सौरभ वीपी वर्मा
मायावती ब्राह्मणों को साधने के लिए सतीश मिश्रा के जरिये प्रबुद्ध सभा करवा रही हैं ,समाजवादी पार्टी कुर्मी वोट सहेजने के लिए किसान पटेल यात्रा नरेश उत्तम पटेल से करवा रही है। भारतीय जनता पार्टी ओबीसी वोट बैंक को एक बार फिर बनाये रखने के लिए उनकी जातियों के नेताओं को मंत्री बना रही है । इसी प्रकार दलितों और मुसलमानों को अपना बनाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा तरह तरह का कांटा फेंका जा रहा है। ताकि वें किसी एक पार्टी का वोट बैंक बनकर उसे सत्ता के मुहाने पर पहुंचा दें।फिलहाल इस वक्त मुसलमान ठंडे बस्ते में डाल दिये गए हैं।
लेकिन उत्तर प्रदेश जैस बड़े राज्यों के ग्रामीण इलाकों के लोगों के जीवन और उनके रहन सहन की स्थिति को किसी कागज पर चित्रण किया जाए तो आपको दिखाई देगा कि आजादी के साढ़े सात दशक बाद 22 करोड़ में से 15 करोड़ से ज्यादा लोगों की स्थिति बद से बदतर है।
जातियों के आधार पर ही प्रदेश के लोगों की जीवन
पर समीक्षा करें तो दिखाई देता है कि निसाद ,राजभर ,कुम्हार ,तेली, नाई ,दलित ,धोबी ,खटीक ,लोध ,बनिया ,चौहान ,पासी ,
पाल और आदि समकक्ष जातियों के लिए समता ,स्वतंत्रता ,बंधुता एवं न्याय आधारित समाज की स्थापना नही हो पा रही है। यहां तक कि उनके लिए रहन सहन की मुकम्मल व्यवस्था अभी तक नही हो पाई है ।
प्रतिवर्ष सालाना आने वाले रिपोर्ट को देखा जाए तो सबसे ज्यादा इन्ही जातियों में बच्चों में कुपोषण ,महिलाओं में खून की कमी , शिक्षा की बदहाली ,चिकित्सा की असुविधा ,जागरूकता की कमी , आदि अव्यवस्था बरकरार है ।
इसलिए हिंदू और मुसलमान को ही नहीं सभी जाति वर्ग के लोगों को अपनी सरकार से जवाबदेही मांगनी चाहिए कि आखिर उनके समाज और उनके देश के नागरिकों के लिए सरकार द्वारा कौन-कौन सा मुख्य कार्य किया जा रहा है।
क्या सारे विकास के दावे नेता द्वारा मंच और मीडिया के माध्यम से ही किया जाएगा या धरातल पर सरकार और राजनीतिक पार्टियों के मिशन के बारे में भी जनता को पता चलेगा ? ऐसे सभी सवालों पर जवाब लेने के लिए जनता को सत्ताधारी पार्टी के नेताओं और राजनीतिक दलों के नेताओं के सामने खड़ा होना पड़ेगा अन्यथा यह देश जिस तरह 1947 के पहले गुलाम था वैसे ही आने वाले कई दशकों तक उसके नागरिक मानसिक गुलामी की प्रताड़ना झेलने के लिए सिर झुकाए खड़े रहेंगे। क्योंकि यहां मुद्दा देश की अर्थव्यवस्था , स्वास्थ्य एवं शिक्षा एवं रोजगार पर नहीं होती है ,यहां बहस बच्चों में कुपोषण एवं महिलाओं की खून की कमी में नहीं होती है , यहां तो बस जाति और धर्म के नाम पर लोगों को लड़वाने में इस देश की राजनीतिक पार्टियों और सत्ताधारी दलों को मजा आता है ।