सौरभ वीपी वर्मा
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आप जश्न मनाइए कि हमारी देश की सरकार घर बैठे बिठाए 5 किलो अनाज गैस सिलेंडर ,जन धन खाते में एक हजार रुपया गांव में सार्वजनिक शौचालय बनाकर फ्री में दे रही है लेकिन अपने वाली पीढ़ी को गुलामी के जंजीरों में जकड़ने के लिए भी तैयार रहिए। क्योंकि यह सब देने के लिए केंद्र सरकार पर 42 लाख करोड़ रुपये का विदेशी कर्ज लद चुका है।
बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप अगर आपको लगता है कि यह देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार चला रही है तो आपकी यह सबसे बड़ी गलतफहमी होगी। आपके जेहन में दूसरा सवाल आएगा कि केंद्र सरकार देश को नही चला रही है मोदी नही चला रहे हैं तो आखिर देश कैसे चल रहा है।
आइए बड़ी मेहनत से खोजे गए आंकड़े को मेहनत से पढियेगा और समझियेगा ये देश कौन चला रहा है। दरअसल इस देश में उज्वला योजना ,प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना ,स्ट्रीट वेंडर राहत पैकेज ,जन धन खाता राहत पैकेज ,80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज के साथ कई दर्जन योजनाओं पर केंद्र सरकार का नाम तो है लेकिन यह सब पैसा वर्ड बैंक और International Monetary Fund (आईएमएफ) दे रहा है जिसका कुल कर्ज बढ़कर देश में 42 लाख करोड़ हो चुका है ।
विश्वबैंक बैंक की एक पालिसी के अनुसार उसने केंद्र सरकार से कहा कि भारत में किसानों की आवश्यकता नही है भारत में मजदूरों की आवश्यकता है जो खेतों में काम करें , वर्ड बैंक ने कहा कि भारत में 85 फीसदी किसान ऐसे हैं जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन है और इनपर हर साल 80 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा केवल खाद पर सब्सिडी देना पड़ता है ,इसी प्रकार बीज और कृषि यंत्रों पर भी सब्सिडी देना पड़ता है इसलिए उसने कहा कि इस देश के किसानों की सारी जमीन ले लीजिए और इसके बदले हम समय समय पर इन गरीबों और किसानों को कुछ न कुछ देते रहेंगे केंद्र सरकार ने बात मान ली और दस्तावेजों पर दस्तखत हो गए इसके बाद विश्व बैंक ने एक फंड जारी किया जिससे छोटे मझले किसानों की जमीन को लीज पर लिया जा सके और इसके लिए बड़ी बड़ी कंपनियों को अधिकृत किया गया उसके बाद ही किसान आंदोलन ने जन्म लिया ।
अब हम थोड़ा पीछे चलते हैं विश्वबैंक और आईएमएफ ने केंद्र सरकार की मिलीभगत से भारत के किसानों की जमीन हड़प कर G7 देशों की दलाली करने लगा जिसमे कनाडा , फ्रांस ,जापान ,इटली ,अमेरिका,युनाइटेड किंगडम, और जर्मनी शामिल है । चूंकि विश्वबैंक और आईएमएफ को पता है कि भारत के लोग कई दशकों से ठगे गए हैं और वह अभी भी दाल ,चावल और हजार पांच सौ रुपये के लाभ पाने के लिए कुछ भी बर्दाश कर सकते हैं । इसके लिए विश्वबैंक ने 2014 में केंद्र सरकार को 320 मिलियन डॉलर भारत के उन लोगों के लिए दिया जिनके पास अपना बैंक अकाउंट नही है , सरकार ने पूछा कि हम गरीबों के लिए खाता खोलवाकर क्या करेंगे उसके बाद विश्व बैंक ने कहा उसकी चिंता आप छोड़िये आप किसानों की जमीन लीज पर लेने के लिए कानून बनाइये उसमें पैसा हम डालेंगे उसके बाद जनधन खाते की शुरुआत हुई। और उसी वर्ष ही अडानी अंबानी को पता चल गया था कि भारत के किसानों की जमीन पर उद्योगपतियों का राज चलेगा और उन्होंने गोदाम और कोल्डस्टोरेज बनवाना शुरू कर दिया था।
विश्वबैंक और आईएमएफ की नजर भारत की जमीन पर ही नही थी उसको G7 देशों को पैसा कमवाने के लिए भारत एक बड़े बाजार के रूप में दिखाई दे रहा था ।उसके बाद 2014 में ही उसने भारत को 4 लाख 27 हजार करोड़ रुपये का लोन दिया और कहा कि आप देश को खुले में शौच से मुक्त करो यानी शौचालय बांटो ।सरकार ने वैसा ही किया ।
