करने की मांग क्यों कर रहे हैं.
आपको बता दें कि किसानों की पहली और सबसे बड़ी मांग यही है कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले। आंदोलन के लिए गठित संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ से बातचीत हुई तो उन्होंने कहा कि कृषि कानून किसानों के पक्ष में नहीं है। इससे निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा। जमाखोरी बढ़ेगी। बड़ी निजी कंपनियों को फायदा होगा एवं किसानों का आने वाले भविष्य मुश्किल भरा होगा।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर लिखित आश्वासन
जब से कृषि विधेयकों की बात हो रही है, तब से किसानों के मन में सबसे बड़ा डर यही है कि नये कृषि बिलों से सरकार न्यनूतम समर्थन मूल्य प्रणाली को ही खत्म कर देगी। किसानों ने यह भी कहा कि एमएसपी पर अनिवार्य कानून बनना चाहिये। किसानों की सबसे बड़ी मांगों में से एक मांग यह भी कि सरकार लिखित रूप से दे कि भविष्य में सेंट्रल पूल के लिए MSP और पारंपरिक खाद्य अनाज खरीद प्रणाली जारी रहेगी।
किसानों की तिसरी सबसे बड़ी मांग यह है कि सरकार बिजली बिल संशोधन को समाप्त करे। किसान संगठनों का कहना है कि अगर यह बिल कानून बन जायेगा तो उन्हें मुफ्त या सब्सिडी वाली बिजली नहीं मिलेगी। निजीकरण को बढ़ावा दिया जायेगा और पंजाब में किसानों को मिल रही मुफ्त बिजली बंद हो जायेगी।
किसानों की चौथी मांग है कि पराली जलाने को लेकर पांच साल सजा का जो प्रावधान किया गया है, इसे वापस लिया जाये। केंद्र सरकार ने इसी साल अक्टूबर में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए नया अध्यादेश पेश किया जिसके अनुसार जो भी वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होगा, उसे पांच साल तक की सजा हो सकती है या उस पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लग सकता है। किसान इस प्रावधान को खत्म करने की मांग कर रहे हैं और साथ पराली जलाने के आरोप में गिरफ्तार किसानों की रिहाई की भी मांग कर रहे हैं।
किसानों की पांचवीं मांग गन्ना भुगतान को लेकर है। गन्ना भुगतान को लेकन पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आक्रोशित हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की तो असली समस्या ही गन्ना भुगतान को लेकर है। किसान संगठनों का कहना है कि शुगर इंडस्ट्री रिकवरी कम होने का बहाना बनाकर प्रदेश सरकार पर गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाने का दबाव बना रही है, लेकिन लगातार बढ़ रही लागत को देखते हुए गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी की जानी चाहिए।
उत्तर प्रदेश से जुड़े किसान संगठन गन्ना मूल्य 450 रुपए प्रति कुंतल घोषित करने की मांग कर रहे हैं। बता दें कि पिछले दो पेराई सत्रों से गन्ना मूल्य 315 एवं 325 रुपए कुंतल है। यूपी के किसान संगठनों का कहना है कि पिछले दो पेराई सत्रों में गन्ना मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। जबकि बिजली, डीजल, कीटनाशक, उवर्रक और लेबर महंगी होने से हर साल गन्ना उत्पादन लागत बढ़ रही है। वहीं पंजाब के किसान हरियाणा की तर्ज पर भुगतान की मांग कर रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि किसान सरकार द्वारा दिये गए उस प्रस्ताव को मानते हैं जिसमे 2 साल तक तीनों कृषि कानूनों को स्थगित करने की बात कही जा रही है या फिर कृषि कानूनों को रद्द किए जाने के आश्वासन पर किसान दिल्ली के बॉर्डर से हटेंगे।