सौरभ वीपी वर्मा
हम लगातार सुनते आ रहे हैं कि हमारा देश सोने की चिडिया थी और देश मे अनंत खजाना था लेकिन विदेशी लुटेरों के चलते देश वाशियों को गरीबी का सामना करना पडा ,लेकिन जंहा तक मै जान पाया हूँ देश मे विदेशी लुटेरों से ज्यादा स्वदेशी लुटेरे धन दबाये बैठे हुये हैं
आज देश में 20 प्रतिशत लोगों के पास देश कि 80 प्रतिशत सम्पत्ति केन्द्रित है जबकि देश की 80 प्रतिशत जनता के पास मात्र 20 प्रतिशत है । भारत में अति उच्च सम्पत्तिधारी कुबेरों की संख्या 800 है जिनकी कुल सम्पत्ति 945 अरब डालर से ज्यादा है इनमें धन कुबेर ऐसे है जिनकी प्रत्येक की सम्पत्ति 50 अरब से अधिक है
लोकसभा में करीब 350 करोड़पति सांसद है. ये लोग अपने हितों और स्वार्थो को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाते बिगाड़ते रहते है इसीलिए देश में आर्थिक विषमता गहराती जा रही है, जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, जिस काले धन को कानून बना कर लाने की बात हो रही है उस कालेधन को वही कानून निर्माता ही दबा कर बैठे हुये हैं जो कि गरीबी निवारण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा बन गई है.
सरकार द्वारा गरीबी निवारण हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं किन्तु इनका पूरा लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पाता है आजादी के बाद से गरीबी निवारण हेतु देश में हजारो करोड़ रूपया पानी की तरहं बहा दिया गया जिसमे
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता योजना, राष्ट्रीय वृद्धा पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना, राष्ट्रीय प्रसव लाभ योजना, शिक्षा सहयोग योजना, सामूहिक जीवन बिमा योजना ,जयप्रकाश नारायण रोजगार गारंटी योजना , बालिका संरक्षण योजना, सार्वजानिक वितरण प्रणाली , विकलांग संगम योजना, जन श्री बीमा योजना , विजन 2020 फाँर इण्डिया, लक्षित सार्वजानिक वितरण प्रणाली , प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, सर्वप्रिय योजना, अन्त्योदय अन्न योजना, राजीव गाँधी श्रमिक कल्याण योजना , वाल्मीकि अम्बेडकर आवास योजन , राजीव गाँधी श्रमिक कल्याण योजना, जननी सुरक्षा योजना, भारत निर्माण कार्यक्रम, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना , इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना 2009, 20 सूत्रीय कार्यक्रम 2007, जवाहर ग्राम सामृध्य योजना , महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम सहित वर्तमान केंद्र सरकार की लगभग एक दर्जन से अधिक योजनायें शामिल हैं
सवाल यह है कि देश के खाजाने से इतना पैंसा खर्च करने के बाद भी देश के अंदर गरीबी कम क्यों नही हुई ?इससे साफ जाहिर होता है कि योजना मे खर्च होने वाले धन को मुट्ठी भर लोगों द्वारा दबा लिया गया जिससे देश के अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति उसी पायदान पर ही रह गया । और यह सब सरकारों की सोची समझी साजिश है ताकि देश में गरीबों की संख्या ज्यादा रहे और कारपोरेट घरानों , कंपनियों एवं फैक्ट्रियों में श्रमिकों की उपलब्धता पूरी हो सके । इससे सरकार को रोजगार नहीं देना पड़ेगा और सरकार को जनता का विरोध नहीं झेलना पड़ेगा ऐसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा इस तरह गरीबों की अमन-चैन को छीना जा रहा है ।
अगर निश्चित तौर पर सरकार देश के गरीबों के साथ न्याय करना चाहती है तो देश में सबसे पहले धन के विकेंद्रीकरण का ठोस योजना तैयार करे एवं देश में गरीबी और अमीरी रेखा तय करते हुए लोगों को योजनाओं का लाभ सुनिश्चित कराने में ठोस कदम उठाए । अन्यथा माना जाएगा कि सरकार खुद चाहती है कि देश में गरीबी और गरीबों की संख्या बड़े पैमाने पर रहे ।