सौरभ वीपी वर्मा
भारत भर में स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रम के लिए वर्ष 2005 में कांग्रेस सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की गई जिसके माध्यम से 5000 की आबादी वाले देश के सभी ग्राम पंचायतों में प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण किया गया था ।
सरकार की मंशा थी कि भारत के गांवों में रहने वाले लोगों को उनके ही गांव में या पड़ोस में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा मिले ताकि वह बीमारियों को समझ सकें और और स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ले सकें लेकिन 2005 से लेकर 2022 का सफर तय हो चुका है परंतु आज तक स्वास्थ्य उप केंद्रों की स्थिति में कोई सुधार नही हो पाया।
वर्ष 2022 की बात करें तो स्वास्थ्य मिशन का बजट बढ़कर 37 हजार करोड़ रुपया हो चुका है लेकिन सही तो यह है इस बजट का दसवां हिस्सा ही नागरिकों के हित में पहुंच पाता है बाकी का धन बंदरबांट के जरिये विभागीय अधिकारियों और मंत्रियों के जेब में चला जाता है और ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के उद्देश्यों पर पानी फिर जाता है।
यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के अंतर्गत आने वाली एक ग्राम पंचायत परसा लंगड़ा गांव की है जहां की बड़ी आबादी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में जीवन यापन करती हैं , महिलाओं को माहवारी की समस्या और महामारी से बचाने के लिए सराकर द्वार आशा बहुओं ,प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के जरिये सेनेटरी पैड की जो व्यवस्था कराई जाती है वह 95 फीसदी महिलाओं को नही मिल पाता है । गांव की कुछ महिलाओं से बात चीत करने पर पता चला कि स्वास्थ्य उपकेंद्र द्वारा किसी भी प्रकार का स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नही मिल पाता है ,महिलाओं ने बताया कि उन्हें माहवारी में इस्तेमाल होने वाला पैड भी मुहैया नही कराया जाता है ।