भारत मे कोरोना का वह रूप नही था जिसका हवाला देकर पूरे देश को डराया गया - तहक़ीकात समाचार

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शनिवार, 20 मार्च 2021

भारत मे कोरोना का वह रूप नही था जिसका हवाला देकर पूरे देश को डराया गया

सौरभ वीपी वर्मा

वर्ष 2020 में यही वह महीना था जब दुनिया के कई देशों ने तालाबंदी कर दिया था , भारत भी तेजी से फैल रहे कोविड-19 वायरस की चपेट में आ चुका था इसी वजह से आने वाले हप्तों में संपूर्ण लॉकडाउन का खाका तैयार किया जा रहा था और देखते ही देखते 24 मार्च 2020 से 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान हो गया थ।

उसके बाद अगली सुबह से देशभर के ट्रेनों के पहिए जाम हो गए , बड़े बड़े मॉल में ताला लग गए ,आसमान में गड़गड़ाहट की आवाज से उड़ती हुई हवाई जहाजों पर विराम लग गया , बाजार बंद हो गए , सिनेमाघर बंद हो गए दूध ,दही ,फल ,दवा जैसी दुकानों को छोड़कर संपूर्ण भारत में पूरी तरह से तालाबंदी हो गया था ।

दिल्ली , महाराष्ट्र , गुजरात जैसे राज्यों के महानगरों में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों को हजारों किलोमीटर की यात्रा करके पैदल ही घर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा था , सरकारों द्वारा प्रदान की गई रोटी पानी की व्यवस्था नाकाफी था लेकिन ग्रामीणों ने राहगीरों को भोजन पानी की व्यवस्था देने में कोई कसर नहीं बाकी रखा उसके बाद सैकड़ो लोग बेमौत मारे गए।

आज एक साल का समय पूरा होने वाला है जब इस देश के लोगों ने कोरोना के भयावहता के कारण जटिल समस्याओं का सामना किया था ,इस बीच सरकार द्वारा लंबा चौड़ा राहत पैकेज बनाया गया ,फ्री राशन और सिलेंडर दिया गया , अति गरीब लोगों को 1000 और 500 रुपये की नगदी भी दिया गया इसके अलावा कोरोना वायरस को खत्म करने वाले वायरस की दवा बनाने के लिए भी काफी धन निवेश किया गया जिसका परिणाम रहा है कि रिसर्चरों ने वैक्सिन बनाने की सफलता हासिल कर ली।

लेकिन समझ मे नही आ रहा है कि इस देश के बहुसंख्यक आम आदमी को इससे क्या मिला ? आज भी कोरोना के नाम पर जनता को डराया जा रहा है ,मास्क पहनने और दो गज दूरी बनाकर रहने के लिए सलाह दिया जा रहा है ,स्कूलों को बंद किया गया ,परीक्षाओं को निरस्त किया गया इसके उलट नेताओं का काफिला जारी है , महोत्सव हो रहा है ,रैलियां हो रही है ,चुनाव हो रहे हैं एमएलए एवं एमपी चुने जा रहे हैं तो आखिर अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को ही कोरोना से क्यों डराया जा रहा है ? 

क्या आपको नही लगता कि अमेरिका और ब्रिटेन की तरह भारत मे कोरोना का वह रूप नही था जिसका हवाला देकर पूरे देश को डराया गया ? प्रवासी मजदूरों को उनके बदतर हालात में उन्हें वैसे ही छोड़ दिया गया ? अगर लगता है तो विचार कीजिये अन्यथा आने वाले दिनों में एक बार फिर उसी तरह के हालात से निपटने के लिए तैयार रहिए क्योंकि सरकार की उदासीनता और कोरोना के रिपोर्ट ने ठीक एक साल पूरा होने पर एक बार फिर सबको चौंका दिया है।

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