सौरभ वीपी वर्मा
कोविड-19 वैश्विक महामारी से जहां पूरा देश जूझ रहा है वही इन सब के बीच गैर डिग्रीधारी डॉक्टर मरीजों के लिए मसीहा बन रहे हैं। लेकिन समाज का एक तथाकथित तबका इन डॉक्टरों को झोलाछाप की संज्ञा देता है जबकि आज यह लोग असली समाजसेवी बनकर उभर रहे हैं।
अगर आज गांव के छोटे डॉक्टर ने होते तो स्थिति बद से बदतर होती ऐसा कोई गांव नहीं जहां सैकड़ों लोग बुखार तथा अन्य बीमारियों से ग्रस्त न हो।आज 21वीं सदी में शहर से लेकर गांव देहात में अधिकांश लोग गुरबत की जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे में अगर एक गरीब आदमी शहर के डॉक्टर के पास मामूली सिर दर्द की दवाई लेने जाए तो पहले तो उसका नंबर नहीं आएगा , उसका नंबर भी आ गया तो करीब 400 से लेकर ₹600 रुपया एमडी डॉक्टर की फीस होती है वह उसे पेमेन्ट करनी होगी और उसके बाद दवाई की फीस अलग चुकानी होगी।
सोचिए मामूली बुखार और सिर दर्द के लिए एक गरीब को हजार रुपया जुटाना होगा और आज स्थिति यह है कि एक घर में कई कई लोग बीमारियों से ग्रस्त हैं।
अगर सभी लोग गांव के डॉक्टरों को छोड़कर शहर की ओर रुख करें तो शहर में रैली जैसा माहौल होगा। सरकार को चाहिए ऐसे माहौल में जो लोग छोटे डॉक्टरों को झोलाछाप की श्रेणी देती है उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाए ।