भारतीय राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था आम नागरिक के अधिकारों का अतिक्रमण कर रही है। भारतीय संसद और विधानसभा को केवल विधाई शक्तियां ही मिलनी चाहिए थी लेकिन संविधान में इन दोनों को प्रशासनिक शक्ति से विभूषित करके भारतीय जनमानस के साथ धोखा किया गया है। लोकतंत्र की विशेषता ही जनता को स्वनिर्णय की शक्ति प्रदान करना है।
लेकिन भारतीय समाज की विडंबना है कि सभी लोकतांत्रिक शक्तियां संविधान के माध्यम से संसद और विधानसभाओं ने अपहृत कर ली है। इन दोनों की मूर्खता कहो अथवा लालच कि भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था दोनों को बाईपास करके आम आदमी के लिए पीड़ा का कारण बन चुकी है।जहाँ राजनीतिक व्यवस्था ने भारतीय समाज को पूरी तरह विघटित तथा बर्बाद कर दिया है वही प्रशासनिक व्यवस्था ने विकास की राह में अड़ंगा लगाया है।
यह सर्वविदित है कि किसी भी देश के लिए सामाजिक, वैयक्तिक एवं चारित्रिक विकास के लिए व्यक्ति के अंदर जिम्मेदारी का भाव होना अति आवश्यक है। व्यक्ति का जिम्मेदार होना उसके निर्णय लेने की स्वतंत्रता की सीमा पर निर्भर करता है। आदर्श लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनता का शासन व्यवस्था में सहभागी होना अनिवार्य होना चाहिए। शासन व्यवस्था में समाज की सहभागिता जनमानस के अंदर विकासपरक जिम्मेदारी लेकर आती है। जब आमजन शासन व्यवस्था में सहभागी होकर स्वविकास के निर्णय स्वयं करने लगता है उस स्थिति में राजनैतिक व्यवस्था उच्च प्रतिमान स्थापित करने की ओर अग्रसर होने लगती है।
सहभागी शासन व्यवस्था एक नई सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था को जन्म देती है जिसमें समाज को शासनिक और प्रशासनिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग होने का अधिकार प्राप्त होता है। जिस व्यवस्था में समाज का उत्तरदायित्व पूर्ण स्थान होता है वह एक आदर्श व्यवस्था कही जाती है। इस व्यवस्था में राजनीति समाज के प्रति उत्तरदायी होती है। समाज व्यक्तियों से मिलकर बनता है और व्यक्ति के निर्णय लेने की स्वतंत्रता की सीमा देश की राजनीतिक व्यवस्था संविधान के माध्यम से निर्धारित करती है।
राजनीति को संविधान पर राज करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। संविधान समाज का चेहरा होता है जो समाज की प्रकृति को प्रतिबिंबित करता है। क्योंकि संविधान समाज की परिपक्वता को प्रदर्शित करता है इसलिए संविधान पर समाज का अधिकार होना चाहिए ना कि राजनीति का। व्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा का निर्धारण करना समाज का प्राकृतिक अधिकार है। यदि इस अधिकार को राजनीति अपहृत करती है तो यह अव्यवस्था और आरजकता का ही कारण बनता है। ग्राम स्वराज्य की अवधारणा समाज को शासनिक एवम प्रशासनिक व्यवस्था में सहभागी बनाने पर जोर देती है।
शासन की ग्राम स्वराज्य परिकल्पना एक ऐसी व्यवस्था है जो राजनैतिक अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अराजकता अथवा तानाशाही जैसी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करती है। इस परिकल्पना को आदर्श लोकतंत्र भी कहा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति की आदर्श स्वतंत्रता के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। ग्राम स्वराज राम राज्य व्यवस्था कीं पहली सीढ़ी है़। राम राज्य मतलब सभी सुखों से परिपूर्ण समाज। परिपूर्ण समाज में स्व निणर्य वाली व्यवस्था ग्राम स्वराज से ही आ सकती है।
ग्राम स्वराज का स्वरूप कैसा होना चाहिए
ग्राम स्वराज शासन कि सबसे छोटी इकाई हो यह वर्तमान ग्राम सभा कि तरह क्षेत्र पंचायत ,ब्लॉक, जिला पंचायत और D M के अधीन नही होना चाहिए यह प्रशासनिक व्यवस्था राज्य सरकार कि तरह स्वतंत्र होना चाहिए। यह व्यवस्था हर नागरिक कि भागीदारी पर चले , इस व्यवस्था में आम जन के सभी सुख दुख में ग्राम स्वराज कि पूर्ण भागीदारी हो । ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जहां शिक्षा स्वास्थ्य आवास से जुड़ी सभी समस्या हल करे । कानून व्यवस्था से जुड़ें सभी मसले और विवाद ग्राम स्तर पर हल किये जायें ऐसा करने से हम।ग्राम स्वराज और आदर्श ग्राम पंचायत के सपने को पूरा कर सकते हैं।