सौरभ वीपी वर्मा
आंकड़े भले ही छिपाए जा रहे हों लेकिन सच यह है कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं ,दवाओं और ऑक्सीजन की कमी के चलते प्रतिदिन 8 से 10 हजार लोगों की मौत हो रही है । जब भारत में कोरोना का रूप भयावह नही था तब देश में आपातकाल लागू कर दिया गया और जब वास्तविक रूप से बीमारी का खतरा बढ़ने लगा तो सरकार के पास जीवन रक्षक सुविधाओं का अकाल पड़ गया। यह सरकार की नाकामी ही है जो अपने नागरिकों का जीवन बचाने के लिए समय पर उचित प्रबंध नही किया गया।
पिछले साल इसी वक्त में जब पूरी दुनिया महामारी की वजह से चिंतित थी तब भारत मे केवल प्रोपगंडा किया गया मरकज से लेकर धार्मिक कार्यक्रमों को कोरोना फैलने का जिम्मेदार माना गया , शादी निकाह के कार्यक्रम को वैन किया गया , दुकानों प्रतिष्ठानों को बंद किया गया ,स्कूल और फैक्ट्रियों को बंद किया गया और इन्ही सब कार्यों में सरकार ने पूरा समय खर्च कर दिया लेकिन सत्ताधारियों ने यह कभी नही सोचा कि आने वाले दिनों में स्थित भयवाह होगी तब क्या होगा?
आंकड़े बताते हैं कि जिन अस्पतालों में महीनों बीत जाता था वहां से कोई कोई लाश नही निकलती थी आज वहां से प्रतिदिन 10 से 12 लाशें निकल रही है , आखिर क्यों? क्या इसके पहले कभी हमने चिंता की थी कि आने वाले दिनों की स्थिति क्या होगी ? क्या हमे स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने पर बल नही देना था? सच तो यह है कि देश के जिम्मेदार लोग सत्ता हथियाने के लिए तोड़ फोड़ और चुनाव में लगे थे उन्होंने अपने नागरिकों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया जिसका परिणाम है कि नौजवान बेटे बेटियां अपने मां बाप के सामने इलाज के अभाव में दम तोड़ दे रहे हैं।