विश्वपति वर्मा( सौरभ)
समाजवादी , पंथनिरपेक्ष,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए काम करेगी ।
यह शब्द मेरे नही हैं बल्कि भारतीय संविधान में लिखी गई प्रस्तावना का हिस्सा है , आज गणतंत्र दिवस का अवसर है पूरा देश इस पर्व को मनाने की तैयारी कर रहा है लेकिन वहीं देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा लोकतांत्रिक गणराज्य में अपनी मांगों के लिए सड़कों पर है ।
देखने में आया है कि 26 जनवरी के अवसर पर लोग आंदोलन करने के लिए विवश हैं हमें और हमारी सरकार को इस बात की चिंता करनी चाहिए कि जब देश की जनता लाल किले पर परेड देखने के लिए लालायित रहती है तो वहीं ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा कि देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपनी मांगों को लेकर विरोध स्वरूप राजधानी दिल्ली के इलाके में परेड निकालने के लिए मजबूर है ।
ऐसी स्थिति को देखने के बाद समझ में नहीं आता कि हम किस तरह से इस राष्ट्रीय पर्व को मनाने के लिए देश की जनता को बधाइयां दूं ,हमें लगता है गणतंत्र दिवस के अवसर पर बधाई देना जले पर नमक छिड़कना होगा , यह परेड निश्चित तौर पर सरकार की नाकामी है जो सड़क पर किसान आंदोलन करने के लिए मजबूर हैं ,जब किसान चाहता है कि इस कानून को रद्द कर दिया जाए तो सरकार कानून को जिंदा रखने के लिए इतने सारे प्रयोग क्यों कर रही है यह बात समझ में नहीं आ रहा है ।
बात की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट होता है कि सरकार कारपोरेट घरानों के लोगों के लिए काम करने के लिए मजबूर है इसलिए वह जनता की बातों को नकार कर कारपोरेट घरानों के लोगों की बात पर तवज्जो दे रही है ।
सरकार की तानाशाही और निरंकुशता के अवसर को देखते भी आज हम इस गणतंत्र दिवस पर ना तो बधाई स्वीकार करेंगे और ना ही बधाई देंगे क्योंकि हमारी आवाज किसानों के लिए है और किसानों को न्याय मिलने के बाद ही इस तरह की बधाइयां देने और स्वीकार करने का काम हम करेंगे ।
जय हिंद ,जय भारत, जय किसान ,जय संविधान ।