सौरभ वीपी वर्मा
भारत में ब्रिटीश काल 1880 से 1884 के मध्य लार्ड रिपन का कार्यकाल पंचायती राज का स्वर्ण काल माना जाता है। इसने स्थाई निकायों को बढाने का प्रावधान किया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के भाग -4 में ग्राम पंचायतों के गठन और शक्तियां का उलेख किया गया है लेकिन इसको संवैधनिक दर्जा नहीं मिला।
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम,तालुका और जिला आते हैं| भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही है ।आधुनिक भारत में पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गाँव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गयी । इस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री ‘मोहनलाल सुखाडिया’ व मुख्या सचिव ‘भगत सिंह मेहता’ थे ।भगत सिंह मेहता को राजस्थान में व बलवंतराय मेहता को भारत में पंचायती राज का जनक मन जाता है ।
इसको सवैधानिक दर्जा 73 वें संविधान संशोधन 1992 मे मिला इसको ग्याहरवी अनुसूची, भाग -9 व Article 243 में 16 कानून व 29 कार्यो का उलेख किया गया है।भारत में 1957 – बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिश पर त्रिस्तरीय पंचायती राज का गठन किया गया।
उसके बाद से पंचायत के विकास का सिलसिला शुरू हो गया जो वर्ष 2000 आते आते ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की क्रांति की तरह दिखाई देने लगा , लेकिन जिम्मेदार जनों की निरंकुशता के चलते सरकार द्वारा चलाई गई की महत्वाकांक्षी योजना अपने उद्देश्य की तरफ नही जा पाई फिलहाल ग्राम पंचायत के लिए योजना बनना जारी रहा और भारी भरकम बजट खत्म होता रहा।
उसके बाद 2013 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदर्श ग्राम पंचायत बनाने की घोषणा किया जिसमें सांसद ,विधायक और उच्चाधिकारियों को एक-एक गांव को गोद लेकर वहां पर बुनियादी सुविधाओं का ढांचा तैयार करना था लेकिन सरकार की निरंकुशता और स्थानीय जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का गांव बेंती , सिदार्थनगर के सांसद जगदंबिका पाल का गोद लिया हुआ गांव भारत भारी एवं बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी द्वारा गोद लिया गया गांव अमोढ़ा भी समग्र एवं समेकित विकास में पीछे रह गया। बता दें कि इस दौरान दोनों सदनों के सांसदों ने देश के 800 ग्राम पंचायतों को गोद लिया था।
हम जल्द ही आपको तीनों गांवों की समीक्षात्मक रिपोर्ट भी दिखाएंगे ।