सौरभ वीपी वर्मा
उत्तर प्रदेश में वंचित तबके की आवाज बुलंद करने वाले दो तेज तर्रार युवा नेता एवं सामाजिक चिंतक डॉक्टर आरएस पटेल एवं चन्द्र शेखर आजाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ बड़ा भूचाल लाने के लिए दिन रात एक करके जमीन तैयार कर रहे हैं ।
राजनीति के जानकार लोगों और प्रदेश के अनुभवी नेताओं ने भले ही इन दोनों नेताओं को अभी ना पहचान पाया हो लेकिन ये दोनों नेता उत्तर प्रदेश में आगामी 2022 में होने वाली विधानसभा में कुछ बड़ा करने की फिराक में है ।
उत्तर प्रदेश में इन दोनों जातियों से आने वाले लोगों को प्रदेश में अपने समाज के नेतृत्व करने वाले लोगों की कमी खल रही है जो अब इन नेताओं को अपने मसीहा के रूप में देख रहे हैं। प्रदेश में ओबीसी और दलित की बात करें तो 54 फीसदी ओबीसी में से लगभग 9 फीसदी वोट कुर्मी का है जो प्रदेश के 50 से अधिक सीटों पर बड़ा छाप छोड़ता है वहीं गैर यादव के 45 फीसदी वोटों पर निगाह डालें तो मौर्या जाति के लोग ज्यादातर अपने नेतृत्व से खुश हैं भले ही वह भाजपा के साथ हैं लेकिन यदि 10 फीसदी यादव ,7 फीसदी मौर्या और 9 फीसदी कुर्मी वोटरों को अलग कर दें तो 28 फीसदी में ओबीसी की लगभग 79 जातियां हैं जिनमे राजभर ने भी अपने नेतृत्व को समझ लिया है जो 3 फीसदी वोट लेकर प्रदेश में अपनी ताकत दिखा रहे हैं ।
वहीं दलित की 22 फीसदी वोट की बात करें तो जाटव के सबसे ज्यादा वोट के साथ धोबी ,पासी और बाल्मीक की एक बड़ी संख्या है इसके अलावा दलित की अन्य जातियां भी अपने नेतृत्व से खुश नही हैं ।
अब उत्तर प्रदेश में डाक्टर आरएस पटेल और चंद्रशेखर आजाद के आने से जहां इन दोनों नेताओं ने प्रदेश के अलग -अलग जिलों में हुये दलितों एवं पिछड़ों के उत्पीड़न पर पहुंचकर सरकार को घेरने का काम किया है उससे इन दोनों जातियों के वोटरों में काफी उम्मीदें बढ़ी हैं , आने वाले 2022 में यूपी में विधानसभा चुनाव होना है उससे पहले प्रदेश की एक बडी आबादी इन दोनों नेताओं को जमकर पसंद कर रही है जो गेमचेंजर साबित होगा।
अब ध्यान इस बात पर देना है कि यदि सुभासपा या ओम प्रकाश राजभर 3 फीसदी वोट लेकर आधे यूपी में प्रभाव डाल रहे हैं तो डॉक्टर आरएस पटेल और चंद्रशेखर आजाद भी मिलकर 3 से 4 फीसदी वोट पर प्रभाव डालने जा रहे हैं जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में मजबूत दावेदारी करने वाली किसी बड़ी पार्टी के लिए खतरा तो किसी के फायदेमंद हो सकता है।