सौरभ वीपी वर्मा
जब देश में मेडिकल संसाधनों को मजबूत करने की जरूरत थी तब यहां मंदिर-मस्जिद की बहस पर करोड़ो रुपया महीना खर्च किया जा रहा था ,जब अस्पतालों की जरूरत थी तब सबसे बड़े स्टेच्यू का नाम पर महारथ हासिल किया जा रहा था ,जब डॉक्टरों और मेडकिल टीम की जरूरत थी तब यहां सांसद और विधायक खरीदे बेंचे जा रहे थे । किसी को इस भयावह स्थिति के बारे में नही पता था कि बढ़ती आबादी के बीच जब अस्पतालों और दवाओं की आवश्यकता पड़ेगी तब क्या होगा ।
आज देश के ग्रामीण इलाकों में स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मामूली बीमारी को देखने के लिए न तो डॉक्टर हैं न ही दवा जिसका परिणाम है कि कुछ छोटी हल्की बीमारियों की दवा न मिलने के कारण वह गंभीर हालत में पहुंच जा रहे हैं और चिकित्सा सेवाओं के न मिलने के चलते वह अपनी जान गंवा दे रहे हैं।
आखिर किसकी गलती है कि आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में उसके नागरिकों को बचाने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं का नितांत अभाव हो गया है ? आखिर क्या कारण है कि देश के नेताओं ने देश की चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए आज तक कोई ठोस कदम उठाने का प्रयास नही किया ? निश्चित तौर पर आप जान लीजिए कि ऐसी ही स्थिति बनी रही तो इस देश के 139 करोड़ की आबादी में से महज 2 -4 करोड़ लोगों को संतोषजनक स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाएंगी और बचे लोगों को इसकी जरूरत पड़ने पर उन्हें न तो अस्पताल मिल पाएंगे और न ही दवा ,बस कोरोना जैसी बीमारी का हवाला देकर सबको चुप कर दिया जाएगा।