आईएमएफ के लोग भारत के बाजार पर नजर दौड़ाए हुए थे इसी बीच उसने 3 लाख 66 हजार करोड़ रुपये का ऋण और दे दिया केंद्र सरकार ने पूछा कि इस पैसे को कहां खर्च करें तो उसने सुझाव दिया प्रधानमंत्री मुद्रा योजना चलाओ और निचली इकाई के लोगों को खुश करने के लिए मुफ्त में गैस सिलेंडर बांटों सरकार ने यह भी मान लिया ।
चूंकि G7 देशों के पास अकूत संपति है और वह अपने देश के लोगों को वह पैसा आधा या 1 प्रतिशत ब्याज पर दे देते हैं लेकिन दुनिया के अन्य देशों को यह लोन वह 7 से 10 फीसदी ब्याज पर देते हैं पैसा फंसने का कोई डर नही रहता क्योंकि इसके पायलर में केंद्र सरकार होती है।
जिस प्रकार मोदी सरकार विश्वबैंक और आईएमएफ से कर्ज लेकर खर्च कर रही थी उसी प्रकार उन समूहों के लोगों द्वारा हर दिन नए- नए योजना को लागू करने के लिए लोन देने की पेशकश भी किया जा रहा था जिसपर केंद्र सरकार ने लगभग 25 लाख करोड़ रुपये का लोन लिया और उसने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना ,आत्मनिर्भर भारत ,80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज ,जनधन खाते में 1 हजार का राहत पैकेज जैसी तमाम योजनाओं को शुरू किया गया।
अभी तो विश्वबैंक को अपने असली मकसद पर काम करना है जिसके लिए उसने 25 लाख करोड़ रुपये का लोन दिया है क्योंकि उसे पता है कि भारत के लोग अपनी जमीन तभी देंगे जब उन्हें लगेगा कि सरकार तो हमे सब कुछ दे ही रही है हम खेती करने क्यों जाएं ये तो शुक्रगुजार है हरियाणा और पंजाब के किसानों का जो सरकार और उद्योगपतियों की मंशा को भांप चुके थे ।
हालांकि इन सबके बाद भी हिमाचल प्रदेश में अडानी समूह का काम शुरू हो गया है जिसमें वह सेब की खेती पर कब्जा जमा चुका है और अब ₹12 रुपये कम पर उसकी कंपनी सेब की खरीददारी कर वह भारत से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे रेट पर बिक्री करेगा और आने वाले दिनों में इसी प्रकार की गेहूं ,चावल ,दाल , आलू ,प्याज इत्यादि को भारत से लेकर दुनिया भर के बाजारों में ऊंचे कीमतों पर बेचने का काम किया जाएगा और इसी प्रकार विश्व बैंक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड अपने असली मकसद में कामयाब हो जाएगा।
इसी पॉलिसी के तहत अभी जो पैसा है वह बड़ी-बड़ी कंपनियों और बड़े-बड़े उद्योगपतियों को दिया जा रहा है आखिर यह बात कैसे मान लिया जाए कि कोई नई सरकार आने के बाद यह कंपनियां और यह उद्योगपति सब पैसा केंद्र सरकार को वापस कर देंगे ? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जो इस देश के लिए खतरा बना हुआ है।
और दूसरी बात यह है कि यह 25 लाख करोड़ रुपया भुगतान करने का समय भी 2022 में पूरा हो रहा है इसके साथ 42 लाख करोड़ रुपये का जो कुल विदेशी कर्ज है वह 2029 तक देना है । अगर इस बीच 2024 में केंद्र की सरकार बदल गई तो बहुत बड़े दौलत पर किसी एक पार्टी का कब्जा हो जाएगा और यह देश कंगाली और बदहाली के मोड़ पर खड़ा हो जाएगा क्योंकि जब इस देश को यहां की कोई सरकार चलाना शुरू करेगी तो उसके पास पैसा ही नही रहेगा । अभी तो यह देश विश्वबैंक और आईएमएफ चला रहा है।
हमने तो उदाहरण स्वरूप कुछ जानकारी आपको दिया है इसके अलावा बहुत सारी योजनाओं के नाम पर केंद्र सरकार ने विदेशी कर्ज लिया हुआ है इसमें आपको कई सारी योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है । अब आप विचार कीजिए किस देश में पेट्रोल ,डीजल ,गैस ,कोल ब्लॉक ,इनकम टैक्स आदि के जरिये जो बड़े पैमाने पर टैक्स की वसूली हो रही है तो आखिर वह पैसा कहां खर्च हो रहा है जब केंद्र सरकार की सारी योजनाएं विदेशी कर्ज से ही चल रही है।